शुक्रवार, 22 मार्च 2013

पानी



                                                                             राजेश उत्‍साही

पानी
अब कहां है

पानी जो हम पीते थे
पानी जो हम जीते थे
पानी  
मीठा पानी
पानी का मीठापन
अब नहीं है

न पानी रहा
न पानीदार लोग
पानी न आंखों में है
न चेहरे पर

पानी उतर गया है
जमीन में बहुत नीचे
इतना, जितना कि आदमी अपनी
अपनी आदमियत से।
0 राजेश उत्‍साही

12 टिप्‍पणियां:

  1. पानी की कीमत जो भूलते जा रहे हैं हम..जो भी बहुतायत में था मानव ने उसकी कद्र नहीं की...परमात्मा उनमें सबसे पहला है..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया अनीता जी। परमात्‍मा तो एक ही होना चाहिए...वैसे आपकी बात का अर्थ यह भी है जो बहुतायत में होता है उससे समस्‍या होती है...।

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (23-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  3. सिर्फ धन जोड़ना जानता है आज का आदमी.बहुमंज़िली इमारतें कितना जल बहाती हैं पर वर्षा-जल के लिए ओवरहेट टैंक बनवाते जान सूखती है!

    जवाब देंहटाएं

  4. बहुत सुन्दर ...
    पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "

    जवाब देंहटाएं
  5. ,बहुत ही खुबसूरत रचना के लिया हार्दिक बधाई ,आप मेरे ब्लोग्स का भी अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
    latest post भक्तों की अभिलाषा
    latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति.....
    साभार.....

    जवाब देंहटाएं
  7. फिर भी हम लोग अब भी पानी बचाने की पहल नहीं कर रहें ....

    जवाब देंहटाएं
  8. रिश्तों का पानी तो वैसे भी बहुत वक्त से मर चुका है ...अब तो खारापन भी बाकि नहीं है

    जवाब देंहटाएं

गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails