शनिवार, 26 मई 2012

मौसम के नाम


                                                     बंगलौर में जहां मैं रहता हूं : राजेश उत्‍साही 

तीखे गरमी के तेवर हुए
गमछे गले के जेवर हुए

जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस मई के देवर हुए

बरसती आग में है पानी
सड़क पर नजर सेसर1 हुए

प्‍यास का मन अतृप्‍त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर2 हुए

देह नदी बही इस तरह
अपरिचित गंध केसर हुए

फिदा हम जिन अक्‍श पे
रंग उनके सब पेवर3 हुए

अपने नीम की छांव भली
हाय इस मौसम में बेघर हुए
           0 राजेश उत्‍साही
  (क्षमा करें, इसे ग़ज़ल की कसौटी पर न कसें।)
1. छल 2. मिट्टी के अधपके बर्तन 3. पीला

शनिवार, 19 मई 2012

मुहावरे


                                                  राजेश उत्‍साही
मुहावरे : एक

छोटी बहन
पढ़ती है चौथी कक्षा में
पूछती है मुहावरे,कहावतें

पूछती है
क्‍या होता है भैया
’पेट काटना!’

सोचता हूं थोड़ी देर
फिर देता हूं जवाब
ममता मालूम है तुझे
जाता हूं जब अपनी नौकरी पर
घर से दूर
मिलते हैं कुछ पैसे मुझे खाने के लिए
खाता हूं मैं
खाना कुछ पैसों का
और बचाता हूं बाकी तुम्‍हारे लिए।
***

मुहावरे : दो  

छोटी बहन
पढ़ती है चौथी कक्षा में
पूछती है मुहावरे,कहावतें

पूछती है
क्‍या होता है भैया
’जान हथेली पर लेकर घूमना!’

सोचता हूं थोड़ी देर
फिर देता हूं जवाब
ममता मालूम है तुझे
जाता हूं जब अपनी नौकरी पर
घर से दूर
मिलते हैं कुछ पैसे मुझे
आटो रिक्‍शा,टैक्‍सी सफर के लिए

पर मैं
तय करता हूं सारा रास्‍ता
अंधाधुंध चलती हुई
मोटर गाडि़यों के बीच 
पैरों पर ।
 0 राजेश उत्‍साही

शनिवार, 5 मई 2012

बच्‍चे और मृत्‍यु



                  फोटो: राजेश उत्‍साही
बच्‍चों को नहीं
बताया जाता कि
घर में मृत्‍यु हो गई है किसी की
क्‍योंकि वे समझते नहीं हैं
क्‍या है मृत्‍यु ?

बच्‍चे
किलकारियां भरते हैं
और खेलते रहते हैं
अपने में मगन

मैं सोचता हूं
क्‍या अंतर होता है
मृत्‍यु से प्रताडि़त जनों
और अबोध बच्‍चों में

बच्‍चे 
नहीं समझते मृत्‍यु को
पर क्‍या हम समझते हैं?

हम भी हिचकियां भर-भर के
रोते रहते हैं अपने में मगन
बच्‍चों की तरह !

0 राजेश उत्‍साही  

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails