फोटो :विपुल नाकुम |
अपूर्वा
खड़ी हो तुम
जिंदगी की गीली रेत पर
कोई बात नहीं
धंसने दो पैरों को
वे यथार्थ की ठोस जमीन
जल्द ही पा लेंगे
बस
अपनी नजर लक्ष्य पर
इसी तरह गढ़ाए रखना
मैं देख रहा हूं
अथाह जलराशि से
होड़ लेती तुम्हारी आंखें
सपनों से लबालब हैं
आत्मविश्वास का नमक
आत्मविश्वास का नमक
उमड़ा आ रहा है चेहरे पर
स्मित खिल रही है होंठों पर
तनी हुई ग्रीवा
और
गर्व के साथ उठा मस्तक तुम्हारा
करता है आश्वस्त
तुम निश्चित ही
छुओगी एक दिन वे सब ऊंचाईयां
जिनके लिए निकली हो तुम
दायरे और बन्धन तोड़कर
चली आई हो दूर दूर बहुत दूर
पहुंचोगी उन सब मंजिलों पर
जिन्हें
फिलहाल गुड़ी-मुड़ी करके समा रखा है
तुमने कंधे पर टंगे अपने झोले में।
0 राजेश उत्साही
(अपूर्वा का चयन हाल ही में अज़ीमप्रेमजी फाउंडेशन के लिए हुआ है। उनकी तस्वीर फेसबुक पर देखकर यह कविता उपजी है।
अपूर्वा की अनुमति से तस्वीर और कविता यहां प्रस्तुत है। शुक्रिया अपूर्वा। शुक्रिया
विपुल नाकुम खूबसूरत तस्वीर लेने के लिए।)