शनिवार, 28 जनवरी 2012

नेता माने



आरोप-प्रत्‍यारोप
की राजनीति में लिप्‍त
एक नेता से हमने कहा,
‘‘आप क्‍यों नेता शब्‍द को बदनाम कर रहे हैं? ’’
रोष में बोल वे,‘‘बदनाम !
अरे हम तो ‘नेता’ शब्‍द को चरितार्थ कर रहे हैं।’’
हमारी समझ में कुछ नहीं आया
तब उन्‍होंने बड़े प्‍यार से समझाया,
‘‘आप जानें या न जानें
‘नेता’ का उल्‍टा होता है ‘ताने’ ।’’
               0 राजेश उत्‍साही
(कंचनप्रभा 1979 के स्‍वाधीनता विशेषांक में प्रकाशित)

बुधवार, 25 जनवरी 2012

गणतंत्र बनाम गमतंत्र



                                        फोटो : राजेश उत्‍साही
छूटते हुए आसमान
और खिसकती हुई जमीन पर
कब तक खड़ा रह पाऊंगा मैं
अपना संतुलन बनाए
कब तक ?

माना कि मेरे हाथ में है कलम
और स्‍वतंत्र हूं मैं
 चाहे जिस पर लिखने के लिए
पर सवाल यह है 
कि क्‍या
बिके हुए गणतंत्र में
उभर पाएगी मेरी अभिव्‍यक्ति
तुम्‍हारे अखबारी दिमागों में ?
0 राजेश उत्‍साही  

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

स्‍वागत नए साल का



                                                                       फोटो : राजेश उत्‍साही 
पूछा मैंने
दोस्‍त से,
कैसे किया नए साल का
स्‍वागत ?

'बांधकर
कैलेंडर में
लटका दिया है
दीवार पर!'
वह बोली।

ठीक किया
अब रखना उसे
संभालकर,मैंने कहा।

सहेजना,जीना,
उसका हरेक दिन
कड़ी नजर रखना उन पर।

वरना
मौका मिलते ही
ति‍तलियों की तरह
गायब हो जाएंगे वे अनंत आकाश में
और तुम कहती
रह जाओगी
पता नहीं कहां चला गया नया साल
और
नए साल के दिन।
0 राजेश उत्‍साही

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