राजेश उत्साही
गुल्लक
यायावरी
शुक्रवार, 30 जून 2017
मन बनाम गूलर
मन
तुम गूलर हो
फूल खिलते हैं
पर नजर नहीं आते
अंदर
चुपचाप चलता है
स्त्रीकेसर-पुंकेसर का मिलन
और फिर
एक दिन यकायक
प्रेम के सुर्ख
गूलर
जीवन के हरेपन पर
मन
तुम गूलर क्यों हुए ?
0 राजेश उत्साही
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
LinkWithin