सोमवार, 28 नवंबर 2011

आत्‍मविश्‍वास



एकलव्‍य में कार्यरत दीपाली शुक्‍ला ने हाल ही में कैमरा खरीदा है। और वे पिछले कुछ दिनों से फोटोग्राफी में हाथ आजमा रही हैं। वे कविताएं और कहानियां लिखती रहीं हैं। मुझे यह देखकर सुखद आश्‍चर्य हो रहा है कि उनकी उतारी तस्‍वीरें भी किसी कविता से कम नहीं हैं। पिछले दिनों भोपाल के मानव संग्रहालय का भ्रमण करते हुए उन्‍होंने कुछ तस्‍वीरें उतारीं। इन्‍हें उन्‍होंने फेसबुक पर सबके साथ साझा किया है। इनमें से दो तस्‍वीरों ने मुझे बेहद रोमांचित किया है। पहली आप ऊपर देख रहे हैं। इस तस्‍वीर को देखते हुए मेरे अंदर की कविता कुछ इस तरह बाहर आई। शुक्रिया दीपाली।

अब तक हमने
मिट्टी और गोबर से लिपी खिड़कियों से
झांककर बाहर
का खुला आसमान देखा था
देखा था अंधेरी कोठरियों की नन्‍हीं दरारों से
सूरज को उगते हुए

पर अभी अभी जाना है हमने कि
कितना अनोखा है
खुले आसमान के नीचे
खड़े होकर
देखना अपने अंतस को

हमारे होठों पर
यह मुस्‍कराहट  
उस आजादी की है
जो हमने पाई है अपने आपसे लड़कर

हमारी
इस आंकी बांकी नजर को
मत समझ लेना मासूमियत की अदा
बेशक लावण्‍य हममें कूट कूटकर भरा है
पर सहेजने के लिए उसे
हद दर्जे तक टूटना होता है अपने में
हर वर्जना से, हर दंभ से

और इस भ्रम में मत रहना कि
दमकता हुआ हमारा मुख
सूरज के प्रकाश से आलोकित है
चेहरे पर यह आभा
उस आत्‍मविश्‍वास की है
जिसे खोजा है हमने
अपने अंदर गहरे उतरकर ।

0 राजेश उत्‍साही
(29 नवम्‍बर,2011,बंगलौर)

बुधवार, 23 नवंबर 2011

सब कुछ ठीक है...!


                                                                        फोटो: राजेश उत्‍साही
सब कुछ ठीक है
अच्‍छा खासा है हीमोग्‍लोबिन
इससे पर्याप्‍त मात्रा में मिलेगी ऑक्‍सीजन आपको
कोलेस्‍ट्राल नियंत्रण में है
और ब्‍लडप्रेशर भी
बस शुगर हो गई है 148 ‍
मेडीकल रिपोर्ट देखते हुए
मुझसे आधी उम्र के डॉक्‍टर ने कहा

पूछा नहीं उसने
बस दे दीं हिदायतें
नो स्‍मोकिंग
नो अल्‍कोहल

तिरेपन के हो गए हैं आप
जॉंगिंग मत करिए, हां पैदल जरूर चलिए
कम से कम चार किलोमीटर रोज
और हां मीठे से कर लीजिए तौबा
पर डायटिंग मना है आपके लिए
*

ऑक्‍सीजन....मिलेगी तब, जब होगी
अभी तो हम‍ जिंदा हैं जहरीली होती हवा पर
बीड़ी, सिगरेट और धुंए वाली किसी चीज का नशा
किया नहीं अभी तक हमने
पर डॉक्‍टर 
उस ‘स्‍मोक’ का क्‍या करें जो न चाहते हुए भी
जब तब चला आता है फेंफड़ों में

और...अल्‍कोहल तो केवल
बोतलों में नहीं मिलता डॉक्‍टर
आंखों में भी होता है और रूप में भी
उससे कैसे बच सकते हैं अपन

रही मीठे से तौबा की बात
तो कड़वे से अपना जन्‍म जन्‍म का नाता है
इसीलिए मीठा खाकर मीठा बोलने की जुगत में रहते आए हैं
अब उस पर भी प्रतिबंध !

डायटिंग ! यह किस चिडि़या का नाम है ?
हां भूखे रह जाने को आप डायटिंग कहते हैं
तो कह सकते हैं

पूरा जीवन ही यहां
जॉगिंग करते यानी भागते-दौड़ते बीता है
आप कहते हैं पैदल चला कीजिए
यह कैसे संभव है ?

कुछ भी तो ठीक नहीं है
डॉक्‍टर
पर आप कहते हैं
तो मान लेता हूं कि
सब कुछ तो ठीक है।

0 राजेश उत्‍साही
(16 नवम्‍बर,2011, बंगलौर)

शनिवार, 12 नवंबर 2011

जन्‍मदिन बंगलौर में


अपनी परछाईं के सामने : फोटो -राजेश उत्‍साही 

अब से
तीन बरस पहले तक
हर जन्‍मदिन पर
मां करती थीं माथे पर तिलक
उतारती थीं आरती
और बनाती थीं आटे में गुड़ घोलकर
गुलगुले

मां
वहीं हैं
मैं ही चला आया हूं
दूर उनसे

अब से
तीन बरस पहले तक
जन्‍मदिन पर
कभी बाबूजी स्‍वयं और
कभी-कभी उनका आर्शीवाद आता था
टेलीफोन की घंटी के साथ
'खुश रहो'

बाबूजी
अब नहीं हैं
मैं भी तो चला आया था
दूर उनसे

अब से
तीन बरस पहले तक
पिछले 23 बरसों से
पहली शुभकामना नीमा ही देती थीं
नीमा वहीं हैं
मैं भी वहीं हूं
भले ही चला आया हूं दूर उनसे

अब से
तीन बरस पहले तक
सुबह-सुबह गोलू-मोलू
आंख मलते-मलते
'हैप्‍पी बर्थडे पापा' कहते हुए लजाते थे

वे अब भेजते हैं
एसएमएस
क्‍योंकि नहीं हूं मैं पास उनके
चला आया हूं दूर

अब से तीन बरस पहले तक।
                0 राजेश उत्‍साही




बुधवार, 2 नवंबर 2011

प्रेम : नर्मदा किनारे

।।एक।।
मेरे तुम्‍हारे
बीच का फासला
जैसे सात समन्‍दर पार की दूरी

सात समन्‍दर पार जाना
शायद
अब भी हमारी
संस्‍कृति के खिलाफ है।

।।दो।।
चुप-चुप सी
ऊपर से
अंदर-अंदर ही आंदोलित
नर्मदा 
और दूर रेत पर
जलती आग
जैसे मेरा दिल हो।

।।तीन।।
उतर आया है
पूरनमासी का चांद
नर्मदा के नीर में
प्रतिबिम्‍ब में नजर
आ रहा है तुम्‍हारा चेहरा
ठीक वहीं,
जहां काला दाग है चांद में।
0 राजेश उत्‍साही 

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