फोटो : राजेश उत्साही |
वह
एक मासूम चिडि़या
मेरी तस्वीर पर
अपना घोंसला
बनाना चाहती है
वह आशाओं
और सपनों के तिनके
जमा कर रही है मेहनत से
तस्वीर में
मेरे होंठों पर अपनी
चोंच मारकर पूछती है
अपना घोंसला बनकर रहेगा न !
मैं
उस मासूम चिडि़या को
कैसे समझाऊं कि
बड़े-बड़े डैनों और पंजों
वाले बाज
इंतजार कर रहे हैं उस वक्त का
जब वह
बनाकर अपना घोंसला
खुशी से फूली न समाना चाहेगी
तभी वे उसके घोंसले को
तहस-नहस कर खुशी को गम में बदल देंगे
नोच लेंगे
सुन्दर सुन्दर पंख
और फिर छोड़ देंगे असहाय
न वह उड़ सकेगी
ख्याबों के आसमान में
न तैर पाएगी
मधुर स्मृतियों के समंदर में
वह सिर्फ काम आएगी
गरम गोश्त के व्यापारियों के
वह एक मासूम चिडि़या......!
0 राजेश उत्साही
(लगभग 30 बरस पहले लिखी गई यह कविता 20 मार्च को गौरया दिवस पर याद हो आई। यह 1984 के आसपास कथाबिंब,मुम्बई पत्रिका द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह में मौजूद है।)