गुलमोहर

  • राजेश उत्‍साही
  • गुल्‍लक
  • यायावरी

मंगलवार, 8 मार्च 2016

औरतें


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गुलमोहर के बहाने

सत्रह की उम्र में प्रेम के ताप ने हृदय को इतना तपाया कि कविता का लावा बह निकला। कुछ की आंच वहां पहुंची भी जिनके लिए वे लिखीं गईं थीं। और कुछ ठंडी होती गई राख के नीचे दब गईं। बरसों बाद इन कविताओं की राख हाथ आई तो लगा, ‘इनमें अब भी आग है।’
*
कुछ में चिरपरिचित बिम्ब हैं तो शायद कुछ अपने में अनोखी।
आप इन्‍हें पढ़ रहे हैं, मैं शुक्रगुजार हूं। आग्रह है कि ये फूल आपको कैसे लगे यह भी बताते जाएं।
*
गुलमोहर में दिसम्‍बर 2011 के कुछ पहले तक प्रकाशित कविताएं अब संग्रह 'वह, जो शेष है' में उपलब्‍ध हैं।

मेरा पहला कविता संग्रह

मेरा पहला कविता संग्रह
आवरण : देवप्रकाश चौधरी

थोड़ा-बहुत

मेरी फ़ोटो
राजेश उत्‍साही
बंगलौर, कर्नाटक, India
अपने होने की सार्थकता की तलाश में दर-बदर। गुल्‍लक, यायावरी और गुलमोहर के माध्‍यम से समय से मुठभेड़ जारी है। मेरे किए-धरे को जानने में रुचि हो तो देखें 'एक नजर में राजेश उत्‍साही ।'
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  • एक नजर में राजेश उत्‍साही

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