रविवार, 11 मार्च 2012

खुशी


खुशी
एक चिड़िया

बैठी पल दो पल कहीं 
फुर्र से उड़ गई 
आया जो मन में तो 
कुछ समय के लिए 
किसी तरू से जुड़ गई । 
    
0 राजेश उत्‍साही 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर बिम्ब ... खुशी चिड़िया की तरह ही एक जगह से दूसरी जगह उड़ती रहती है ...

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  2. भागती ट्रेन की खिड़कियों से
    दिखते हैं
    बिजली के तार
    तार पर दिखती है
    क्षण भर के लिए
    सुनहरे पंखों वाली
    चिड़िया
    और फिर
    पहले की तरह
    थरथराने लगती है ट्रेन
    लोहे की पटरियों पर

    सामने बैठी
    नन्हीं बच्ची पूछती है
    अपने पिता से
    पापा!
    उस चिड़िया का क्या नाम था ?
    पिता मुस्कुराते हुए कहते हैं
    खुशी।
    ....आपके एहसास को पढ़कर अपनी यादें ताजा हो गईं। कभी हमने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया था।

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    उत्तर
    1. बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.

      मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर आपका हार्दिक स्वागत है, कृपया पधारें.

      हटाएं
  3. अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे लिए तो आपकी छोटी-छोटी रचनाओं में ही बड़ी-बड़ी खुशियाँ समाई हैं!!

    जवाब देंहटाएं
  5. चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने आपकी पोस्ट " खुशी " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    मेरे लिए तो आपकी छोटी-छोटी रचनाओं में ही बड़ी-बड़ी खुशियाँ समाई हैं!!

    जवाब देंहटाएं
  6. कई बार एक पल की खुशी भी जीवन भर की खुशी दे जाती है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. .बहुत सुन्दर सटीक कृति ..
    ...सच खुशियाँ ऐसी ही हाथ में आकर फुर्र हो जाती हैं ..

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  8. कितनी मासूम , कितनी डरी हुई ... ख़ुशी एक चिड़िया , आई और फुर्र्र हो गई

    जवाब देंहटाएं
  9. राजेश जी , चाँद लाइनों में जीवन की सच्ची बयां कर दी आपने .
    पल दो पल की खुशियों से ही महसूस होती है उसकी कीमत .
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  10. हाँ ,बड़ा मुश्किल होता है चिड़िया को रोके रखना !

    जवाब देंहटाएं
  11. कभी-कभी थोड़ी खुशी भी बड़ा आनंद देती है !

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  12. bahut acchhi rachna...kam shabdon me jyada kahne kii khubi sbhi me nahi hoti..khushi kii paribhasha kitni sacchi..dhanywaad

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गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

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