मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

नूर मोहम्‍मद और उसका घोड़ा


नूर मोहम्‍मद
वल्‍द जहूर मोहम्‍मद
रहना बालागंज
तांगेवाला

चलाते हुए तांगा
दौड़ाते हुए तेज तांगा
फटकारते हुए चाबुक घोड़े पर
सोचता है
खूब ढोएगा सवारी
मिलेंगे खूब पैसे
सोचता है
खरीदेगा तांगे
एक,दो,तीन....बहुत सारे
चलाएगा
किराए पर सेठ की तरह

बनवाएगा
शकील की निकर,
सलमा की सलवार
और...और बेगम के लिए दुपट्टा
बनवाएगा
मकान,पक्‍का आलीशान
सोचता है..

यक ब यक
रुक जाता है घोड़ा
घोड़े को मालूम है
क्‍या सोचता है उसका मालिक

पर इस पूरे सोच में
उसका जिक्र क्‍यों नहीं है
क्‍यों नहीं है
सोच
उसके बारे में, उसकी सेहत के बारे में
उसकी खुराक के बारे में
उसके पूरे वजूद के बारे में

जबकि
नूर मोहम्‍मद का पूरा सोच
उस पर टिका है
टिका है उसका तांगा
मुझ घोड़े पर

नूर
जानता है
क्‍या सोचता है घोड़ा ऐसे में
तभी तो वह कह देता है
चल,चल यार चल
तेरी भी फिकर है मुझे

चल देता है घोड़ा
सोचकर कि
नूर सोचेगा
उसकी सेहत के बारे में
उसकी खुराक के बारे में
उसके पूरे वजूद के बारे में

पर नूर
नूर सोचता है
सिर्फ अपने बारे में
शकील,सलमा और बेगम के बारे में
मकान,आलीशान मकान के बारे में
         0 राजेश उत्‍साही

25 टिप्‍पणियां:

  1. संसदीय व्यवस्था और चुनाव प्रक्रिया का अच्छा चित्रांकन है!! और विडम्बना भी यही है कि महल बनाने वाला हमेशा फुटपाथ पर सोता है!!

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  2. घोड़े और नूर के माध्यम से इंसान की स्वार्थ की फितरत को अच्छा चित्रित किया है ....गहन बात ...आम जनता घोडा ही बनी हुई है ...चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाती है ...जब की जानती है कि क्या सोचा जा रहा है ...

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  3. गहन विचारों के साथ एक सच बयां करती अभिव्‍यक्ति ।

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  4. आपकी कविता की कहस बात यह होती है कि आप सहज विम्ब से गूढ़ बातें कह जाते हैं... फ़िज़ूल के शब्द नहीं होते... जो दृष्टि आप औरों की कविता को देते हैं वही दृष्टि अपने उत्कृष्ट रूप में आपकी स्वयं की कविता में भी होती है.. आपकी कविता पढ़ते समय मैं अपनी कविता की संरचना को सामने रखता हूँ और तब देखता हूँ कि शब्दों के मामले में आप कितने मितव्ययी हैं.. एक प्रभावशाली कविता... इस कविता को पढ़कर बाबा नागार्जुन की कविता 'मिलिटरी का बूढ़ा घोडा" की याद भी आ गई...

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. नूर मोहम्मद ..तांगे और घोड़े के माध्यम से, आज के हालात पर गहरा कटाक्ष किया गया है.....जनता यूँ ही पसीने बहाती रहती है...और नेताओं के वैभव में बढ़ोत्तरी होती रहती है.

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  7. गहन विचारों के साथ एक सच बयां करती अभिव्‍यक्ति| धन्यवाद|

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  8. मालिक चाभे दूध मलाई
    घोड़वा कबले घास चबाई
    .................
    ...........सर्वहारा वर्ग जाने कब से नए स्वप्न तले छला जा रहा है!
    सटीक बिंब के माध्यम से इनकी दशा को रोचक ढंग से अभिव्यक्ति किया है आपने।

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  9. आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ.मन अनुभूत हो गया आपकी भावपूर्ण सटीक यथार्थ/स्वार्थ को दर्शाती आपकी अनुपम कृति से.
    मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  10. वाह, इतनी बढिया कविता । यह कब लिखी आपने ।

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  11. नूर मुहम्मद , घोड़ा और ताँगा यह सब पात्र है आज के समाज के और समाज है स्वार्थी | आज की सच्चाई को बयां करती हुई रचना ,खुबसूरत अहसासों की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई

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  12. आपकी कविता में व्यापक संदेश निहित है। नूर मो० और उसके घोड़े के माध्यम से जो भावाभिव्यक्ति हुई है उससे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में व्याप्त विरोधाभास रेखांकित हुए हैं। यह इस रचना की सार्थकता है। पाठक के चिंतन को झकझोरने वाली रचना के लिए साधुवाद!
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  13. नूर मो० और उसके घोड़े के माध्यम से सच्चाई को बयां करती हुई रचना के लिए धन्यवाद|

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  14. नूर मुहम्मद, घोडा और तांगे के बहाने आपने व्यवस्था पर तीखा प्रहार किया है .. एक सजीव मार्मिक चित्रण ......... समाज के सबसे निचले स्तर पर बैठा आदमी इसी आस में तो जीता रहता है कि कभी तो उसको भी एक दिन कोई ख्याल रखने वाला समझने वाला कोई अपना मिलेगा ... लेकिन जब कुछ नहीं होता है तो यह समझ लिया जाता है कि अपना-अपना भाग्य.....

    सार्थक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

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  15. बहुत गारी सोच दिखाती है आपकी कवितामे
    बस इतनी सी .....

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  16. स्वातन्त्र्योत्तर भारत में नूर मोहम्मदों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और आकांक्षा के अनुरूप उन सबने अपने लिए, शकील के लिए, सलमा और बेगम के लिए इस देश से स्विस बैंक तक अपने घोड़े दौड़ा रखे हैं। नूर मोहम्मद कहता है कि--चल, चल यार, तेरी भी फिकर है मुझे--घोड़े बस इस एक ही बात से खुश हैं,खाये जा रहे हैं चाबुक और दौड़े जा रहे हैं, दौड़े जा रहे हैं…।

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  17. आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ.मन प्रशन्न हो गया, बहुत आचा लिखते हैं आप..... नूर मोहम्मद तांगे वाले के मनोभावों बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से चित्रण किया आपने..... ..आभार.

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  18. noor ki soch ek aam aadami ki soch hai jo sirf apne aur apno ke irdgird hi hoti hai... sunder rachna .

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  19. इंसान की फितरत ही है केवल अपने बारे में सोचना....
    बहुत अच्छी रचना...

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  20. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
    बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
    अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
    आपका मित्र दिनेश पारीक

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  22. SATIK VYNG. @ UDAY TAMHANEY.+BHOPAL.SMS TO 9200184289

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गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

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