सोमवार, 19 अप्रैल 2010

कविता की परिभाषा

कविता करना,लिखना या कहना जितनी मेहनत का काम है उसे सुनना या पढ़ना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब मैंने कविता लिखना शुरू किया तो उसे एक बेकार का काम समझा जाता था। शायद अभी कुछ लोग ऐसा ही समझते होंगे। अठारह से छब्बीस-सत्ताईस साल की वय का समय मैंने होशंगाबाद में गुजारा है। होशंगाबाद के बारे में यह कहावत मशहूर थी कि हर पांचवे घर में एक कवि है। कवियों को लोग कट्टेबाज कहा करते थे। कट्टा यानी छोटी डायरी। आमतौर हर कवि एक ऐसी डायरी साथ में रखता था और जब मौका मिला अपनी कविता सुनाना शुरू कर देता था।

संयोग से मैंने ऐसा कभी कुछ नहीं किया। लगभग हर हफ्ते किसी ने किसी कवि के घर रात में दो-तीन बजे तक कविता सुनने-सुनाने का दौर चलता था। यह भी सच है कि इन गोष्ठियों में अधिकांश समय सब एक-दूसरे की कविता की प्रशंसा ही करते रहते थे। आलोचना या समालोचना का मौका कम ही होता था।

बहरहाल कविता की खिल्ली उड़ाने वाले लोगों से मेरा सामना अक्सर होता रहा है। ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर मैंने कभी कविता को अपने शब्दों में परिभाषित करने का प्रयत्न किया था। ये तथाकथित परिभाषाएं यहां प्रस्तुत हैं।

एक
जो आए दिल में व्यक्त करे
असर अपना हर वक्त करे
मंदिर की घंटियां भी है और
मस्जिद की अजान है कविता

दो
जतन से रखती है दुनिया जो
जानते भी नहीं हैं गुनिया जो
बेशकीमती खजाना है जिसमें
ऐसे दिलों का राज है कविता

तीन
जिन्दगी की सच्चाई सीने में
मजा़ भी है घुटकर जीने में
परत दर परत खुलती जाती है
हकीकतों की प्याज है कविता
                     **राजेश उत्साही

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रारम्भिक दौर में लिखी गई इस सुन्दर कविता की और भी कुछ अच्छी पंक्तियाँ है जो कही मुझे भी पढने मिल गईं थी---
    जमाने से हैं जो दर्द मिले।
    चोट,जख्म,हैं गिले शिकवे।
    मन की है जमा पूँजी जो,
    उसका चक्रव्रद्धि ब्याज है कविता।
    गिरिजा कुलश्रेष्ठ,

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह क्या बात है पूरी कर दी परिभाषा आपने.

    जवाब देंहटाएं

गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails