मंगलवार, 3 नवंबर 2009

आदमी का मन

आदमी
का मन
हरम है


अंत:पुर में
सबको रखता है
चाहा हो पल भर के लिए
या किया हो
मरते दम तक का संकल्प

आदमी
का मन
चंचल पक्षी है
भटकता है
दूर-दूर
बैठ आंगनों की मुंडेर पर
लौटता है अपने चौबारे में

मन
आदमी का
पालतू पशु है
दिन-दिन भर
करके आवारागर्दी
पहुंचता है खूंटे पर

ताजुब्ब
न करें कि
मैं भी आखिर
आदमी हूं !
**राजेश उत्सा्ही
(2000 की किसी तारीख को)

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविता लिखी है आपने ।
    नाम जैसा उत्साह बनाए रखें ।
    मेरे ब्लोग पर नज़र डालें ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी कविता को देख कर लगता है आप बहुत सुलझे हुये व्यक्ति हैं.
    बड़ा सुन्दर ब्ळॉग है आपका. बधाई आपको.

    आपका ही सस्नेह
    चन्दर मेहेर

    कृपया मेरे ब्ळॉग पर ज़रूर पधारियेगा

    lifemazedar.blogspot.com
    kvkrewa.blogspot.com
    kvkrewamp.blogspot.com
    avtarmeherbaba.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाएँ और अपने सुन्दर
    विचारों से अवगत कराएँ

    जवाब देंहटाएं
  4. मन
    आदमी का
    पालतू पशु है
    दिन-दिन भर
    करके आवारागर्दी
    पहुंचता है खूंटे पर


    ताजुब्ब
    न करें कि
    मैं भी आखिर
    आदमी हूं !

    मन का बहुत सुन्दर और यथार्थ वर्णन किया है आपने...!

    --
    शुभेच्छु

    प्रबल प्रताप सिंह

    कानपुर - 208005
    उत्तर प्रदेश, भारत

    मो. नं. - + 91 9451020135

    ईमेल-
    ppsingh81@gmail.com

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  6. ACHCHHI PRASTOOTI. @ UDAY. TAMHANEY.+BHOPAL.MOBI.9200184289

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  7. मन का कहना मत टालो...इसको खूंटे में न डालो...यही तो स्पेस है...जहाँ अपनी मर्ज़ी चलती है...

    जवाब देंहटाएं

गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

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