दैनिक भास्कर के सौजन्य से (होशंगाबाद, मप्र से छोटे भाई अनिल ने खबर दी है। वहां इतनी बारिश हुई है कि घर में पानी भर गया है। 1982 में भी ऐसे ही हालात हुए थे। तब यह कविता लिखी गई थी।) |
नर्मदा में
निरंतर चढ़ रहा है पानी
चेतावनी
देती सरकारी जीप
सारी रात
दौड़ती रही
निचली बस्तियों के
रहवासियो
करो खाली करो झोपडि़यां
पहुंचों स्कूलों में
शरण शिविरों में
मां नर्मदे
निरंतर चढ़ रही हैं
खतरे का निशान,
अब पार किया,तब पार किया
काले महादेव डूब गए हैं
कहते हैं काले महादेव डूब गए
यानी
पानी शहर में होगा
नर्मदा आ गई है
सुभाष चौक तक
घुटने-घुटने पानी में
खड़े लोग देख रहे हैं
विकराल रूप
बाजार में छाया है
भय
आज का नहीं
73 की बाढ़ का
सेठिए
खाली कर रहे हैं
दुकानें
घबराए हुए
मुख्य बाजार
इतवारा बाजार
लद रहा है ट्रकों और हाथ ठेलों पर
लगाया जा रहा है
ऊंची और सुरक्षित अट्टालिकाओं में
मैंने देखा
ठेठ नर्मदा की
पिचन पर
बनी झोपडि़यों में
गाई जा रही है आल्हा
उसी लय में
जिस लय में चढ़ रही है
नर्मदा निरंतर ।
0 राजेश उत्साही
डरें वो
जवाब देंहटाएंजिनकी जड़ें हों
बरगदी
अधर में लटके हुए को
क्या फिकर!
प्रारंभिक पंक्तियों को पढकर लगा कि मैं भी पटना के सन १९७५ की बाढ़ का दृश्य देख रहा हूँ.. नर्मदा की जगह गंगा, काले महादेव की जगह देवी-स्थान, सुभाष चौक की जगह बुद्ध मार्ग.. सब कुछ हू-ब-हू वैसा ही.. और अचानक अंतिम पंक्तियों ने झकझोर कर रख दिया.. जो बात भाई देवेन्द्र पाण्डेय जी ने कही उसके बाद कहने को कुछ नहीं बचा!! बहुत खूब बड़े भाई!!
जवाब देंहटाएंकल हमारे घर(बगीचे में पानी भर आया था )३-३ फुट....
जवाब देंहटाएंमगर हम तो सफाईयों में जुटे...कविता नहीं लिखी :-)
सुन्दर रचना
सादर
अनु
बाढ़ का आँखों देखा वर्णन जैसा लगा ये कविता पढ़ कर .... और दिल्ली में तो बारिश ही नहीं हो रही है :(
जवाब देंहटाएंझोपड़ियों और पक्के मकानों के अपने भय - आनंद भिन्न हैं !
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति के माध्यम से बिल्कुल सटीक व्याख्या की है बाढ़ की स्थिति की ... आभार इसे साझा करने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंअन्तिम पंक्तियाँ कविता की जान हैं ।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी ने सार कह दिया|
जवाब देंहटाएंबाढ़ पर एक सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबाढ़ की विभीषिका और उससे उपजे दृश्य सजीव हो उठे हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है राजेश जी
जवाब देंहटाएंGHAR AANGAN ME
जवाब देंहटाएंBHAR JAANE PAR
BAADH KA PAANI
NAASTIK BHI KAH
UTHATE HAI
HE ! BHAGAWAAN !
JI SIR JI.
JI SIR JI
हटाएंUDAY TAMHANE