बुधवार, 5 जुलाई 2017

उम्‍मीद

उम्‍मीद
साथ हो तो
परछाईं भी
बगलगीर होती है

वरना
भंवर में छोड़कर जाने
वालों की क्‍या कमी है।

0 राजेश उत्‍साही

शनिवार, 1 जुलाई 2017

मौन

ये
दो मिनट के
मौन का वक्‍त नहीं है

वक्‍त है
उन्‍हें मौन कराने का
जो उगलते रहते हैं
मानवता
के
खिलाफ
अनर्गल ।

0 राजेश उत्‍साही 

शुक्रवार, 30 जून 2017

मन बनाम गूलर

मन
तुम गूलर हो

फूल खिलते हैं
पर नजर नहीं आते

अंदर
चुपचाप चलता है
स्‍त्रीकेसर-पुंकेसर का मिलन

और फिर
एक दिन यकायक
प्रेम के सुर्ख
गूलर
जीवन के हरेपन पर

मन
तुम गूलर क्‍यों हुए ?

0 राजेश उत्‍साही 



LinkWithin

Related Posts with Thumbnails