शनिवार, 28 जुलाई 2012

अपूर्वा


                                                                                                                     फोटो :विपुल नाकुम 
अपूर्वा
खड़ी हो तुम
जिंदगी की गीली रेत पर
कोई बात नहीं
धंसने दो पैरों को
वे यथार्थ की ठोस जमीन
जल्‍द ही पा लेंगे

बस
अपनी नजर लक्ष्‍य पर
इसी तरह गढ़ाए रखना

मैं देख रहा हूं
अथाह जलराशि से
होड़ लेती तुम्‍हारी आंखें
सपनों से लबालब हैं

आत्‍मविश्‍वास का नमक
उमड़ा आ रहा है चेहरे पर
स्मित खिल रही है होंठों पर
तनी हुई ग्रीवा
और
गर्व के साथ उठा मस्‍तक तुम्‍हारा
करता है आश्‍वस्‍त

तुम निश्चित ही
छुओगी एक दिन वे सब ऊंचाईयां
जिनके लिए निकली हो तुम
दायरे और बन्‍धन तोड़कर
चली आई हो दूर दूर बहुत दूर

पहुंचोगी उन सब मंजिलों पर
जिन्‍हें
फिलहाल गुड़ी-मुड़ी करके समा रखा है 
तुमने कंधे पर टंगे अपने झोले में।
                                    0 राजेश उत्‍साही
(अपूर्वा का चयन हाल ही में अज़ीमप्रेमजी फाउंडेशन के लिए हुआ है। उनकी तस्‍वीर फेसबुक पर देखकर यह कविता उपजी है। अपूर्वा की अनुमति से तस्‍वीर और कविता यहां प्रस्‍तुत है। शुक्रिया अपूर्वा। शुक्रिया विपुल नाकुम खूबसूरत तस्‍वीर लेने के लिए।)

शनिवार, 7 जुलाई 2012

बंगलौर बस में : दो


                                                                          फोटो : राजेश उत्‍साही 
लड़कियां,
जवान,
और बूढ़ी महिलाएं
खड़ी हैं अपनी तयशुदा सीट के सामने
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्‍चे
और दूसरे हाथ से थामे
किसी सीट की पीठ
या ऊपर लगा सहारा
वे 
शायद संतुष्‍ट हैं
केवल बस में चढ़कर

लड़के,
जवान,अधेड़ हैं कि
बैठे हैं
अपनी बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां के साथ
बेफिकर,बेशरम
अनदेखा करते हुए उन्‍हें जो हैं उन जैसी 
अनदेखा करते हुए लिखी हुई इबारत  

न कंडक्‍टर 
न ड्रायवर    
न बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां को
न‍ किसी अन्‍य
यात्री को है इस बात से सरोकार

बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां
कब करेंगी शरम
या कि प्रेरित
अपने भाई,प्रेमी,पति,पिता या बेटे को उठने के लिए
ताकि पा सके अपना हक उन जैसा कोई और   

मुझे है इंतजार ।
0 राजेश उत्‍साही 

सोमवार, 2 जुलाई 2012

बस में : एक


                                                                         फोटो : उत्‍सव पटेल
लड़कियां,
जवान,
और बूढ़ी महिलाएं
खड़ी हैं अपनी तयशुदा सीट के सामने
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्‍चे
और दूसरे हाथ से थामे
किसी सीट की पीठ
या ऊपर लगा सहारा
वे 
शायद संतुष्‍ट हैं
केवल बस में चढ़कर

लड़के,
जवान,अधेड़ हैं कि
बैठे हैं बेफिकर,बेशरम
देखते हुए उन्‍हें
लिखी हुई इबारत को
करते अनदेखा

न कंडक्‍टर
न ड्रायवर और
न अन्‍य किसी
को है इस बात से सरोकार

ल‍ड़कियां,
जवान
और बूढ़ी महिलाएं
कब हड़काएंगी लड़कों,जवान या अधेड़ों को
छीनने के लिए
अपना हक

मुझे भी है इंतजार ।
0 राजेश उत्‍साही 

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