जवान,
और बूढ़ी महिलाएं
खड़ी हैं अपनी तयशुदा सीट के सामने
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्चे
और दूसरे हाथ से थामे
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्चे
और दूसरे हाथ से थामे
किसी सीट की पीठ
या ऊपर लगा सहारा
वे
शायद संतुष्ट हैं
केवल बस में चढ़कर
लड़के,
जवान,अधेड़ हैं कि
बैठे हैं बेफिकर,बेशरम
देखते हुए उन्हें
लिखी हुई इबारत को
करते अनदेखा
करते अनदेखा
न कंडक्टर
न ड्रायवर और
न अन्य किसी
को है इस बात से सरोकार
लड़कियां,
जवान
और बूढ़ी महिलाएं
कब हड़काएंगी लड़कों,जवान या अधेड़ों को
छीनने के लिए
अपना हक
अपना हक
मुझे भी है इंतजार ।
0 राजेश उत्साही
अपने हक के लिए खुद ही आगे बढ़ना होगा ....सुंदर रचना .... संकेत देती हुई
जवाब देंहटाएंपहल कौन करे...अब यही बड़ी समस्या है !
जवाब देंहटाएंमहिला सीटों पर जमे, मुस्टंडे दुष्ट लबार |
जवाब देंहटाएंइसीलिए कर न सके, नारी कुछ प्रतिकार |
नारी कुछ प्रतिकार, ज़माना वो आयेगा |
जाय जमाना भूल, नहीं पछता पायेगा |
रविकर हक़ लो छीन, साथ है मेरा पहिला |
बढ़ो करो इन्साफ, अकेली अब न महिला ||
शुक्रिया रवि जी।
हटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' जुलाई का महीना ''
यहाँ ...जब पहले आप नही ...पहले मैं होगा ..तब ?
जवाब देंहटाएंअशोक जी, शुक्रिया। पर आपका सवाल समझ में नहीं आया।
जवाब देंहटाएंमनभावन प्रस्तुति ।।
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी !
सूचनार्थ!
शुक्रिया रवि जी।
हटाएंअब शुरुआत तो कर दी है महिलाओं ने बस उसकी रफ़्तार बहुत धीमी है…………सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रेरक/सार्थक कविता।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंमुंबई की बसों में तो यह इंतज़ार ख़त्म हो गया है....यहाँ महिलाएँ बिलकुल कड़क आवाज़ में उठा देती हैं....अपने लिए सुरक्षित सीटों पर से.
हाँ ,बाकी शहरों में अभी भी महिलाओं की इस एटीच्यूड का इंतज़ार ही है.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंलीजिए आपकी टिप्पणी स्पेम से बाहर आ गई है। साथ में कुछ और टिप्पणियों को भी मुक्ति मिल गई। शुक्रिया।
हटाएं*
जब बंगलौर नया नया आया था तो एक बार अनजाने में महिलाओं की सीट पर बैठ गया। दो तीन लड़कियां मुझे घूरती रहीं, लेकिन उन्होंने कहा कुछ नही। लेकिन जब एक हमउम्र महिला बस में चढ़ी तो उसने देखते ही 'कड़क' आवाज में कहा यह महिलाओं की सीट है। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ और मैं इस कदर झेंपा कि अगले स्टाप पर उस बस से ही उतर गया। लेकिन उस दिन के बाद मैं फिर कभी महिलाओं की सीट पर नहीं बैठा। महिला सहयात्री होने के बाद भी।
प्रेरक प्रकरण ...सन्देश में सफल सृजन बधाईयाँ जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंशायद समय ही बतायगा ये तो ...
जवाब देंहटाएंघटना क्रम कों आईने की तरह उतारा है आपने कलम द्वारा ...
राजेश जी ये तो हर जगह देखता हूँ, यहाँ दिल्ली में अब मेट्रो में देख रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता है!!
तस्वीर से bmtc के बसों की याद आ गयी!
जवाब देंहटाएं