कब्बू ने कहा
एक दिन
पापा मत जाओ
दफ्तर
छुट्टी है आपकी
खेलो हमारे साथ
कब्बू ने बनाया घोड़ा
बैठा पीठ पर
हांका घोड़े को
कहा थक गया तो बैठ
पानी पी
चल टिक टिक...
भूख लगी
तो दाना खा
चल टिक टिक...
घोड़े ने
सिर घुमाकर देखा
उसकी तरफ
वह मुस्कराया
और घोड़े की सारी
थकान दूर हो गई।
।।दो।।
देखकर
आइने में चेहरा अपना
आजकल चौंक जाता हूं मैं
पिता अब नहीं हैं
क्यों याद आते हैं इस तरह वे?
।।तीन।।
पिता होना
न होने पर पिता के
न होने पर पिता के
अधिक महसूस होता है
होते हैं जब तक वे
हम बेफिक्री
महसूस करते हैं।
महसूस करते हैं।
0 राजेश उत्साही
UOOPH ! WAH ! UDAY TAMHANEY B.L.O. BHOPAL
जवाब देंहटाएं..........
जवाब देंहटाएंवह मुस्कराया
और घोड़े की सारी
थकान दूर हो गई।
...इसे पढ़ने के बाद मैं देर तक पिता और उन पर लिखी अपनी कविता में खोया रहा।
बधाई |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना सर जी ||
घोड़े की टिक टिक सुनी, नयनों में "उत्साह" |
बेफिक्री गायब हुई, चला पिता की राह |
शुक्रिया रवि जी।
हटाएंइतनी अधिक मिलने लगी है पिता से सूरत मेरी
जवाब देंहटाएंकि देखकर आइने में खुद को आजकल चौंक जाता हूं ... समझ सकती हूँ .
कविता का मर्म आप तक पहुंचा..सफल हुआ।
हटाएंजब तक पिता होते हैं तो बेफिक्री तो होनी ही है ...बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी । आपकी टिप्पणी पढ़कर मुझे अपनी एक गलती भी नजर आई, अब वह मैंने ठीक कर ली है।
हटाएंवह मुस्कराया
जवाब देंहटाएंऔर घोड़े की सारी
थकान दूर हो गई।
बहुत ही अनुपम भाव ... आभार
आपकी पिता प्रेम पूर्ण कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं |पिता श्री की छत्र छाया वास्तव में चिंतारहित होती है|
जवाब देंहटाएंपहली व दूसरी कविता तो द्रवित कर देने वाली है ।
जवाब देंहटाएंवह मुस्कुराई ...
जवाब देंहटाएंसच है थकान दूर हो जाती है ... दो वाली तो कविता बहुत गहराई से पिता होने का एहसास जगा जाती है ... शशक्त रचनाएं राजेश जी ...