बंगलौर में जहां मैं रहता हूं : राजेश उत्साही |
तीखे गरमी के तेवर हुए
गमछे गले के जेवर हुए
जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस मई के देवर हुए
बरसती आग में है पानी
सड़क पर नजर सेसर1 हुए
प्यास का मन अतृप्त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर2 हुए
देह नदी बही इस तरह
अपरिचित गंध केसर हुए
फिदा हम जिन अक्श पे
रंग उनके सब पेवर3 हुए
अपने नीम की छांव भली
हाय इस मौसम में बेघर हुए
0 राजेश उत्साही
(क्षमा करें, इसे ग़ज़ल की कसौटी पर न कसें।)
1. छल 2. मिट्टी के अधपके बर्तन 3. पीला