बंगलौर में जहां मैं रहता हूं : राजेश उत्साही |
तीखे गरमी के तेवर हुए
गमछे गले के जेवर हुए
जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस मई के देवर हुए
बरसती आग में है पानी
सड़क पर नजर सेसर1 हुए
प्यास का मन अतृप्त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर2 हुए
देह नदी बही इस तरह
अपरिचित गंध केसर हुए
फिदा हम जिन अक्श पे
रंग उनके सब पेवर3 हुए
अपने नीम की छांव भली
हाय इस मौसम में बेघर हुए
0 राजेश उत्साही
(क्षमा करें, इसे ग़ज़ल की कसौटी पर न कसें।)
1. छल 2. मिट्टी के अधपके बर्तन 3. पीला
बहुत खूब भाई साहब! जो भी है यह लाजवाब है.. बहुत से नए शब्दों से परिचय हुआ.. मौसम को उतार दिया है आपने..
जवाब देंहटाएंअंतिम छंद में वर्तनी की अशुद्धि है :)
मेरे विचार में यूं होना चाहिए:
अपनी नीमा की छाँव भली,
ऐसे मौसम में बेघर हुए!! सादर, सलिल!!
सलिल भाई अंतिम छंद में वर्तनी की अशुद्धि तो नहीं है। पर इस तरह भी पढ़ सकते हैं।
हटाएंहमने भी दोनो तरह से पढ़ा।:)
हटाएंआपके पद में अशुद्धि निकालना मेरे बस की बात नहीं बाबा भारती! तभी मुआफी के तौर पर स्माइली चिपका दिया था.. आपके पद को पढते हुए जो पहला विचार मन में आया वो वही था जो लिख दिया मैंने!!
हटाएंखड़कसिंह जी ये जो कम्प्यूटर की इस्माइली है यह केवल भेजने वाले को नजर आती है, जहां पहुंचती है वहां तो नजर ही नहीं आती। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा कम्प्यूटर इसे पढ़ता ही नहीं है।
हटाएंनीम की छाँव की चाह में बेघर!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
सादर.
देह नदी बही इस तरह
जवाब देंहटाएंअपरिचित गंध केसर हुए
बहुत खूब...गर्मी के मौसम का सुंदर बखान...
बनारस में ताप सहन नहीं हो रहा बंगलोर में तो और भी हाल बुरा होगा।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी बंगलौर ठंडा है। यानि की 30 के आसपास।
हटाएं!
हटाएंहाय, इस मौसम में बेघर हुए! क्या बात है!
जवाब देंहटाएंआपके भाव उतार लिए,गज़ल के तार नहीं छेड़े !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
गहन और उत्कृष्ट रचना ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
गर्मी के तीखे गर्म तेवर का सटीक चित्रण ..बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअभी शिर्डी से ४ दिन बाद कल ही लौटी हूँ ..गर्मी से बुरा हाल हुआ लेकिन साईं दर्शन अच्छे से हो गए यही अच्छा है ... बच्चों के साथ सफ़र उफ़ ..
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह ...बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंनीम की छाव भली
इस ग़ज़ल में कई ऐसे बिम्बों का प्रयोग हुआ है जो सर्वदा अनूठे हैं। खासकर देवर वाला - अब गरमी है तो है, देवर की तरअह चुहलबाजियां करता तो उसकी शैतानियों का आनंद ही क्यों न लिया जाए।
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना राजेश जी , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,राजेश जी,......
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
बढ़िया ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंवाह ... अलग सा एहसास देती है ये गज़ल ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब ...
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंतपती गर्मी के बहुत ही तीखे तेवर हुए ...