सोमवार, 30 सितंबर 2013

ख्‍याली पुलाव


(1)
परिवार
चाय बेचता था
रेल में ही सही
चाय होती तो थी

बेटा
ख्‍याली पुलाव बेचता है
ताजुब्‍ब की बात यह है कि
लोग खरीदते भी हैं।

(2)
देश में
बेरोजगारी खत्‍म होने वाली है 
ख्‍याली पुलाव पकाने का
धंधा आजकल जोरों पर है।
0 राजेश उत्‍साही  

बुधवार, 25 सितंबर 2013

फूल



                                                                    फोटो : राजेश उत्‍साही
फूल,
पौधे पर खिलें,
झाड़ी पर खिलें,
पेड़ पर खिलें,
या खिलें गमले में!

बगीचे में खिलें,
पहाड़ पर खिलें,
मैदान में खिलें,
या खिलें सरोवर में!

रेत में खिलें,
पत्‍थर में खिलें,
मिट्टी में खिलें
या खिलें कीचड़़ में!

फूलें,
जी भर फूलें,
पर न भूलें
उन्‍हें मुरझाना ही है!
0 राजेश उत्‍साही

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

प्रेम

प्रेम
समय की टहनी
पर खिला गुलाब है
 
भर सको
तो भर लो
आंखों में उसके रंग
फेफड़ों में सुंगध
झड़ जाएंगी
पखुंडि़यां प्रेम की।

प्रेम
जल है
बहती नदी का
अंजुरी भर प्रेमजल से
धोओ अपनी आंखें
अपना चेहरा और आत्‍मा भी
प्रेम पवित्र करता है

प्रेम
दरअसल
व्‍यक्‍त करने की नहीं
महसूसने की चीज है।

             0 राजेश उत्‍साही
(2000 की किसी तारीख को। उसे समर्पित जिसने इस कविता को पढ़कर मुझे फोन किया और कहा कि बहुत सुंदर है। जिसने यह कहा वह भी कम सुंदर नहीं है।)

बुधवार, 4 सितंबर 2013

दुनिया



हर सुबह
दुनिया कदमों तले होती है
शाम होते होते
कमबख्‍त 
कंधों पर सवार हो जाती है ।
0 राजेश उत्‍साही

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails