एकलव्य में कार्यरत दीपाली
शुक्ला ने हाल ही
में कैमरा खरीदा है। और वे पिछले कुछ दिनों से फोटोग्राफी में हाथ आजमा रही हैं।
वे कविताएं और कहानियां लिखती रहीं हैं। मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हो रहा है कि
उनकी उतारी तस्वीरें भी किसी कविता से कम नहीं हैं। पिछले दिनों भोपाल के मानव
संग्रहालय का भ्रमण करते हुए उन्होंने कुछ तस्वीरें उतारीं। इन्हें उन्होंने
फेसबुक पर सबके साथ साझा किया है। इनमें से दो तस्वीरों ने मुझे बेहद रोमांचित
किया है। पहली तस्वीर पर आधारित आत्मविश्वास कविता आप पढ़ चुके हैं। यह रही
दूसरी तस्वीर और उस पर आधारित कविता। पहली कविता प्रकाशित होने पर अदिति ने अपनी
टिप्पणी में लिखा कि तस्वीर की दो लड़कियों में से एक वह है। इस तस्वीर में
केवल अदिति ही है। एक बार फिर शुक्रिया, दीपाली और
अदिति ।
क्लांत नहीं हो तुम
नहीं हो तुम उदास
इंतजार नहीं है तुम्हें
उसका जिसे देखा नहीं है तुमने
सोचा नहीं है जिसके बारे में अब तक
मुझे पता है
तुम्हारे माथे पर
कोई सलवटें नहीं हैं
नहीं है तुम्हारी आंखों में खामोशी
झलक नहीं रहा है तुम्हारे चेहरे से तनाव
मुझे पता है
तुम्हारे कोमल पैरों के तलुए
अभी अछूते हैं छालों से
तुम्हारी ऐडि़यां परिचित नहीं है बिवाईयों से
मुझे पता है
मुझे तुमसे
बहुत उम्मीदें हैं
उम्मीदें इसलिए कि
तुम अंधेरी कोठरी से निकलकर
इस धवल लिबास में
पवित्रता की प्रतिनिधि लग रही हो
लग रही हो जैसे कोई हंसनी
आ बैठी हो पंख फैलाए
तुम्हारी दूधिया आंखों से
सुनहरे सपनों का उजास उमड़ा आ रहा है
मुझे तुमसे
बहुत उम्मीदें हैं
उम्मीदें इसलिए कि
कलाई में सजी
घड़ी परिचायक है
कि तुम समय की नब्ज पहचानना सीख रही हो
कलाई में बंधा और गले में पड़ा रंगीन धागा बता रहा है
कि अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों में आस्था है तुम्हारी
यूं गोबर लिपे फर्श पर आत्मीयता से बैठना
बताता है कि तुम जुड़ी हो जमीन से
मुझे तुमसे
बहुत उम्मीदें हैं
उम्मीदें हैं इसीलिए मैं बस इतना ही कहूंगा
समय के साथ चलना,
आस्था रखना, पर मत बनने देना उसे पैरों की बेड़ी
जमीन पर रहना , पर आकाश को मत करना अनदेखा
चाहे तुम समझना इसे
हिदायत, सलाह या कि चेतावनी मेरी
दुनिया को आसान समझना
पर उतनी नहीं, जितनी नजर आती है वह।
0 राजेश उत्साही
(6 दिसम्बर,2011)
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