बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

हिंसा..और नहीं बस और नहीं


साथी चंद्रिका के सौजन्‍य से, उनकी बिटिया नेहा द्वारा किसी अन्‍य कृति को 
देखकर बनाई गई की यह कृति

 उनको समर्पित जिनके बिना यह दुनिया बन ही नहीं सकती, चल ही नहीं कती....

मीठे बोलों में भी हिंसा है
तीखे बोलों में भी हिंसा है
चालू बोलों में भी हिंसा है
टालू बोलों में भी हिंसा है
       समझने की जरूरत है कि
       बोलने वालों की क्‍या मंशा है

भारी गहने तन पर हिंसा हैं
भारी सपने मन पर हिंसा हैं
सुंदर कपड़े काया पर हिंसा हैं
धन-दौलत की माया हिंसा है
          समझने की जरूरत है कि
          देने वालों की क्‍या मंशा है  

ज्‍यादा ध्‍यान भी हिंसा है
ज्‍यादा मान भी हिंसा  है
ज्‍यादा प्रहसन भी हिंसा है
ज्‍यादा रुदन भी हिंसा  है
            समझने की जरूरत है कि
            करने वाले की क्‍या मंशा है

इशारों में भी हिंसा है
नजारों में भी हिंसा है
सहारों में भी हिंसा है
प्रहारों में भी हिंसा है
           समझने की जरूरत है कि
           सामने वाले की क्‍या मंशा है

सवालों में भी हिंसा है
ख्‍यालों में भी हिंसा है
हवालों में भी हिंसा है
निवालों में भी हिंसा है
            समझने की जरूरत है कि
            किसकी,कैसी,क्‍या मंशा है

हिंसा, केवल हाथों से नहीं होती
हिंसा, केवल माथों पर नहीं होती
हिंसा, केवल शब्‍दों में नहीं होती
हिंसा, केवल अपनों की नहीं होती
              समझने की जरूरत है कि
              आखिर कहां-कहां हिंसा है

हिंसा कहीं भी हो सकती है,
हिंसा कभी भी हो सकती है,
हिंसा को हमें रोकना होगा
करने वाले को टोकना होगा
         कुछ कर गुजरने की जरूरत है
         कि बस और नहीं  यह  हिंसा

0 राजेश उत्‍साही

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

कौन हो तुम...।।



ये सपनों से भरी कजरारी आंखें
गुलाब की पंखुडि़यों से होंठ
और पकौड़े जैसी नाक वाली
कौन हो तुम ?

सब पूछते हैं बस यही एक सवाल
क्‍या संबंध है मेरा तुमसे ?

मैं सवाल सुनकर बस मुस्‍करा भर देता हूं
अगर यह राज है तो फिर राज ही रहना चाहिए
पर कब तक !

सोचता हूं कभी तो दुनिया को बताना ही चाहिए
तुमसे पहली मुलाकात कोई बीस बरस पहले हुई होगी
तुम अचानक ही तो आ गईं थीं सामने
और पहली ही नजर में मोह लिया था तुमने
सबकी नजर बचाकर
करके थोड़ी सी बेईमानी मैंने
तुम्‍हें बना लिया था बस अपना

परवाह नहीं की थी किसी की
अब भी कहां करता हूं
जहां गया हूं वहां तुम साथ हो मेरे
सोते, जागते, उठते, बैठते बस तुम्‍हें सामने देखना चाहता हूं
सोचता हूं
क्‍या सचमुच बीस बरस पहले ही मिली थीं तुम मुझे
या...???
0 राजेश उत्‍साही 

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails