साथी चंद्रिका के सौजन्य से, उनकी बिटिया नेहा द्वारा किसी अन्य कृति को देखकर बनाई गई की यह कृति |
उनको समर्पित जिनके बिना यह दुनिया बन ही नहीं सकती, चल ही नहीं सकती....
मीठे बोलों में भी हिंसा है
मीठे बोलों में भी हिंसा है
तीखे बोलों में भी हिंसा है
चालू बोलों में भी हिंसा है
टालू बोलों में भी हिंसा है
समझने
की जरूरत है कि
बोलने
वालों की क्या मंशा है
भारी गहने तन पर हिंसा हैं
भारी सपने मन पर हिंसा हैं
सुंदर कपड़े काया पर हिंसा हैं
धन-दौलत की माया हिंसा है
समझने
की जरूरत है कि
देने
वालों की क्या मंशा है
ज्यादा ध्यान भी हिंसा है
ज्यादा मान भी हिंसा है
ज्यादा प्रहसन भी हिंसा है
ज्यादा रुदन भी हिंसा है
समझने की जरूरत है कि
करने वाले की क्या मंशा है
इशारों में भी हिंसा है
नजारों में भी हिंसा है
सहारों में भी हिंसा है
प्रहारों में भी हिंसा है
समझने
की जरूरत है कि
सामने
वाले की क्या मंशा है
सवालों में भी हिंसा है
ख्यालों में भी हिंसा है
हवालों में भी हिंसा है
निवालों में भी हिंसा है
समझने की जरूरत है कि
किसकी,कैसी,क्या मंशा है
हिंसा, केवल हाथों से नहीं होती
हिंसा, केवल माथों पर नहीं होती
हिंसा, केवल शब्दों में नहीं होती
हिंसा, केवल अपनों की नहीं होती
समझने की जरूरत है कि
आखिर कहां-कहां हिंसा है
हिंसा कहीं भी हो सकती है,
हिंसा कभी भी हो सकती है,
हिंसा को हमें रोकना होगा
करने वाले को टोकना होगा
कुछ
कर गुजरने की जरूरत है
कि
बस और नहीं यह हिंसा
0 राजेश उत्साही
AB HINSAA KE POOJAARI NAHI .............
जवाब देंहटाएंहिंसा का बहुत सूक्ष्म निरीक्षण और चित्रण..सही कहा है आपने हिंसा छुपी रहती है उन कृत्यों में भी जिन्हें हम निर्दोष मानते हैं..इससे मुक्त होना होगा.
जवाब देंहटाएंहिंसा हिंसा ... पर क्यों ... सच कह अहि की अब कुछ कर गुजरने की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंहिंसा का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण ..
जवाब देंहटाएंसच हिंसा जाने कितने ही रूपों में छुपी रहती है ....
बहुत बढ़िया चिंतन भरी रचना ...
अति भावगर्भित रचना.
जवाब देंहटाएं