पानी
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राजेश उत्साही |
पानी
अब कहां है
पानी जो हम पीते थे
पानी जो हम जीते थे
पानी
मीठा पानी
पानी का मीठापन
अब नहीं है
न पानी रहा
न पानीदार लोग
पानी न आंखों में है
न चेहरे पर
पानी उतर गया है
जमीन में बहुत नीचे
इतना, जितना कि आदमी अपनी
अपनी आदमियत से।
0 राजेश उत्साही
सच कहा आज न पानी है और न पानीदार लोग
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी।
हटाएंपानी की कीमत जो भूलते जा रहे हैं हम..जो भी बहुतायत में था मानव ने उसकी कद्र नहीं की...परमात्मा उनमें सबसे पहला है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी। परमात्मा तो एक ही होना चाहिए...वैसे आपकी बात का अर्थ यह भी है जो बहुतायत में होता है उससे समस्या होती है...।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (23-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
शुक्रिया वंदना जी।
हटाएंसिर्फ धन जोड़ना जानता है आज का आदमी.बहुमंज़िली इमारतें कितना जल बहाती हैं पर वर्षा-जल के लिए ओवरहेट टैंक बनवाते जान सूखती है!
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
,बहुत ही खुबसूरत रचना के लिया हार्दिक बधाई ,आप मेरे ब्लोग्स का भी अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
जवाब देंहटाएंlatest post भक्तों की अभिलाषा
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बेहतरीन प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंसाभार.....
फिर भी हम लोग अब भी पानी बचाने की पहल नहीं कर रहें ....
जवाब देंहटाएंरिश्तों का पानी तो वैसे भी बहुत वक्त से मर चुका है ...अब तो खारापन भी बाकि नहीं है
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