शनिवार, 7 जुलाई 2012

बंगलौर बस में : दो


                                                                          फोटो : राजेश उत्‍साही 
लड़कियां,
जवान,
और बूढ़ी महिलाएं
खड़ी हैं अपनी तयशुदा सीट के सामने
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्‍चे
और दूसरे हाथ से थामे
किसी सीट की पीठ
या ऊपर लगा सहारा
वे 
शायद संतुष्‍ट हैं
केवल बस में चढ़कर

लड़के,
जवान,अधेड़ हैं कि
बैठे हैं
अपनी बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां के साथ
बेफिकर,बेशरम
अनदेखा करते हुए उन्‍हें जो हैं उन जैसी 
अनदेखा करते हुए लिखी हुई इबारत  

न कंडक्‍टर 
न ड्रायवर    
न बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां को
न‍ किसी अन्‍य
यात्री को है इस बात से सरोकार

बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्‍नी या फिर मां
कब करेंगी शरम
या कि प्रेरित
अपने भाई,प्रेमी,पति,पिता या बेटे को उठने के लिए
ताकि पा सके अपना हक उन जैसा कोई और   

मुझे है इंतजार ।
0 राजेश उत्‍साही 

17 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे भी है इंतज़ार........
    हम सबको है....
    कोई तो पहल करे...कोई तो करे त्याग......

    सादर
    अनु

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  2. स्त्रियाँ ही स्त्रियों के हक़ की बात नहीं करतीं .... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुती |
    शुभकामनायें ||

    रविकर हक़ लो छीन, साथ है मेरा पहिला |
    बढ़ो करो इन्साफ, अकेली अब न महिला ||

    जवाब देंहटाएं
  4. गैरत कुछ बची हो दिल में तब न ... सुन्दर और विचारोत्तेजक रचना !

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्र है कि वहाँ की बसों में महिलाएं लिखा पढ़ा जा सकता हैं।

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  6. सुन्दर पंक्तियाँ. शुभकामना.

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  7. तय शुदा सीट है तो खुद को ही लड़ना होगा अपने हक के लिये, यहाँ कोई दूसरों के लिये खड़ा नहीं होता तब तक, जब तक हम अपने हक के प्रति खुद सजग नहीं हैं...

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  8. हम्म विचारणीय है यह...महिलाओं को ही आगे आना होगा..अपने घर के पुरुषों में ये भावना जगानी होगी तभी...कोई उम्मीद की जा सकती है.

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  9. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. क्या बात है वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि दिनांक 16-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-942 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  11. रेल और बस में बनें, ऐसे ही संयोग।
    अपनी करनी को सभी, लोग रहे हैं भोग।।

    जवाब देंहटाएं
  12. अपने हक के लिए, न समझो अब हीन
    मांगे से जब ना मिले, उसे लीजिए छीन.....

    बहुत विचारणीय प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  13. तमाशे दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है
    हम बेशरम भी तो बस देखते जा रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  14. ...
    किस तरह ऑंखें फेर लेते हैं और चुपचाप बैठे गपियाती, गरियाते है कुछ बेशर्म लोग ..पूछो मत .......आपने बस के पूरी सच्ची तस्वीर दिखला दी..
    काश यह बात समझ सकते सभी तो कितना सुहाना सफ़र होता सबका ..
    बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..आभार ..

    जवाब देंहटाएं

गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

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