जवान,
और बूढ़ी महिलाएं
खड़ी हैं अपनी तयशुदा सीट के सामने
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्चे
और दूसरे हाथ से थामे
एक हाथ में लिए
अपना सामान या कि बच्चे
और दूसरे हाथ से थामे
किसी सीट की पीठ
या ऊपर लगा सहारा
वे
शायद संतुष्ट हैं
केवल बस में चढ़कर
लड़के,
जवान,अधेड़ हैं कि
बैठे हैं
अपनी बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्नी या फिर मां के साथ
बेफिकर,बेशरम
अनदेखा करते हुए उन्हें जो हैं उन जैसी
अनदेखा करते हुए लिखी हुई इबारत
न कंडक्टर
न ड्रायवर
न बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्नी या फिर मां को
न किसी अन्य
यात्री को है इस बात से सरोकार
बहन,प्रेयसी,बेटी,पत्नी या फिर मां
कब करेंगी शरम
या कि प्रेरित
अपने भाई,प्रेमी,पति,पिता या बेटे को उठने के लिए
मुझे है इंतजार ।
0 राजेश उत्साही
मुझे भी है इंतज़ार........
जवाब देंहटाएंहम सबको है....
कोई तो पहल करे...कोई तो करे त्याग......
सादर
अनु
स्त्रियाँ ही स्त्रियों के हक़ की बात नहीं करतीं .... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुती |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
रविकर हक़ लो छीन, साथ है मेरा पहिला |
बढ़ो करो इन्साफ, अकेली अब न महिला ||
गैरत कुछ बची हो दिल में तब न ... सुन्दर और विचारोत्तेजक रचना !
जवाब देंहटाएंशुक्र है कि वहाँ की बसों में महिलाएं लिखा पढ़ा जा सकता हैं।
जवाब देंहटाएंरविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अजय जी।
हटाएंसुन्दर पंक्तियाँ. शुभकामना.
जवाब देंहटाएंतय शुदा सीट है तो खुद को ही लड़ना होगा अपने हक के लिये, यहाँ कोई दूसरों के लिये खड़ा नहीं होता तब तक, जब तक हम अपने हक के प्रति खुद सजग नहीं हैं...
जवाब देंहटाएंहम्म विचारणीय है यह...महिलाओं को ही आगे आना होगा..अपने घर के पुरुषों में ये भावना जगानी होगी तभी...कोई उम्मीद की जा सकती है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि दिनांक 16-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-942 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
शुक्रिया चन्द्र भूषण जी।
हटाएंरेल और बस में बनें, ऐसे ही संयोग।
जवाब देंहटाएंअपनी करनी को सभी, लोग रहे हैं भोग।।
अपने हक के लिए, न समझो अब हीन
जवाब देंहटाएंमांगे से जब ना मिले, उसे लीजिए छीन.....
बहुत विचारणीय प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
तमाशे दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है
जवाब देंहटाएंहम बेशरम भी तो बस देखते जा रहे हैं
...
जवाब देंहटाएंकिस तरह ऑंखें फेर लेते हैं और चुपचाप बैठे गपियाती, गरियाते है कुछ बेशर्म लोग ..पूछो मत .......आपने बस के पूरी सच्ची तस्वीर दिखला दी..
काश यह बात समझ सकते सभी तो कितना सुहाना सफ़र होता सबका ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..आभार ..