न बदलने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि चलती रहती है
दुनिया है कि बदलती रहती है।
हमारे रोने
न रोने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि हंसती रहती है
दुनिया है कि चहकती रहती है।
हमारे होने
न होने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि ढलती रहती है
दुनिया है कि मचलती रहती है।
हमारे गलने
न गलने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि गलती नहीं है
दुनिया है कि पिघलती नहीं है
हमारे खटने
न खटने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि खटती रहती है
दुनिया है कि भटकती रहती है।
हमारे मिटने
न मिटने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि मिटती रहती है
दुनिया है कि संवरती रहती है।
हमारे
बदलने, रोने,गलने,खटने,मिटने, होने
और ऐसी तमाम अनगिनत क्रियाओं से
किसी को फर्क पड़े न पड़े
हमें तो फर्क पड़ना ही चाहिए
वरना
बदलने,रोने,गलने,खटने,मिटने,होने
और ऐसी तमाम अनगिनत क्रियाओं
का क्या औचित्य !
0 राजेश उत्साही
सही लिखा जी ...जब खुद को फर्क पड़ेगा तभी हम दुनिया में खुद के वजूद के लिए लड़ पायेंगे
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अंजू जी।
हटाएंaapse sahamat, sahi bat achhi lagi
जवाब देंहटाएं'क्या फर्क पडता है" और "चलता है" जैसी मनोवृत्ति ने हमारे तमाम मूल्यों के औचित्य पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है... आपकी कविता इसी सवाल का जवाब ढूँढने को प्रेरित करती है.. प्रेरक, भाई साहब!
जवाब देंहटाएंहम जो कार्य करते हैं , उसका कारण और दिशा स्पष्ट हो तो बात वरना सिर्फ चीखना और चिल्लाना ही तो !
जवाब देंहटाएंफर्क पड़े ना पड़े .... यह हो ही जाता है
जवाब देंहटाएंवाह ! हम जो भी करते हैं उसका फर्क हम पर तो पड़ता है..हम भी तो इसी दुनिया के हिस्से हैं,हम ही तो दुनिया हैं...
जवाब देंहटाएंवरना
जवाब देंहटाएंबदलने,रोने,गलने,खटने,मिटने,होने
और ऐसी तमाम अनगिनत क्रियाओं
का क्या औचित्य !
बिल्कुल सही कहा है आपने ... आभार
DOONIYA PAGAL HAI ? YA PHIR MAI DIWANA !
जवाब देंहटाएंUDAY TAMHANEY
BHOPAL
DOONIY PAGAL HAI ?
जवाब देंहटाएंYAA PHIR MAI DIWANA !
UDAY TAMHANE
BHOPAL
सच कहा है ... हमें तो फर्क पड़ना ही चाहिए ...
जवाब देंहटाएंबदलाव की शुरुआत भी तभी होगी जब अपनी मानसिकता बदलेगी ...
बस यही सार है..किसी को फर्क पड़े ना पड़े...हमें फर्क पड़ना चाहिए.
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
दुनिया को फर्क पड़े या न पड़े खुद को फर्क पड़ना चाहिए ... तभी इन सब बातों का औचित्य है ॥विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएं:) फ़र्क तो पड़ता ही है, भले ही उसमें सारी दुनिया शामिल न हो!
जवाब देंहटाएंहमे तो फर्क पड़ना ही चाहिए। लेकिन हम संवेदना शून्य हो रहे हैं।
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