मैंने एक चलन देखा है। हममें से अधिकांश बरसाती मेंढकों की तरह किसी भी दिवस के आते ही टर्राने लगते हैं,वैसे चाहे उस विषय पर कभी न कुछ कहते हों और न सोचते हों। हमने हर चीज के लिए एक दिन तय कर लिया है, हम बस केवल उस एक दिन सारा चिंतन करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। मुझे पता है मेरी यह बात पढ़कर बहुत-सों की भौहें तन जाएंगी और वे मुझ पर लानत भेजने लगेंगे। पर मैं भी क्या करूं। आज गांधी बब्बा का दिन है और वे तो सच बोलने के लिए ही कहते थे न। तो मुझ से रहा नहीं जा रहा। अब आज तो कम से कम झेल ही लीजिए। मौसम का साथ देते हुए मैंने भी चार कविताएं टर्रा दी हैं।
-एक-
आज सुबह से
मैं बापू को ढूंढ रहा था
कि वे मिल जाएं कहीं
तो मैं उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दूं
क्योंकि दो दिन पहले ही मुझे इस बात का
कुछ कुछ विश्वास हुआ
कि सचमुच
महात्मा इस देश में ही जन्मे थे
दो दिन पहले
एक रूका हुआ
फैसला आया है
उस सवाल पर जो बापू
के जाते ही खड़ा हो गया था
यह अलग बात है कि
बहस जारी है
सही है या गलत
कानून की देवी क्या सचमुच अंधी है
आस्था का पलड़ा भारी है या सबूतों का
फैसला इतिहास का हुआ है
या कानून का
फैसला अदालत में हुआ है या संसद में
फैसला न्याय का है या राजनीति का
यह फैसला है या समझौता
मैं न तो राजनीतिज्ञ हूं, न इतिहासकार हूं, न कानूनविद्
और न धर्मपरायण व्यक्ति
हां, इस देश का एक
साधारण नागरिक हूं
फिलहाल संतुष्ट हूं कि
मैं अपने मित्र के साथ
आंख मिलाकर बात कर सकता हूं।
-दो-
महात्मा
मुझे एमजी रोड पर
भी नहीं मिले और न मिले
एमजी चौराहे पर
महात्मा गांधी सार्वजनिक भवन में भी वे नजर नहीं आए
हां उनका बुत जरूर वहां था
फूलों की दो-तीन मालाएं उनके गले में पड़ी थीं
कुछ लोग थोड़ी देर पहले ही
रघुपति राघव राजाराम गाकर
पास के बार-कम-रेस्टोरेंट में गए थे
एक कौआ उनकी नाक पर बैठकर
अपनी चोंच साफ कर रहा था।
-तीन-
मुझे
विश्वस्त सूत्रों से
पता चला है कि
असल में
महात्मा रिचर्ड एटनबरो की
फिल्म में भूमिका करने के बाद से गायब हैं
कुछ समय पहले
‘लगे रहो मुन्ना भाई’ फिल्म में
संजयदत्त को दिखाई दिए थे
और फिर ‘मैंने गांधी को नहीं मारा ’
फिल्म में यह कहने आए थे कि
सचमुच मुझे इन्होंने क्या किसी ने नहीं मारा
मैं तो अपनी ही मौत मर गया हूं
यकीन न हो तो
सरकारी स्कूल के
यकीन न हो तो
सरकारी स्कूल के
बच्चों की पाठ्यपुस्तकों के तीसरे या चौथे आवरण पर
मेरी तस्वीर देख सकते हो
मेरी तस्वीर देख सकते हो
संदेश के साथ।
-चार-
बच्चे
मुझे नाम से जानते हैं
और शायद काम से भी
और शायद काम से भी
वे जानते हैं कि आज के समय में
वे महात्मा नहीं बन सकते
इसलिए बस मेरी जीवनी पढ़ते हैं
परीक्षा में निबंध लिखने के लिए या
फिर करोड़पति इनाम जीतने के लिए
बच्चे भी आखिर क्या करें
गांधी! गांधी! गांधी! गांधी! गांधी!
गांधी के नाम का इतना चर्चा है
इस देश में कि
बच्चों को समझ ही नहीं आता
किस गांधी की बात हो रही है
बच्चों की बात छोडि़ए
क्या आपको समझ आता है?
0 राजेश उत्साही
(मित्रो मुझे पता है मेरी यह अभिव्यक्ति बहुत सुंदर है, सटीक है,सशक्त है,मुखर है,भावपूर्ण है,मार्मिक है आदि आदि है। इसलिए इन विशेषणों का उपयोग करके अपने शब्द जाया न करें। कुछ और भी कहें अपनी टिप्पणी में। शुक्रिया।)