लिखकर
एक कविता महसूस
करता हूं मैं
जैसे कई रातों की उनींदी आंखें
दिन-दिन भर सो उठती हैं तरोताजा होकर
एक
कविता लिखकर
महसूस करता हूं मैं
जैसे कोई गर्भणी सफल प्रसव के बाद
मातृत्व के उल्लास से
भर उठती है
जैसे
एक पिता
अपने नवजात शिशु को दुलारकर
भूल जाता है सृष्टि की नश्वरता
महसूस
करता हूं मैं
लिखकर एक कविता
जैसे
एक मेहनतकश भर दोपहरी में
रोटी पर रखकर प्याज
नीम तले
करता है ब्यालू
पीता है ओक से
लोटा भर पानी
और निकाल फेंकता है
सारी थकान
लेकर एक लम्बी डकार
लिखकर
महसूस करता हूं मैं
एक कविता
जैसे
घूमते हुए चाक पर
गीली मिट्टी से गढ़कर ठण्डा पानी
रोमांचित हो उठता है उसका सृजनकार
कुछ कुछ वैसा ही
महसूस करता हूं मैं
लिखकर
एक कविता।
* राजेश उत्साही
"जैसे कोई पंछी पहली बार खोले,
जवाब देंहटाएंअपने पंखो को आकाश उड़ते हुए,
महसूस करता है "
कुछ कुछ वैसा ही
महसूस करता हूं मैं
लिखकर
एक कविता। में ........
http://oshotheone.blogspot.com/
"जैसे कोई पंछी पहली बार खोले,
जवाब देंहटाएंअपने पंखो को आकाश में उड़ते हुए,
महसूस करता है "
कुछ कुछ वैसा ही
महसूस करता हूं मैं
लिखकर
एक कविता। में ........
http://oshotheone.blogspot.com/
अच्छी कविया है .
जवाब देंहटाएंhttp://oshotheone.blogspot.com/
kuchh kuchh waise hi main bhi mahsus karta hoon..........bhaiya......!! sach me aapne ham sabki baat kah di........bas hamare pass shabd nahi the.......aur aapke pass shabdo ki thanti hai.........:)
जवाब देंहटाएंgod bless!!
बहुत सुन्दर रचना है !
जवाब देंहटाएंहम त हमेसा अपने दोस्त को कहते हैं कि कल सारा रात प्रसव बेदना से तड़पते रहे हैं अऊर तब जाकर जन्म हुआ है ई कबिता का... उनको भी मालूम है ई बात, अऊर एक बार हम अपना पोस्ट पर भी लिखे थे... आज आप जब ई लिख दिये त हमरा सोचना सार्थक हो गया... खाली कबिता का बात काहे करते हैं... हम त महसूस किए हैं कि मन अऊर लगन से कोनो सर्जनात्मक काम ओही आनंद देता है जिसका आप अपना ई कबिता में जिकिर किए हैं… अऊर आपका बात हम सअमझ सकते हैं, लग रहा है जईसे आप हमरे बिचार को अभिव्यक्ति दे दिए हैं!!
जवाब देंहटाएंहाँ क्यों नहीं, अगर हम अपने भावों को शब्दों मे समेट पाते है तो अपार खूशी मिलती ही है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से समेटे हुए भाव ।
जवाब देंहटाएंरचनाकार का रचना गौरव मुखर हो उठा!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
पढाने का आभार!
यही तो कविता का महत्त्व है कि जो भी अन्दर होता है सब बाहर ले आती है और फिर इंसान को एक बार फिर उडान भरने मे सहायक हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास ...कविता रचने के बाद के सत्य को बखूबी लिखा है ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
sundar prastuti,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम
Satya`s Blog
क्या बात है उत्साही जी .... वैसे तो आप ऐसी ही रचना की रचते हैं जो आपको ही नही हमको भी ऐसा ही एहसास कराती है ... बहुत सुंदर कल्पना है आपकी ...
जवाब देंहटाएंउत्साही जी सुझाव देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंजब से अकेला कलम वजूद में आया तब से यह विचार मेरे मन में उथल पुथल मचाये हुए है की "अकेला" ठीक रहेगा या फिर "अकेली", मेरे कुछ स्नेही स्वजनों ने कहा शीर्षक कुछ ऐसा होना चाहिए जो भीड़ से अलग हो, मुझे भी लगा हाँ सही बात है भीड़ में अलग दिखने के लिए कुछ तो उल्टा करना पड़ेगा,
मैंने नामकरण तो कर दिया पर फिर भी मैं खुद भी इस शीर्षक को स्वीकार करने में असहजता महसूस कर रहा हूँ, और इस मुद्दे का हल ये निकला की उद्देश्य शीर्षक नहीं मुख्य उद्देश्य तो अपने विचारों को उजागर करना है और इस तरह यह मुद्दा हासिये पर चला गया, आज फिर यह मुद्दा उठा है तो अब इसको हल करने के लिए आप सभी का सहयोग आपेक्षित है।
कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव दें।
...जैसे कई रातों की उनींदी आँखें दिन-दिन भर सो उठती हैं तरोताजा होकर..
जवाब देंहटाएं..कमाल की पंक्ति और कवि कर्म के दर्द की अभिव्यक्ति।
बाऊ जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे!
सृजन सुख की अनुभूति को क्या पिरोया है आपने और एक खूबसूरत सृजन भी कर दिया!
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
.
जवाब देंहटाएंगहेन चिंतन को दर्शाती , इस कविता के सृजन के लिए आपको बधाई। निमो भाभी आपकी प्रेरणा हैं , इसलिए उनको भी बधाई।
.
बेहतर...
जवाब देंहटाएंआभार...
आदरणीय सर, आपने अपनी इस कविता में तो कविता की पू्री रचना प्रक्रिया बहुत बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस चिन्तनपूर्ण कविता के लिये हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंकविता में जिन बिम्बों का प्रयोग किया है वे गहरा असर छोड़ते हैं.इस रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंवाह राजेश जी वाह...अविस्मर्णीय उपमाएं दी हैं आपने...अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज
aapke blog par pahli baar aana hua,main jyada kuch kahne layak nahi hoon,main chota hoon,koshish karta hoon likhne ki nadaanummidien.blogspot.com ki taraf se agr samay mile to jarur padhiyega,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंBHARAT SINGH CHARAN
aadarniy rajesh ji,aapka aadesh hi kahunga ki aapne mere blog par apni amulya raay vyakt ki or kaha ki koi samaj se sambandhit rachna likhne pr jyada dhyan doon....
जवाब देंहटाएंshayad aapne dhyaan nahi diya mgr mere usi blog pr anya 2 rachnaye isi vishay pr h,,,fir kabhi samay nikal kar jarur aaiyega,,,,,or bhi likhne ki koshish karunga,,,tb tk aapke margdarshan ka prarthi BHARAT SINGH CHARAN nadaanummidien.blogspot.com ki taraf se
प्रभावी अभिव्यक्ति ऐसी कि रचने की महसूसियत, पढ़ते हुए भी बनी रह रही है.
जवाब देंहटाएंUtsahi ji pranam,
जवाब देंहटाएंArun roy ke blog par apki sargarbhit tippaniyon ke marfat apse awagat hua hun.Sach kahta hun hindi blog jagat,vishesh kar kavita ki arajakata,ko door kiya hi jana chahiye.Aapki 'prem ke chhan' kavita achhi lagi.
Bilkul sach kaha Rajesh ji... na jane kitna santosh milta hai likhne ke baad... Bohot-bohot dhanyawaad...
जवाब देंहटाएंउफ़ मैं देर कर गया.. ऐसी ही एक कविता मेरी अधूरी लिखी पड़ी है.. कंटेंट काफी कुछ यही है बस कहने का अंदाज़ और है.. :) यहाँ आने में भी देर हुई, सुन्दर कविता पढ़ने में भी.. :) सॉरी ना..
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रयास ..बहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंस्वागत के साथ vijayanama.blogspot.com
अच्छी पंक्तिया ........
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...
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