शनिवार, 17 जुलाई 2010

रानी लक्ष्‍मीबाई ।। नीमा के बहाने : दो


दोस्तो मेरी जीवनसंगिनी पर केन्द्रित कविता का दूसरा भाग प्रस्तुत है।कविता को अच्‍छी तरह आत्‍मसात करने के लिए नीमा के बहाने: एक  भी पढ़ें तो बेहतर रहेगा। 


नीमा
यानी निर्मला के आत्‍मज
कभी उत्‍तरप्रदेश के बीहड़ों से
निकलकर
महाराष्‍ट्र और गुजरात की सीमा से सटे मप्र के
पश्चिम निमाड़ की उपजाऊ जमीन
में आ बसे थे
परमार राजाओं के गढ़ सेंधव यानी
सेंधवा में
किले के नीचे

सेंधवा
रहा है मशहूर
अपनी रुई की गरमाहट के लिए
आज का आगरा बंबई मार्ग यानी
राष्‍ट्रीय राजमार्ग क्रमांक तीन इसके बीच से गुजरता है
यहीं 1959 के साल की पहली तारीख को
नीमा ने पहली किलकारी भरी

जीन में फिटर हुआ करते थे पिता
अस्‍सी साल की पकी उम्र में
उन्‍होंने इस दुनिया से ली विदा 
उनके जाते ही
जैसे परिवार बिखर गया
घर का सुख जाने किधर गया 

तीन भाइयों की दो बहनों में से एक
छोटे भाई से बड़ी लेकिन सबकी लाड़ली बहन
नीमा अभी छोटी ही थी
बड़े भाई अपने परिवारों में व्‍यस्‍त हो गए
 बहनें,छोटा भाई और मां जैसे उनके लिए अस्‍त हो गए

बचपन
मुफलिसी का खिलौना था 
मुफलिसी ही पालना था मुफलिसी ही बिछौना था
पिता का बनाया कच्‍चा घर और खुद्दारी ही गहना था
नन्‍हीं और नाजुक उंगलियां फूलों से जूझती थीं 
और खेल खेल में हीं उन्‍हें माला में गूंथती थीं
माला जो मंदिरों में जाती थी 
समय के बायस्‍कोप ने ऐसे मंजर भी दिखाए
गिरवी रखने को न जेवर बचे थे, न बरतन  
रोटी के लिए तवे पर रखे आटे को बेच आए
परीक्षा की फीस जो चुकानी थी 
मां ने किया था तय
बच्‍चों की पढ़ाई नहीं छुड़वानी थी

घर से स्‍कूल जाती-आती
हुई यह लड़की
रास्‍ते में कबीट के पेड़ से यह सब बतयाती
अपना सुख-दुख सुनाती
पेड़ सुनता
गुनता और जैसे कहता
बिटिया जीवन मेरी तरह है कंटीला
मेरी पत्तियों की तरह खट्टा ,मेरे फल की तरह कठोर
लेकिन अंदर से रसीला
 इस दुनिया में ही है तेरी ठौर  

समय बीतता गया
मुफलिसी के खिलौने टूटते गए   
जिंदगी में यकीन जीतते गए

सेंधवा के
मोती बाग मोहल्‍ले की
दगड़ी बाई प्राथमिक कन्‍या शाला की य‍ह कन्‍या
लड़कियों से ज्‍यादा लड़कों के साथ नजर आती
कंचे चटकाती  
गिल्लियों को दूर दूर तक पहुंचाती
मोहल्‍ले के घरों के कांच तड़काती
पर लड़की थी कि बाज नहीं आती

मिडिल स्‍कूल में
नाले के पार लड़के-लड़कियों के साथ पढ़ने जाती
और जब कोई बदतमीजी पर आता 
एक ही धक्‍के में सीधा खानदेश पुल से नाले में जाता
लड़के थे कि खिसयाते
और रानी लक्ष्‍मीबाई कहकर चिढ़ाते

सेंधवा महाविद्यालय
की दीवारें और उन पर लिखी इबारत
इस बात की देती हैं गवाही 
कि नीमा ने यहां अपनी बात मनवाई 
महाविद्यालय की चौखट में
छात्रा के रूप में कदम रखा
छात्रसंघ की अध्यक्षा का स्‍वाद चख्‍खा,
खो खो और कबड्डी खेली,
फर्राटा दौड़ लगाई और प्रतिद्वंदिता झेली
हिन्‍दी साहित्‍य की स्‍नातकोत्‍तर कक्षा में पढ़ा 
और फिर पांच साल पढ़ाया
परिवार से ज्‍यादा शायद अपना ही मान बढ़ाया


नीमा
आम आदमी की भाषा के
कवि सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना की कविताओं में प्रयोगवाद 
पर शोध की तैयारी में जुटी थीं
पर वक्‍त ने कुछ इस तरह करवट ली 
कि वे दिल के हाथों लुटी थीं
सब कुछ तज के
मुझ जैसे आम आदमी की जिन्‍दगी के
वादों और विवादों की साक्षी बन गईं

नीमा के लिए
मैं वो आम आदमी था
जो उनके अलावा किसी और की
कसौटी पर खरा नहीं उतरता था
हां, मां ने
नीमा की मां ने कहा था
तुझे पसंद है तो मुझे क्‍या
तेरी खुशी में मेरी खुशी है

नीमा
ससुराल में बड़ी बहू बनकर
परिवार संभालने के
आदर्श की सनातन रंगबिरंगी झालरों
के बीच खो गईं 
सपनों का कैनवास जो सज रहा था 
उसे वक्‍त की लहर धो गई

गिनाने को कारण और देने को तर्क बहुत सारे हैं
पर हकीकत यही है कि मन के आगे कुछ निर्बलताएं उनकी रहीं
कुछ फरमान हमारे हैं

नर्मदा के किनारे  
होशंगाबाद के सेठानी घाट 
पर मधुमास में
 निर्मल नीर में उतराते चांद को निहारते हुए 
उजियारी रात में
मैंने पूछा था,
‘नीमा तुम्‍हारी जिन्‍दगी का लक्ष्‍य क्‍या है?’
‘तुम मिल गए तो लक्ष्‍य भी मिल जाएगा
साथ साथ हम रहें, यह जाता हुआ समय लौटकर न आएगा।‘
इसका जवाब  
निर्मल चांद को चूम कर ही दिया जा सकता था ।

नीमा
छोटे भाई की भाभी
और बहनों के लिए भाभी से ज्‍यादा
सहेली बन गईं
जल्‍द ही
हल्‍दी का रंग
और रसोई की प्‍याज की गंध उनमें
और वे गृहस्‍थी में रम गईं ।
 0      राजेश उत्‍साही 

(कविता अभी और भी है....इंतजार करें .)

52 टिप्‍पणियां:

  1. सम्पूर्ण जीवन वृतांत, विशेषताओं को हम तक पहुंचा दिया... लक्ष्मीबाई को मेरी स्नेह शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  2. Neema ji kaa jeevan sachmuch prenrnaspad... aur aapka unke liye prem adbhut....

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्साही जी,
    आपका उत्साह देखते ही बनता है! नीमा जी से साक्षात्कार कराने का हृदय से आभार!
    भक्ति के स्तर तक पहुँचता आपका उनके प्रति अगाध प्रेम भी प्रेरित करता है!
    आपके शादी के रोज़ मैं छ महीने और तीन दिन का था!
    इश्वर तमाम उम्र आपका साथ बनाये रखे.... स्नेह को और प्रगाढ़ करे......
    आशीष का आशीष, माफ़ कीजिये.... शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपको व भाभीजी को मेरा प्रणाम
    आपकी कविता पढ़कर मुझे धर्मवीर भारती के उपन्यास की पवित्रता याद आ रही है.
    पवित्रता जो पात्र नहीं थी.
    पवित्रता जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
    पवित्रता जो पाखंड से दूर रहती है
    पवित्रता जो किसी निर्मल झरने का नाम है
    पवित्रता.. जिसके बिना एक सही आदमी की जिन्दगी बेकार है
    राजेश जी आपको इतनी अच्छी जीवन संगिनी मिली.. मेरी बधाई स्वीकारें

    कृपया बुरा न माने तो अपना फोन नंबर देंगे... मैं आपसे व भाभीजी से बात करना चाहता हूं.

    जवाब देंहटाएं
  5. माफ़ कीजिये, गणित में मैं जनम से ही कमज़ोर हूँ......
    टीपने के बाद ऊँगली पर हिसाब लगाया तो एक महीना ज्यादा पाया..... और उधर माँ के गर्भ में एक महीना कम!!!
    संशोधन: पांच महीने और तीन दिन!

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्साही जी भाभीजी से तो हम परचित होते जा रहे हैं। आप परियच कराते रहिए कुछ ही दिन मे लगेगा हम तो काफी पहले से जानते हैं। सच भी है जीवन के सफर में नए रिश्ते बनते हैं। कोई कोई रिश्ता ही स्थाई होता है। आपका जीवन सफर नीमाजी के साथ तमाम दुश्वारियों के बीच खूबसूरती से चलता रहा। नोंकझोंक भी हुई होगी, जो कहते हैं जरुरी भी है। यही पुरुष का प्रेम है जो कविता के रुप में झरता है। आगे का इंतजार जारी है...........

    जवाब देंहटाएं
  7. राजेश भैया मैं क्या बोलूँ कविता पढ़ रहा था की कहानी कुछ पता नही चल रहा था दरअसल मैं इस रचना के मूल भाव में ही खो गया था..घर-परिवार और समाज के सभी ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए आगे बढ़ते जाना और अपने नाम को सार्थक करना जीवन का उद्देश्य होता है ऐसे लोग श्रद्धा के पात्र हैं ..आपने बताया वरना मैं नीमा जी के जीवन परिचय से कहाँ अवगत हो पता ..नीमा जी को मेरी ओर से प्रणाम..साथ ही इस प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार...

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्साही जी ,

    बस एक ही बात खटक रही है ......उन्होंने अपनी प्रतिभा को गंवा दिया ....शोध कर रही छात्रा पारिवारिक जीवन में बंध कर अपना भविष्य न बना पाई ......जिज्ञासा है ......क्या वे भी लिखती हैं .....?
    उन्हें भी ब्लॉगजगत से जोडिये न ......

    जवाब देंहटाएं
  9. भाभी जी से तो धीरे धीरे परिचय होता जा रहा है .... आपने तो जीवन व्रतांत लिख दिया .... जीवन के उतार छदाव को बहुत मधुरता से लिखा है ..... नीमा जी को हमारा प्रणाम ...

    जवाब देंहटाएं
  10. राजेश जी
    जिस तरह आपने महसूस किया और लिखा वो भी अपनी पत्नि के संदर्भ मे……………आज के वक्त मे काबिल-ए-तारीफ़ है।ये तो आपके और उनके प्रेम के बंधन की एक मिसाल है।
    हरकीरात जी का प्रश्न ही मेरा भी प्रश्न है………अगली कविता मे जवाब जरूर दीजियेगा।

    जवाब देंहटाएं
  11. राजेश जी .........मैंने पढ़ा...नीमा जी का त्याग, उनका प्राप्य, आपका व्यक्तित्व.........जीवन के कुछ पड़ाव इतने गहरे छूटे हैं कि उन्हें बस महसूस किया जा सकता है.........शब्द उसके चारों तरफ बस अखंड फेरे लेते हैं

    जवाब देंहटाएं
  12. राजेश जी .........मैंने पढ़ा...नीमा जी का त्याग, उनका प्राप्य, आपका व्यक्तित्व.........जीवन के कुछ पड़ाव इतने गहरे छूते हैं कि उन्हें बस महसूस किया जा सकता है.........शब्द उसके चारों तरफ बस अखंड फेरे लेते हैं

    जवाब देंहटाएं
  13. बाबा भारती जी,
    अब तो बुझाता है कि इसी नाम से पहचान बन गया है… नीमा भाभी के बारे में जो भी पढने को मिला और जो सब्दचित्र आप खींचे हैं, ऊ कहींसे भी उनके तस्वीर से मेल नहीं खाता है...तस्वीर से एकदम गृहिणी देखाई देने वाली निर्मला, इतना प्रतिभा का धनी, साहित्य की शोध छात्रा, छात्रसंघ की अध्यक्ष, अऊर अचानक से गृहिणी...
    आपका ई कबिता पढने के बाद मन में आया कि इस कबिता का “निर्मला संस्करन” भी पढने को मिलता तो अच्छा होता... बाबा भारती जी, पहिला भाग पढने के बाद जो उत्सुकता पैदा हुआ था, ऊ इस भाग में थोड़ा सा अफसोस में बदल गया... ई कबिता कभी भी एक साईड से नहीं पढा जा सकता है..
    अब जब तक अंतिम भाग आप नहीं लिख देते, हमरे लिए फाईनल कमेंट देना सम्भव नहीं होगा.

    जवाब देंहटाएं
  14. हल्दी के रंग
    और प्याज की गंध उनमे
    और वे गृहस्थी में रम गईं.


    सच कहूँ, आज गुलमोहर के फूल नहीं मिले, फूलों की पूरी टोकरी मिली नीमा जी के मजबूत और प्रेममयी हाथों से.
    इस अगाध स्नेह को नमन करता हूँ, कुछ गुलमोहर रख लेता हूँ...आत्मा सुगन्धित रहेगी.
    ज्यादा कहने योग्य नहीं पाता खुद को...ये स्नेह, ये विश्वास बना रहे..

    जवाब देंहटाएं
  15. jindgi is sahaj dhang se bayan ho kar bhi najuk aur pavitra kavita ban jati hai.

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रिय भाई, मैं तो खो ही गया इस कहानी जैसी कविता या कविता जैसी कहानी में। तुम हमें भी खुश कर लेते हो और क्या कहूं... भाभी कह लूं, भाभी को भी. बहुत चालू लगते हो.

    जवाब देंहटाएं
  17. स्त्रियों में इतनी ऊर्जा होती ही है बस किसी को दुनिया के समक्ष दिखाने का अवसर मिल जाता है और कुछ परिवार तक ही अपना प्रबंधन दिखा पाती हैं। हमें तो नीमाजी का ब्‍लाग देखकर सर्वाधिक खुशी होगी।

    जवाब देंहटाएं
  18. ाजित जी सही कह रही हैं आपने जिस नीमा का हम से परिचय करवाया है और जिस तरह का जीवन उन्होंने जीया है वो सच मे लक्षमी बाई ही। बहुत अच्छा लगता हैजब कोई पुरुष अपनी पत्नि को इस तरह सम्मान देता है। धन्यवाद नीमा जी को बहुत बहुत बधाई। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  19. हरकीरत जी और वंदना जी का प्रश्न ही मेरा भी प्रश्न है…
    एक पति का अपनी पत्नी के लिए इस प्रकार लिखना उसके लिए एक बहुत बड़ा सम्मान है ...नीमा जी को बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  20. @शुक्रिया रश्मि जी। इस कविता ने आपको गहरे तक छुआ जानकर अच्‍छा लगा।
    @शुक्रिया मोनाली,आशीष,दिगम्‍बर जी तथा राहुल जी।
    @शुक्रिया राजकुमार भाई । आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुझे लगा मेरे लेखन का उद्देश्‍य सफल हो गया। कविता ने आपको इतना आंदोलित किया कि आप हम दोनों से फोन पर बात करने के लिए उत्‍सुक हो उठे,शायद यही इस कविता की उपलब्धि है। मुझे और नीमा दोनों को आपसे फोन पर बात करके बहुत अच्‍छा लगा। बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  21. @हरकीरत जी,
    @वंदना जी,
    @स्वाति जी,
    शुक्रिया कि आप लोगों ने एक बुनियादी सवाल पूछा है। कविता के अगले भाग में मैं इसका उत्तर देने का प्रयत्न करूंगा। कविता का अगला भाग इस बात पर केन्द्रित होगा कि नीमा क्या कर पाईं और क्या क्यों नहीं कर पाईं। हां उनकी लिखने-पढ़ने में रूचि रही है। जैसा कि मैंने कविता में जिक्र किया था,वे जाने-माने कहानीकार प्रकाशकांत की मुंहबोली बहन हैं। हां एक लेखक के तौर पर उन्हों ने कभी प्रयत्न नहीं किया। शायद अब करें।

    जवाब देंहटाएं
  22. @अजित जी,

    @निर्मला जी,

    एक पुरूष के नाते मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए मैं आपका आभारी हूं। सच कहा आपने कि हर स्त्री में ऊर्जा होती है। कुछ अपना कौशल घर के प्रबंधन में दिखाती हैं तो कुछ बाहर के क्षेत्र में। मेरा प्रयत्न भी यही रहा कि नीमा अपनी ऊर्जा का बेहतर उपयोग कर पाएं। फिलहाल नीमा ब्लाग से उतनी परिचित नहीं हैं। घर में कम्‍प्‍यूटर है और नेट कनेक्शन भी। मेरी यह कविता और उस पर आप सबकी शुभेच्छा और आर्शीवाद अब उन्हें इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है कि वे भी इस क्षेत्र में आएं। यद्यपि इसमें मैं उनकी बहुत मदद नहीं कर पा रहा हूं। क्‍योंकि मैं यहां बंगलौर में हूं और वे भोपाल में। पर बेटे हैं उनसे मदद लेने का प्रयत्‍न करेंगे ही।

    जवाब देंहटाएं
  23. @रोहित भाई,
    आप सही कह रहे हैं। हमारे बीच एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब नौंक-झोंक न हुई हो। असल में तो बिना लड़े खाना ही नहीं पचता न। हां पिछले कुछ दिनों से मैं यहां बंगलौर में हूं और वे भोपाल में। तब भी हम फोन कभी कभी तूतू मैंमै कर ही लेते हैं।

    @ विनोद भाई,
    आपका कहना सही है कि कभी कविता में कहानी होती है और कभी कहानी में कविता। पर अगर आप ध्यान से पढ़ेगें तो आपको दोनों का बुनियादी फर्क समझ में आएगा। मुझे खुशी है इस बात की कि आप कविता के मूल में खो गए।

    @ सुभाष भाई, अब मैं क्या कहूं। अब खुश करने और खुश रहने की कला तो इतने दिनों में सीख ही ली है।

    @ शुक्रिया अविनाश, मुझे लगता है कविता का मर्म आपने पकड़ लिया।

    @ शुक्रिया शोभा जी। @ शुक्रिया जाकिर भाई।

    जवाब देंहटाएं
  24. @ बिहारी जी उर्फ खडग जी कहूं तो ज्या्दा बेहतर है। सिंह साहब के साथ तो आप संवेदना के स्वर में ही नजर आते हैं। बहरहाल देखिए कि किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं होता कि वह क्या है। मेरे अपनी निजी जिंदगी के ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। लोग मुझसे मिलने आए और मुझसे ही पूछ रहे हैं कि उत्साही जी से मिलना है, मै कह रहा हूं कि मैं ही हूं और उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा। तो उनकी भी प्रतिक्रिया भी कुछ ऐसी ही रही कि अरे हम तो समझते थे कि आप कोई तीसमारखां होंगे। अगर आपकी बात मान भी लें तो जो तस्वीर आप देख रहे हैं वह नीमा जी की आज की तस्वीर है,एक परिपक्‍व गृहणी की तस्‍वीर। पर बहुत संभव है कि वे अपना प्राध्या्पिका का जीवन जी रहीं होतीं तब भी ऐसी ही नजर आतीं।

    बहरहाल जो शब्दचित्र मैंने खीचा है वह हकीकत है। उसमें मिलावट कतई नहीं है। अगर आपको कविता का यह हिस्सा पढ़कर अफसोस हुआ तो मुझे इसका खेद है,पर आश्चर्य कतई नहीं। बिलकुल आप इस कविता की आखिरी पंक्ति लिखे जाने के बाद ही अपनी फायनल प्रतिक्रिया दीजिएगा। आपकी बात मैंने नीमा जी से कही। वे निर्मला संस्करण लिखना शुरू कर रही हैं।


    @ आप सभी को लक्ष्‍मीबाई यानी निर्मला यानी नीमा ने इस स्नेह के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया है।

    जवाब देंहटाएं
  25. नीमा जी को बहुत बहुत बधाई....

    जवाब देंहटाएं
  26. its awesome.....!!!
    wel "Nima" d Laxmibai of dis poem is my Buaji...
    n jo b fufaji(Utsahiji) ne likha hai, bohot zyada touchin hai.....
    its v difficult 2 understand d feelings of someone.....aur usse b zyada mushkil hota hai use lafzon me dhaalna......
    Kisi k struggle ki respect karna bohot badi baat hoti hai chahe wo koi apna he q na ho....
    i am already a fan of ur's bt dis poem z something dat won my heart.....
    Hats off 2 u fufaji....!!!
    -@/\/$#U

    जवाब देंहटाएं
  27. sir...tasveer jarur black n white hai...par jindagi ka har rang bhar diya aapne.. :)

    जवाब देंहटाएं
  28. अब समझ में आया आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं...इस के पीछे आपकी शक्ति नीम जी जो छुपी हैं...आपकी इस अतुलनीय जोड़ी को शुभकामनाएं ...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  29. उत्साही जी!
    आपने जिस तरह से अपनी जीवनसंगनी नीमा जी के जीवन का वृतांत, विशेषताएं हम तक पहुचाया, उसे देख बहुत ख़ुशी हुयी. आज के समय में समाज में ऐसे ही प्यारेभरे माहौल की जरुरत महसूस होती है, वरना आज तो आप देखते ही होंगें की आज आपसी शांतिपूर्ण पारिवारिक माहौल मिलना दुस्वार होता जा रहा है..... आपने नीमा जी के आरम्भ से अंत तक कही रूपों को झलकियाँ दिखाई. एक बात जो कहनी है नीमा जी ने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर किया है और शोध भी.. तो निश्चित ही हिंदी साहित्य में आप की ही तरह वे ही साहित्यप्रेमी होंगी, उन्हें भी गहन रूचि होगी! यदि आप उन्हें भी गुलमोहर में साथ-साथ लेकर चले. यानि कभी उन्हें भी अपने साथ ब्लोगिंग में भी उनके अनुभवों, विचारों और भावनाओं को बांटने का सुअवसर दे तो हमें अति ख़ुशी होगी? नीमा जी द्वारा गुलमोहर में लिखी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा..
    यूँ ही आपका आपसे प्रेम ताउम्र बना रहें यही हार्दिक शुभकामना है

    जवाब देंहटाएं
  30. बाबा भारती जी,
    खडक सिंह हम ही हैं अऊर जो आपको सम्वेदना के स्वर में दिखाई देते हैं (जिनको आप गलती से सिंह जी समझ रहे हैं) ऊ हमरे दोस्त हैं... खैर ई सब बात का कोई मतलब नहीं है... सायद हमरे कहने में सब्द का लाचारी रहा होगा, चाहे ग्रामर का कमजोरी, तबे आप मतलब गलत लगाए.. हमरे बक्तब्य के बाद बिस्मयादिबोधक चिह्न लगाना था, जो रह गया.. मतलब हमरे कहने का मतलब था कि फोटो से एकदम गृहिणी देखाई देती हैं कि कोई बिस्वास नहीं करेगा कि ऊ सचमुच एतना प्रतिभा की स्वामिनि हैं... (ई तारीफ का सब्द है, जो हमने भाभी जी के लिए कहा) इसमें उनका सादगी का भाव छिपा था, जो आपको समझने या हमरे कहने में भूल हुआ...
    कबिता का ई हिस्सा पढकर अफसोस मतलब ओही है जो हमको बचपन से एगो डॉक्टर चाहे इंजीनियर का IAS बन जाने पर होता है. टिप्पणी त हम दिल से देते हैं. अंतिम पढकर भी देंगे.
    भाभी जी का संसकरन अगर हमरे कहने के बाद सुरू हुआ है त हम आभार मानते हैं..अऊर पहले से ही अजेंडा में था त हम मन का बात पढने में सफल हुए. अगर हमरे बात से कहींभी किसी का भी भावना आहत हुआ हो त क्षमा चाहते हैं. बरिष्ठ हैं आप, स्नेह बनाए रखिए.

    जवाब देंहटाएं
  31. दिलचस्प अंदाज़ेबयां... बेहद खूबसूरत

    जवाब देंहटाएं
  32. @खड्गसिंह जी,
    पहली बात तो यही कि मैं यही समझ रहा था । आधुनिक खड्गसिंह दो लोगों की जोड़ी है। खैर अब तो बात समझ में आ गई।

    दूसरी बात भी यही कि मैं वही समझ रहा था जो आपको समझ में आया। अगर आप दुबारा अपनी पुरानी टिप्‍पणी पढ़ें तो उससे यही भाव निकलता है। खैर अब जब आपने अपना मतंव्‍य स्‍पष्‍ट कर दिया है तो बात साफ ही हो गई।

    आप यह सब प्रशंसा में कह रहे थे इसके लिए नीमा और मेरी तरफ से बहुत बहुत आभार है। हालांकि ऐसा कुछ है नहीं। हम सबमें ऐसा कुछ कुछ होता है,कुछ उभरता है कुछ खो जाता है।

    बिलकुल आपकी टिप्‍पणी पढ़कर और उन्‍हें पढ़वाकर मैंने उनसे आग्रह किया कि चलो इस बहाने आप भी अब अपना पक्ष लिख ही डालो। वे इसके लिए तैयार हो गईं हैं। इसका सारा श्रेय निसंदेह रूप से आपको ही जाएगा।

    हां ब्‍लाग पर आने या ब्‍लाग से जुड़ने के लिए अजित जी,निर्मला जी का आर्शीवाद और वंदना जी, हीर जी,स्‍वाति जी और कविता जी की जो शुभेच्‍छा है वह भी उन्‍हें प्रेरित कर रही है।

    यह बात आप दिल से निकाल दें कि आप की बात ने कहीं आहत किया है। कतई नहीं। मैं जात पात में यकीन नहीं करता। लेकिन प्रतीक के लिए कह रहा हूं कि जात का लेखक हूं और गोत्र से सम्‍पादक। सो इस तरह की चीर-फाड़ में लगा ही रहता
    हूं।
    शुभकामनाएं
    बाबाभारती

    जवाब देंहटाएं
  33. @शुक्रिया कविता जी,
    आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर सचमुच ऐसा लगा कि मैंने बहुतों को उद्वेलित किया है, यह कविता लिखकर। जबकि मेरा उद्देश्‍य तो बहुत ही सीमित था बस नीमा के प्रति अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त करना।

    जैसा मैंने पहले भी लिखा कि नीमा अभी कम्‍प्‍यूटर से इतना परिचित नहीं हैं। हां पक्‍के तौर पर वे लिख सकती हैं यह उनमें क्षमता है। मै कोशिश कर रहा हूं कि वे लिखें। मैं उनके लिखे को ब्‍लाग पर लाने का प्रयत्‍न भी करूंगा। हौंसला बढ़ाने के लिए आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  34. @शुक्रिया पारुल,इस विशेषण के लिए।

    @शुक्रिया कोरल की तृप्ति जी।

    @शुक्रिया नीरज जी मान बढ़ाने के लिए।

    @rohitler जी।

    जवाब देंहटाएं
  35. @जीती रहो अंशु बिटिया।
    हमें तो आज पता चला कि तुम अपने फूफा जी की फैन हो। क्‍या कहूं। यह बात तो तुमने सही कही कि किसी के संघर्ष की इज्‍जत करना बहुत बड़ी बात है। सचमुच यह उस व्‍यक्ति को सम्‍मान देने जैसा ही है। अब शुक्रिया भी कहे ही देता हूं।

    जवाब देंहटाएं
  36. चंद लाइनों में किसी के जीवन, किसी व्‍यक्‍ितत्‍व को समेटना आसान नहीं लेकिन उत्‍साही जी आपने ये काम बखुबी किया है।


    दीपाली

    जवाब देंहटाएं
  37. अब निकली है कविता ह्रदय की गहराइयों से ।और इतनी आत्मीयता से लिखी रचना ही तो सही मायनों में रचना होती है ।नीमा दी सचमुच एक प्रेरणा तो हैं ही खुशकिस्मत भी कम नहीं हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  38. aadarniy sir
    aap dono ki jodi sach me ishwar ne fursat me banaai hai. aapdono hi itane bhagyshali hain jo jo jeevan saathi ke roop me ek duje ko mile.main hriday se aap dono ke hi is viswas , sneh aur prem konaman karti hun.
    han!AAPNE MERI kavita ka jo sanshodhi karan kiya hai uske liye bhi mai aapki
    aabhari hun. main ise punah aapke anusaar hi post karungi.
    ummid hai aap aage bhi aise hi mera marg darshan karte rahenge. kuchh shabd type karte samay chhoot gaye the unhe punah likhungi
    aabhar sahit.
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  39. Rajesh Bhaiya!! maaafi chahta hoon, late se aane ke liye!! Delhi se bahar tha........


    Neema Bhabhi ke jindagi ko rubaru karane ke liye dhanyawad......

    sach me aisa lag raha hai, jaise bhabhi ke haatho ke pyaj aur haldi ka gand aapke kavita se aa raha ho!1

    koi apne sahchar ka bakhan itna bakhubi se kar payega, ye mujhe nahi pata tha.......

    Neema bhabhi bhi dhanya hongi Rajesh bhaiya ko pakar!!

    aap dono ko iss anuj ka sprem namaskaar!!

    aap dono ki jodi kayam rahe........

    जवाब देंहटाएं
  40. बाबा भरती नाम हम दिए आपको, आप हमको अपना जाति अऊर गोत्र बताकर बस में कर लिए, अऊर आज आपका टिप्पनी पढकर त ऐसा लगा कि हम खड़ग सिंह से अंगुलीमाल बन गए अऊर आप गौतम बुद्ध...

    जवाब देंहटाएं
  41. rajesh ji,kvita bahut khubsoorat hai.kisi ko kavita me dhal dena prem ki parakashtha hai .tabhi to aapne behad aam baaton ko khss bana diya .madhyam-nimn varg ki ladkiyon ke sath aisa hota hai par sabke sath utsahi jaisa rachnakar nahi hota .aapki patni bhagyashali hai.aap ek sachche rachnakar

    जवाब देंहटाएं
  42. jindgi ko aj tak is tarah nahin padha. aapne jis samvedna se apni ardhangini ke ateet ko mahsoos kiya hai vo aapke andar ke insaan ki sahi tasvir prastut karta hai. neema ji ko pranaam karta hoon.
    aapne sahi arth lagaya tha dada mane bada bhai. bujurg hon sahitya ke dushman.

    जवाब देंहटाएं
  43. बाबा भारती... हमरे ब्लॉग लिस्ट में नहीं आ रहा है... गुलमोहर पर भी नहीं दिखाई देता है कुछ… आपको मिस करें त होइए नहीं सकता है...प्लीज..लिंक भेजिए!!

    जवाब देंहटाएं
  44. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  45. neema ke bahane aapne kai logon ki baat likh di ... aur mere blog par toh kavita hi rach aaye ...bahut dhanyavaad

    जवाब देंहटाएं
  46. आदरणीय सर,
    मैं आपकी आभारी हूँ की आप मेरा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
    आपकी टिप्पणी ने मुझे मेरी खामी से अवगत कराया पर मैं गलती की माफ़ी चाहते हुए आपसे मन की बात कहना चाहूँगी कि मैंने दूसरे चरण में उस पात्र के मनोभावों का चित्रण करना ज़रूरी समझा जिस धोखे के बाद उसके सारे सपने बिखर के रह गये।
    धन्यवाद सहित,
    पूनम

    जवाब देंहटाएं
  47. जिस सहजता से आपने नीमा जी के जीवन और व्यक्तित्व पर इस रचना के माध्यम से प्रकाश डाला उसकी जितनी प्रशसा की जाये कम है.

    जवाब देंहटाएं
  48. Behad bebaki sey likhi aapne apni patni ki ye katha ,maza aaya ye kahna anyaya hoga per jeevan key tamam rang aapney daal diye hai,sneh ,samarpan,dayittva ,sankalp aur anurag bhi.wakai jeeney ki ada aapko aati hai.Adarneeya bhabhi ji ko pranam aur aapko bhi,
    sader
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  49. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    Your dedication and contribution towards the our matr bhasha hindi is immense..

    जवाब देंहटाएं

गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails