फोटो : राजेश उत्साही |
।। एक ।।
बेशक
सब बलात्कारियों को
चुन चुनकर चढ़ा दो फांसी पर
वे दोषी हैं
उन्होंने नहीं समझा स्त्री को मानव
समझा केवल भोग्या
पर क्या तुमने समझा है
राह चलते जब बजती हैं सीटियां
सुनकर भी तुम अनजान बने रहते हो
कसे जाते हैं जब फिकरे
गली के कोनों में मेहमान बने रहते हो
तुम्हारी ही आंख के नीचे
होते हैं भद्दे इशारे
सुनाए जाते हैं दो अर्थों वाले चुटकुले और गाए जाते
हैं गीत
हर स्त्री को समझा जाता है चीज
अपने दिल पर हाथ रखकर पूछो
क्या तुम नहीं हो इसमें शामिल ?
।। दो ।।
मारना होगा
हम पुरुषों को अपने अंदर बैठे
वासना के उस भेडि़ए को
जो तब जब देखकर मौका
हो उठता है कामातुर
न मार सकें अगर उसे
तो खुद ही डूब मरें पानी पानी होकर
भेडि़या हममें से किसी में भी हो सकता है
हम अपने को न मान लें दूध का धुला।
।। तीन ।।
सोचता हूं मैं
रोज सुबह बैठा हुआ
शेयर आटो में किसी अनजान महिला से सटकर
उसके स्पर्श से
क्यों नहीं जागती मुझमें कोई उत्तेजना
क्यों महसूस नहीं करता हूं मैं स्पर्श,
कि कुंद हो गई हैं मेरी इंद्रियां
या कि बंधा हूं मैं अलिखित सामाजिक नियमों से
या कि डरता हूं मैं ,
अपनी तथाकथित सामाजिक हैसियत
और इज्जत के मटियामेट हो जाने से
और इज्जत के मटियामेट हो जाने से
या कि मैं प्यार करता हूं स्त्री मात्र से
प्यार करता हूं मैं स्त्री के अहसास से
उसके रूप से, उसके मोहक भाव से
उसके संपूर्ण अस्तित्व से
आदर करता हूं मैं
अपने अंदर बसी स्त्री से
जो समझती है मां, बहन, बेटी,
पत्नी और प्रेयसी को भी
और उससे भी बढ़कर एक हमजात को
सोचता हूं मैं।
0 राजेश उत्साही
राजेश जी गहरी संवेदनायें हैं बस हम शर्मसार हैं ये क्या हो रहा है ?
जवाब देंहटाएंवंदना जी यह कोई पहली घटना नहीं है...मुश्किल यही है सब घटना की बात करते हैं..समस्या की जड़ को खोदने का काम बहुत कम हो रहा है।
हटाएंआक्रोश बरस रहा है पंक्तियों में जो बिलकुल वाजिब है ...
जवाब देंहटाएंशर्म आने लगी है पुरुष होने पे भी अब ...
सचमुच...लगता है जो भी हम कर रहे हैं उसका समाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा है वह लगातार रसातल में जा रहा है..
हटाएंबहुत सार्थक ... मन में यदि दूसरे के प्रति सम्मान का भाव हो तो ऐसे कांड ही न हों ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंआप तक मेरी भावनाएं पहुंचीं,आपने समझीं...आभारी हूं।
जवाब देंहटाएंसभी को अपने गिरेहबान में झांकना होगा..
जवाब देंहटाएंजिस दिन इमानदारी से यह होने लगेगा,बहुत सारी समस्याएं हल हो जाएंगी।
हटाएंham sharmsaar hain...:(
जवाब देंहटाएंकेवल इतने से काम नहीं चलेगा..कुछ और भी करना होगा...
हटाएंसार्थकता लिये बेहद सशक्त रचना ...
जवाब देंहटाएंसादर
दर्द की चीख
निकलती है जब
घुटती साँसे
...
उम्मीद है वातावरण बदलेगा...
हटाएंएक अनूठी प्रस्तुति ...बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनु जी..
हटाएंबहुत जोरदार रचना है.
जवाब देंहटाएं१) सही बात गुनाहगारों को सजा तो मिलनी ही चाहिए..
जवाब देंहटाएंइन लड़को के छोटे -छोटे कदमो को रोके टोके तो आगे ये ऐसे कुकर्म नहीं करेंगे....
२) अपने मन की सफाई जरुरी है..
३) यही सोच सबकी हो तो कोई गलत काम ही न हो..
बहुत ही बेहतरीन रचना..
सशक्त रचना जोरदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने..सच को बहुत दूर ढूंढ़ने के जरुरत नहीं होती है ..कितना कुछ अपने आस-पास ही घटित होता है यदि हम उसके प्रति ही जागरूक हो जाय तो समस्या विकट नहीं हो सकती ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जागरूकता भरी प्रस्तुति .आभार