फोटो : राजेश उत्साही |
हम तो हैं चपरासी
किसे चिंता जरा-सी
गरमी,ठंडी या बरसात
बच्चा होने वाला हो घर में
या हो और कोई खास बात
नहीं मोहलत जरा-सी
हम तो हैं चपरासी
किसे चिंता जरा-सी।
टाइपराइटर के बिन स्याही
के फीते से हम घिसते
बिना ग्रीस के पंखे से
हम हरदम हैं झलते
न चैन,न ही फुरसत जरा-सी
हम तो हैं चपरासी
किसे चिंता जरा-सी।
बीते कब दिवाली की छुट्टी
कब आए मकिया की भुट्टी
अपनी तो कटती है दफ्तर और
साहब के घर में पूरी बारहमासी
हम तो हैं चपरासी
किसे चिंता जरा-सी।
0 राजेश उत्साही
चपरासी की व्यथा कथा ॥सटीक ...
जवाब देंहटाएंवाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यों हमें यह व्यथा कम, एक सच्ची कथा ज्यादा लगी......
जवाब देंहटाएंअब हर ओहदे के नफा नुक्सान होते है......
चपरासी को कम से कम नक्सली उठा के तो नहीं ले जाते.......
सादर.
बढ़िया कविता... चपरासी के बहाने छोटे ओहदे पर कम कर रहे लोगों के प्रति संवेदना की अभिव्यक्ति है..
जवाब देंहटाएंचपरासी के मन का दर्द बताती ...प्रभावी प्रस्तुति ....!!
जवाब देंहटाएंएक समय ऐसे ही थे चपरासी.. मगर अब शायद नहीं होते.. या होते भी हों तो लुप्तप्राय... आपकी संवेदना ने उस व्यथा को छुआ, उसका सम्मान!!
जवाब देंहटाएंचपरासी तो ऐसे ही होते हैं। हां आजकल चपरासी के भेष में साहब भी होते हैं।
हटाएंबिल्कुल सटीक चित्रण किया है आपने ... इस अभिव्यक्ति में ...आभार ।
जवाब देंहटाएंव्यथा सच्ची एक चपरासी की ..........सुंदर!
जवाब देंहटाएंक्या बात है!
जवाब देंहटाएंएक चपरासी की मनोव्यथा...अच्छी तरह मुखरित हुई है
जवाब देंहटाएंचपरासी जैसा ही है चौकीदार..मैं सालों साल सुबह या शाम बड़े से गेट के सामने जब चौकीदार को बैठे देखती हूँ तो कुछ ऐसे ही भाव मन में उठते हैं.. सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंAB CHAPRASI
जवाब देंहटाएंMADHYAM VARGEEY HAI.
UDAY TAMHANE
B.L.O.
एक चपरासी की व्यथा कुछ यूँ भी ...
जवाब देंहटाएंकभी ना मुहँ से बोलने वाला
पत्थर रहा तराश हूँ मैं ,
जिसमें सूरज ,चाँद ना तारे
वो सुना आकाश हूँ मैं ||...अनु
यह पोस्ट चपरासी के अस्तित्व-बोध को सही मायने में दर्शाने में सफल सिद्ध हुआ है ।कविता अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक ... चपरासी के जीवन कों कुछ तो अस्तित्व मिला .. चाहे इन शब्दों में ही मिला ...
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