फोटो : राजेश उत्साही |
कमरे के कैलेंडर
कमरे की हवा के सहयोग से
करते हैं आवाज,बतियाते हैं जोर जोर से
कहते हैं
इस आदमी को कितनी बार समझाया
पर इसकी समझ में नहीं आया
अरे
इससे कहो
बंद करले दरवाजे, खिड़कियां
सिर्फ अपने तक रहे सीमित
न सुने,
न सुनाए बात-बात पर टिप्पणियां
मैं
समेटकर ध्यान अपने में सीमित
करने लगता हूं
उठकर कमरे के दरवाजे, खिड़कियां
बंद करने लगता हूं
तभी कमरे के बाहर
दूर-दूर तक फैले पेड़
बाहर की हवा के सहयोग से
करते हैं शोर, जोर जोर से
अरे ओ आदमी
तुम हम से यूं नजर न फेरो बेगानों की तरह
कुछ हमारे बारे में भी सोचो सच्चे इंसानों की तरह
तुम सब यूं अपने में सीमित हो जाओगे
यूं अपने अपने दायरों में बंद हो जाओगे
फिर हमारा क्या अस्तित्व होगा
फिर हमारा क्या महत्व होगा।
...इंसान भी अब ठहरा हुआ पानी और ठूंठ-सा पेड़ बन गया है !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंवाह...................
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची और अच्छी बात कहीं...
सादर
अनु
भाव सार्थक गीत के, आवश्यक सन्देश ।
जवाब देंहटाएंखुद को सीमित मत करो, चिंतामय परिवेश ।
चिंतामय परिवेश, खोल ले मन की खिड़की ।
जो थोड़ा सा शेष, सुनो उसकी यह झिड़की ।
उत्साही राजेश, साधिये हित जो व्यापक ।
बगिया वृक्ष सहेज, तभी ये भाव सार्थक ।।
पेड़ों की गुहार अनसुनी नहीं की जा सकती!! बहुत ही संजीदा बात, बहुत ही सादा अलफ़ाज़ में बयान की है आपने!!
जवाब देंहटाएंखिड़कियाँ खोलने और बंद करने की किंकर्तव्यविमूढ़ता से जूझ रहा है आदमी। हवा है कि मानती नहीं।
जवाब देंहटाएंपेड़ों की पुकार में कितनी सच्चाई है ... अपनी अपनी आत्मा से सुनना होगा
जवाब देंहटाएंभीतर की हवा यानि स्वकेंद्रित मनःस्थिति.और बाहर की हवा यानि स्व का विस्तार...बहुत सुंदर बोध कराती कविता..आभार !
जवाब देंहटाएंउनके बिना हमारा भी क्या अस्तित्व होगा?
जवाब देंहटाएंsundar kavita...
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंकमरे ए बाहर जो प्रकृति है उससे कैसे आंख मूम्द सकता है कवि हृदय और जो सच है वह मन से बाहर तो आएगा ही।
जवाब देंहटाएंयूँ अपने दायरे में सीमित रहकर जब एक दिन ऊब कर खोलेगा खिड़कियाँ तो शिकायत करने को ना पेड़ होंगे ना मिलेंगी शीतल हवाएं.
जवाब देंहटाएंपेड़ों के मानवीकरण भाव बोध से जोडती है ये रचना -बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई अपने आप से कटा आदमी प्रकृति से पर्दा ही रखेगा .देखते नहीं हैं कान में ठूसें ईयर फोन नै पौध को .
जवाब देंहटाएंमहाकाल के हाथ पे गुल होतें हैं ,पेड़
सुषमा तीनों लोक की कुल होतें है पेड़ .
कृपया यहाँ भी पधारें -
रविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~(वीरुभाई
)
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कितनी थी हरजाई पूनो -
http://kabirakhadabazarmein.b
वाह ... बहुत खूब .. !!
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