।।एक।।
मेरे तुम्हारे
बीच का फासला
जैसे सात समन्दर पार की दूरी
सात समन्दर पार जाना
शायद
अब भी हमारी
संस्कृति के खिलाफ है।
।।दो।।
चुप-चुप सी
ऊपर से
अंदर-अंदर ही आंदोलित
नर्मदा
और दूर रेत पर
जलती आग
जैसे मेरा दिल हो।
।।तीन।।
उतर आया है
पूरनमासी का चांद
प्रतिबिम्ब में नजर
आ रहा है तुम्हारा चेहरा
ठीक वहीं,
जहां काला दाग है चांद में।0 राजेश उत्साही
komal
जवाब देंहटाएंDeep yet understandable ...
जवाब देंहटाएंharsh yet lovable...
निशब्द कर दिया…………तीनो ही शानदार्।
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों का संगम ... ।
जवाब देंहटाएंआज 03 - 11 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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तीनों क्षणिकाएँ ..प्रेम को उभारने में सक्षम हैं ... सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भाई जी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
ऊपर की दोनो तो बहुत अच्छी लगीं..समझ में भी आ गईं। तीसरी में अटका..मन में हुआ खटका।
जवाब देंहटाएंजैसे कि... तुम वहां कभी नहीं हो सकती जहां चाँद में काला दाग है। फिर उलझा..काले दाग की जगह तुम हो तो अब चाँद और भी सुंदर दिखने लगा है ...यह भाव है। फिर मन ने कहा नहीं नहीं यहां तुम का अर्थ वे हैं जो नर्मदा को कलुषित कर रहे हैं। शायद अर्थ के खोज की जिज्ञासा ही कविता का सौंदर्य है।
मेरा यह भी मानना है कि कवि कविता किसी एक अर्थ में लिखता है और पाठक उसमें कई अर्थ ढूंढ लेते हैं। वे अर्थ भी जो कवि की कल्पना में नहीं होता।
@ देवेन्द्र जी आपका विश्लेषण एकदम सही है। नर्मदा को कलुषित करने वाला भाव तो मैंने नहीं सोचा था। हां यह डर जरुर रहा कि कहीं कोई 'उन्हें' भी काला दाग न समझ ले। पर जैसे कि आपने ही कहा कवि कविता किसी एक अर्थ में लिखता है पाठक उसमें कई अर्थ ढूंढ लेते हैं। मैं कहूंगा वे 'अपने' अर्थ ढूंढ लेते हैं।
जवाब देंहटाएंKAVITA JAANDAR HAI. UDAY TAMHANEYA.
जवाब देंहटाएंKAVITA ME TO PATHAK KAI ARTH DHOONDHATE HI HAI. JAISE DAAG ACHCHHE HOTE HAI. @ UDAY TAMHANEY.
जवाब देंहटाएंराजेश जी, आपकी तीनो ही कविताओं में अद्भुत सौन्दर्य है। अभिभूत हूं। खासकर आपको कम शब्दों के इस्तेमाल से, कमाल ये कि कोई फतवा नहीं...एक आंतरिक रिदम तो है ही। सिर्फ वाह कह कर अपने मन की अथाह प्रशंसाभाव को प्रकट नही चाहता।
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