सोमवार, 7 मार्च 2011

स्‍त्री : दो कविताएं


।। एक ।।
स्‍त्री
ही है
जो लाई है मुझे
इस दुनिया में
बनाया है जिसने अपनी
मिट्टी से गर्भ में

सिर पर
रखकर ममत्‍व भरे हाथ  
दी है दृष्टि
दुनिया देखने की

स्‍त्री
ने ही
बोया है अंतस्
में असीम स्‍नेह

उसके
सौन्‍दर्य
ने किया है चकाचौंध
भरी है ऊर्जा सीने में
कहीं

स्‍त्री ही
भर पाई है
आवारा और अराजक
पुरुष में
एक गृहस्‍थ की गंध

जटिल
परिस्थितियों में
आया है याद
प्रेम
स्‍त्री का
उबारने मुझे

हारते
हुए जीवन में
आत्‍महत्‍या के कायर
विचारों को धमकाया है
जीवन से भरी
स्‍त्री और उसकी
बातों ने

स्‍त्री
ही है कि
रहेगी सदा साथ
या कि मैं रहूँगा स्‍त्री के साथ
पुन: मिट्टी होने तक।
    *राजेश उत्‍साही
 (2000 के आसपास रचित,संपादित 2010)


।। दो ।।
स्‍त्री
तुम जा रही हो
ल‍कड़ी चुनने या कि रोपने जंगल

स्‍त्री
तुम जा रही हो बोने सुख
या कि रखने बुनियाद

स्‍त्री
तुम पछीट रही हो आसमान
या कि गूँध रही हो धरती

स्‍त्री
तुम कांधे पर ढो रही हो दुनिया
या कि तौल रही हो
आदमी की नीयत

स्‍त्री
तुम तराश रही हो मूर्ति
या कि गर्भ में मानव

स्‍त्री
तुम विचर रही हो अंतरिक्ष में
या कि समुद्र तले


स्‍त्री
तुम रही हो चार कदम आगे
या कि हो हमकदम

स्‍त्री
तुम बहा रही हो नयन से स्‍नेह
या कि आंचल से अमृत

स्‍त्री
तुम इस दुनिया में
या कि ब्रह्मांड में जहां भी
जिस रूप में हो
मैं तुमसे प्रेम करता हूं !
 *राजेश उत्‍साही
(2000 के आसपास रचित,संपादित 2010)

35 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों कवितायेँ बहुत सुन्दर है ! दूसरा ज्यादा अच्छा लगा ! खासकर आसमान पछिटना और धरती गुन्दने वाली बढ़िया लगी ...

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  2. अच्छी हैं दोनों कविताएँ.

    "स्‍त्री तुम पछीट रही हो आसमान या कि गूँध रही हो धरती"

    इस पंक्ति से चंद्रकांत देवताले की एक कविता याद आ गयी.

    जवाब देंहटाएं
  3. दोनो ही कविताये शानदार्……………दूसरी का अन्दाज़ बहुत सुन्दर लगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. तुम कांधे पर ढो रही हो दुनिया
    या कि तौल रही
    हो
    आदमी की नीयत

    kitna sahi kaha , bhaiya aapne:)
    itni seedhe saadhe sabdo me aap apne man ke andar ki baat ko rakh jate ho..aur wo ek pyari see kavita ban jati hai..:)

    जवाब देंहटाएं
  5. दोनों ही रचनाएं बहुत प्रभावी ... नारी में मर्म को पहचानते हुवे .... बहुत खूब राजेश जी ..

    जवाब देंहटाएं
  6. राजेश भाई किन शब्दों में प्रशंशा करूं आपकी इन दोनों रचनाओं की...मन गदगद हो गया पढ़ कर ...इश्वर आपकी लेखनी की धार को हमेशा यूँ ही पैनी रखे...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  7. दोनो ही रचनाएं बहुत सुन्‍दर ..इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  8. स्त्री. इस विषय पर पिछले कई दिनों से कई रचनाएँ पढ़ी हैं लेकिन बस एक ही मुक्कमल कविता पढने को मिली है.. दोनों कविता स्त्री विमर्श को पुनः परिभाषित कर रही है.. सुगठित और ससक्त कविता.. मेरे लिए तो आदर्श...

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  9. तुम पछीट रही हो आसमान
    या कि गूँध रही हो धरती

    सुन्दर पंक्तियाँ..
    दोनों कविताएँ बहुत ही प्रभावी हैं.

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  10. गुरुदेव!
    दोनों कविताओं के माध्यम से नारी के सभी रूपों को चित्रित किया है आपने... वंदनीय!!

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  11. rajehs ji, rachna padhne ke bad sonch men duba hun
    abhi bas .....

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  12. स्त्री की अस्तित्व की गहराई यूं तो अथाह और असीम है , बहुत लिखा भी जा चुका है, और जा भी रहा है परन्तु, आपने स्त्री व्यक्तित्व की विभिन्न परतों की जो परिधि अपने शब्द चित्रों, बिम्बों और भाव भंगिमाओं में उकेरी है, उसे देखने और समझने के लिए एक स्त्रीमन की ज़रुरत होती है ऐसे में एक पुरुष होकर स्त्रीमन की विभिन्न अवस्थाओं का बहुआयामी सटीक और संवेदनशील वर्णन आपकी लेखनी से नए कलेवर में कलमबद्ध होकर सही मायनों में बेहद ही प्रभावशाली और मुकम्मल परिभाषित हो रहा है.
    स्त्री
    तुम इस दुनिया में
    या कि ब्रह्माण्ड में जहां भी
    जिस रूप में हो
    मैं तुमसे प्रेम करता हूँ..
    खास कर आपकी द्वितीय कविता की अंतिम चंद पंक्तियों में जो भाव आपने भरा है, कितना गहरा है. मुझे इतना भाया कि मेरे शब्द श्रीहीन होर हैं तारीफ में. वाकई नमन करने योग्य है...!
    आपकी कलम से ऐसी ही भावगर्भित और हृदयाअभिराम रचनाओं का सृजन होता रहे और हमें सरोबार करता रहे, इन्ही कामनाओं के साथ आभार ! प्रणाम !

    जवाब देंहटाएं
  13. दोनों कवितायेँ बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
    .इस सार्थक प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  14. आपकी दोनों रचनाये बेहतरीन लगी ...आभार !

    जवाब देंहटाएं
  15. स्त्री की गरिमा को कहती बहुत सुन्दर रचनाएँ ...इस प्रस्तुति के लिए आभार

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  16. दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं...

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  17. आपकी मेल मिली ...शुक्रिया....
    दोनों ही कवितायेँ सराहनीय हैं .....
    इन कविताओं ने मन के बहुत से नील धो दिए ....

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  18. बेहतरीन प्रस्तुति।
    कविताओं के माध्यम से भावनायें बहुत अच्छे से व्यक्त कर पाते हैं कुछ लोग, आप उनमें से एक हैं।

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  19. दोनो ही कविताएँ अच्छी हैं मगर दूसरी के कहने का ढंग निराला है।
    ..मुझे तो दूसरी कविता बहुत अच्छी लगी।

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  20. दोनों ही रचनाएं बहुत अच्छी हैं...मुझे दूसरी वाली बहुत अच्छी लगी।
    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा...

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  21. हां, भई मुझमें अगर शिशु है
    तो मां हर जगह है।।

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  22. स्त्री के प्रति स्नेह और आदर भाव से मन आप्लावित हो रहा है ...
    बहुत सुन्दर कवितायेँ !

    जवाब देंहटाएं
  23. दोनों रचना में स्त्री के विविध स्वरुप को सुगठित और ससक्त ढंग से आपने विस्तार दिया है, इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार ..

    जवाब देंहटाएं
  24. इस रचना की हर लाइन अपना प्रभाव छोडती है ! शुभकामनाएं राजेश भाई !

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  25. स्त्रियों से ही ये दुनिया है

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  26. नारी के विभिन्न रूपों का वर्णन करती कवितायेँ अति सुन्दर बन पड़ी हैं .
    सुधा भार्गव
    subharga@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  27. देर से पढ़ पा रहा हूँ ये कवितायेँ .. लेकिन संतोष है कि कविता पढ़ ली... स्त्री पर बहुत कवितायेँ लिखी गईं हैं लेकिन जिस गहराई और दृष्टि से ये कविता लिखी गई है अद्भुद है... कविता की अपनी शैली है.. अपने भाषा है .. अपनी संवेदना है... कवि जब कहता है कि तराश रही हो गर्भ में मानव.. स्त्री सृष्टा बन जाती है...दोनों कवितायेँ बेहतरीन !

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  28. Sab jante hain k wo mahaan h fir bhi jane anjane kabhi na kabhi koi na koi aisi baat kehte hain k stree ko stree hone ka garv na rahe.. chaliye aisi kavita se hi sahi santosh to h k Sahitya me hi sahi sammaan baaki h :(

    जवाब देंहटाएं
  29. होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
    आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।

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  30. बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
    आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  31. आपकी रचनाओं में स्त्री को जो मान और सम्मान मिला है सच ही वह उसकी हकदार है. पर इसे हासिल करने में उसे बहुत जद्दोजहद करनी पड़ रही है. अर्थ भारी कवितायें. शुभकामना.

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  32. बहुत अच्छी रचनाएँ ...
    स्त्री को बहुत अच्छी परिभाषा दी है आपने..आपका धन्यवाद
    होली के आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  33. ati sundr rchna stri ke hr phloo ko ujagr krti rchna
    sadhuvad स्त्री
    Written by dr.ved vyathit atSeptember 10, 2010 (7:35 am)

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    पुरुष यानि व्यक्ति
    जो सो सकता है पैर फैला कर
    सारी चिंताएं हवाले कर
    पत्नी यानि स्त्री के
    और वह यानि स्त्री
    जो रहती है निरंतर जागरूक
    और देखती रहती है
    आगम की कठोर
    नजदीक आती परछाई को
    और सुनती रहती है
    उस की कर्कश पदचापों की की आह्ट
    क्योंकि सोती नही है वह रात २ भर
    कभी उढाती रहती है सर्दी में
    बच्चों को अपनी हृदयाग्नि
    और कभी चुप करती रहती है
    बुखार में करहाते बच्चे को
    या बदलती रहती है
    छोटे बच्चे के गीले कपड़े
    और स्वयम पडी रहती है
    उस के द्वारा गीले किये बिछौने पर
    या गलती रहती है हिम शिला सी
    रोते हुए बच्चे को
    ममत्व का पय दे कर
    और कभी २ देती रहती है
    नींद में बडबडाते पति यानि पुरुष के
    प्रश्नों का उत्तर
    क्योंकि उसे तो जागना ही है निरंतर

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गुलमोहर के फूल आपको कैसे लगे आप बता रहे हैं न....

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