राजेश उत्साही |
दिया मिट्टी का जले
या तन का
रोशनी दोनों से होती है
दोनों ही तो मिट्टी हैं
तेल में भीगकर
जलती है बाती
सुलगकर वह अंधेरे में
राग उजाले का है गाती
मन की कंदील में
खुशियों का तेल गलता है
रोशनी का झरना
आंखों से निकलता है
दिये की रोशनी
राह जग की दिखाती है
मन की आभा
इसे और जगमगाती है
सरलता से, सहजता से
जो यह जान लेते हैं
समय होता है जो सामने
वही सर्वोत्तम है मान लेते हैं
कहने की नहीं जरूरत
हो सबको मुबारक दिवाली
पकवान जो चाहे बनाएं
या पकाएं पुलाव ख्याली
शुभ हो और केवल शुभ हो
आपको यह दिवाली।
0 राजेश उत्साही
बहुत अच्छी कविता। आपको भी दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबाती उजाले के गीत गाती रहे!
क्या बात है गुरुवर दिवाली का सही चित्रण बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव कविता के ...
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
शुभ हो केवल शुभ हो ...दीपोत्सव की शुभकामनाओं के साथ बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव संयोजन्…………………दीपावली पर्व पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंHappy Diwali to you too :)
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसादर
Bahut sunder,
जवाब देंहटाएंapko S-PARIWAR deep parw ki hardik subhkamnaye.
Sadar
Ravi Rajbhar
GOOLMOHAR' JAISE GOOLO KA MAHAL. @ UDAY TAMHANEY.
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