रद्दी पेप्पर कबबबबबबबबबबबबबबबबाड़ा
की लंबी आवाज लगाता छोकरा
इशारा पाते ही
घर के दरवाजे पर आ बैठता है
स्कूल बैग लिए
बैग में किताबें नहीं होती
पर असली ज्ञान होता है जीविका का
बैग में होती है
एक तराजू और चंद बाट
बाट लोहे के और कुछ पत्थरों के
छोकरा
निकालता है तराजू और
करीने से उसकी डंडी में बीचोबीच बंधी सुतली को
अपने एक हाथ की मुठ्ठी में लटकाकर
दोनों पलड़ों को संतुलित करता है
दिखाता है हमें
हम संतुष्ट नहीं होते
उसके हाथ से लेकर तराजू
खुद देखते हैं
बासी पड़े चुके समाचारों
और ठंडी पड़ चुकी सनसनियों की
रद्दी खरीदने आया है वह
वह तौलता है
हम एक भी अखबार ज्यादा नहीं देना चाहते
तुलवाते हैं इस तरह जैसे
कीमती असबाब बेच रहे हों उसे
देखकर बीच में कोई
रंगीन पत्रिका
ठहर जाता है वह
पलटने लगता है पन्ने
चिकने पन्ने और उन पर छपी दुनिया
देखकर उसकी आंखों में आ जाती है
अजीब सी चमक
तौलते तौलते रद्दी
पूछता है हौले से
कमरे के अंदर नजर डालता हुआ
कुछ कबाड़ा नहीं है और
प्लास्टिक, इलास्टिक ,टीन,टप्पर
हम उसे
लगभग झिड़कने के अंदाज में कहते हैं
नहीं है
जो है वह दे रहे हैं
छोकरा
समेटकर अपना बस्ता
बांधकर साइकिल पर
या फिर डालकर हाथठेले में रद्दी
चला जाता है आगे
या फिर डालकर हाथठेले में रद्दी
चला जाता है आगे
छोकरा
रद्दी ले जाता है खरीदकर
हम खुश होते हैं बेचकर
खुश होते हैं कि हमने उससे कहीं अधिक दाम वसूले
छोकरा
खुश होता है
उसने मारी हर बार डंडी
और बाबू साहब या कि मैडम पकड़ ही नए पाए
दस किलो के दाम में खरीद ली उसने पंद्रह किलो रद्दी
हमने ही सिखाई है उसे यह
होशियारी
छोकरा
खुश होता है
और शायद हम भी।
0राजेश उत्साही
bhaiya aapne bade karine se raddi aur usko kharidne wale ladke ke bich badi khubsurati se uski baimani ko imandaari ka rang chaddha diya:)
जवाब देंहटाएंwaise aapki baat puri tarah se sach hai, aapko galat kahne ki shakti mere me nahi hai..:)
aapke soch ko salam!!
सच का आकलन्।
जवाब देंहटाएंछोकरे ने डंडी मारी इस पर बड़ा हंगामा करते हैं आम लोग लेकिन जो देश पर बाट लगाते हैं उनके लिए कुछ कहना ही बेकार समझ लिया जाता है ... कब जागरूक होंगे हम, एक सवाल मन को कचोटता है ...
जवाब देंहटाएंछोकरे के माध्यम से आपने समाज में फैले सबकुछ देखते हुए भी हमारी मानसिक वृति ' हम भी खुश, वह भी खुश' की प्रवृति का गहन चित्रण कर कर कई सवाल खड़े कर सोचने पर मजबूर किया है .....सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार ..... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
बहुत दिनों बाद दिखा यह छोकरा.. प्यारा सा. जाने क्यों अब यह छोकरा प्यारालगने लगा है, शायद आपकी कविता का असर है कि जब भी यह मुझसे मिलता है मुस्कुरा देता हूँ.. प्रत्युत्तर में वह भी मुस्कुराता है.
जवाब देंहटाएं.
बड़े भाई! बाट में बा के ऊपर से बिंदी हटा दें!
@शुक्रिया सलिल भाई। आपने कहा,मैंने चेक किया और पाया कि आप सही हैं सो बिंदी हटा दी है।पर मजेदार बात यह है कि हम सब बोलचाल में बांट ही बोलते हैं। कभी इस बात पर ध्यान दीजिए।
जवाब देंहटाएंमेरी पहली तीन छोकरा कविताएं 1982 के आसपास की हैं। पर यह छोकरा 2010 का है। चलिए यह मेरी उपलब्धि है कि आपको छोकरा प्यारा लगने लगा है।
@शुक्रिया मुकेश जी। हम सब भी उतने ही ईमानदार हैं,जितना छोकरा। आखिर हम अपना ही अक्स तो देखते हैं लिखे हुए में।
@शुक्रिया वंदना जी।
@शुक्रिया कविता।
हम अपनी ख़ुशी बेचते हैं, वह अपनी ख़ुशी ख़रीदता है।
जवाब देंहटाएंपता नहीं इस ख़रीद-फ़रोख़्त में कौन डंडी मार ले जाता है ...! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
राजेश जी इस छोकरे से मिलवाने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवैसे सालों पहले हम भी मिल चुके हैं इससे।
सच में इस छोकरे के पास असली ज्ञान होता है जीविका का .........
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
आपकी शक्तिशाली कलम को प्रणाम राजेश भाई ...गज़ब का शब्द चित्र उकेरा है आपने !
जवाब देंहटाएंगुरु गरिमा दिखती है आपमें !
छोकरे के बहाने जीवंत तस्वीर उकेर दी आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
उत्साही जी बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
राजेश भाई देर से आया ब्लॉग पर और मिला आपके कबाड़ी छोकरे से.. छोकरा चार अन्य तीन छोकरों से सामान ही अपना प्रभाव छोड़ रहा है.. हमारे जीवन का हिस्सा है लेकिन हम मानते नहीं इसे.. एक अच्छी कविता पढने को मिली... निराला जी के भिखारी का चित्र जीवंत हो उठा है मन में..
जवाब देंहटाएंखुश होता है छोकरा इसी में कट रहा है जीवन ! यथार्थ चित्रं के लिए धन्यवाद ! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमने ही सिखाई है,उसे यह
जवाब देंहटाएंहोशियारी
सच है..बस होशियारी दिखाने की प्रतिद्वंद्विता ही हावी है,सब पर...और सब खुश हो लेते हैं...अपनी जीत समझ....बढ़िया कविता
रद्दी का ढेर इतने प्यारे शब्दों में आजतक नहीं देखा... आज फ़िर से आपने छोकरे को शामिल कर लिया अपनी कविता में... अद्भुत रचना...
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
विचारपूर्ण रचना -क्या हम भी कभी तो रद्दी नहीं हो जाते और कोई हमें इसी तरह डंडी मार के लेके नहीं चला जाता ? बार ऐसे ही रचना पढ़ते हुए मन में सहसा कौंध आया !
जवाब देंहटाएंहम जानबूझकर रद़दी वाले को डंडी मारने देते हैं, ताकि बाद में कविता लिख सकें।
जवाब देंहटाएंअपने ही समाज के बीच का एक दर्द प्रस्तुत किया है आपने...संवेदना निहित एक सुंदर कविता ..राजेश जी आपके ब्लॉग पर जब भी आता हूँ..कुछ ना कुछ सीख कर वापस जाना होता है...आपकी रचनाओं से ज्ञान और प्रेरणा दोनों मिलती है..नमस्कार
जवाब देंहटाएंआपके ये छोकरे बहुत प्रेरणादायक हैं।
जवाब देंहटाएंजब कुछ अच्छा पढ़ता हूँ तो कुछ व्यक्त करने की इच्छा होती है। आपकी कविता से प्रेरित होकर कुछ कहने का साहस कर रहा हूँ।
हर बार रद्दीवाला,
ले जाता है रद्दी,
दे जाता है कुछ पैसे।
और, मैं अक्सर,
तलाशता रह जाता हूँ,
कोई ऐसा,
जो मेरी वैचारिक रद्दी ले जाये
और दे जाये,
कुछ स्वच्छ ताज़ी हवा,
रद्दी वाला छोकरा ही सही।
रद्दी वाला छोकरा,
जवाब देंहटाएंहोता है हमसे ज्यादह समझदार,
जानता है,
कि साहब लोगों ने
जो रद्दी तीस रुपये किलो खरीदी
उसमें से काम का तो
बमुश्किल दस प्रतिशत होता है
और होती है खबरों में डंडी।
इसीलिये चिल्ला-चिल्ला कर,
खुलेआम कहता है
'रद्दी; अखबार वाला,
तीन रुपये किलो रद्दी।'
जिन खबरों के बनने से छपने तक में
डंडी सर्वमान्य हो,
उन्हें बेचने में क्यूँ नहीं।
'chhokre' ko saamne bithaa ,
जवाब देंहटाएंjaane kya kya nahi jhaank liya
khud apne hi andar
hm sb padhne waaloN ne ...
prabhaavshali prastuti !
bahut umda.vicharo ko is tareh se piroya hai aapne ki padhker anand aa gaya......
जवाब देंहटाएंhttp://amrendra-shukla.blogspot.com
मेरे घर के सामने रोज सुबह यही "छोकरा" आवाज लगाता है ,पहले मेरे पतिदेव खूब भाव ताव करते थे आपकी कविता की भांति |अब तो ये रिश्ता बन गया है जो भी रद्दी ,प्लास्टिक बिना तौले दे देते है और वो अपने हिसाब से पैसे भी दे देता है |
जवाब देंहटाएंवैचारिक समुद्र सा एहसास कराती रचना।
जवाब देंहटाएं-------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
श्रीमन आप की कविता पढ़कर रागदरवारी का वह बालक याद आ गया जिसके बुशर्ट की बतने तो टूटी थी, पायजामा भी फ़टा, और नंगे पैर पाठशाला में मौजूद था...जिसे कलकत्ता का सुन्दर बन्दरगाह आदि की कल्पनाए...और
जवाब देंहटाएंthoughtful rachana
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंHappy Republic Day.........Jai HIND
.आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
आज (28/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सुन्दर, एक अच्छी कविता पढने को मिली| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंछोकरे की आंख में होता है
जवाब देंहटाएंदो रोटियों का आकाश
और ऐक कप चाय का गहरा समुद्र
अति संवेदनशील प्रस्तुति.मन को झकझोर देने वाली |
इस श्रंखला को जरुर आगे बढाइये |
chitratmakta liye hue bahut sunder kavita.
जवाब देंहटाएंyetharth chitran.vakai bahut badhiya laga....
जवाब देंहटाएंjitni baar bhi insaan aisa vyapaar karta hai aise hi khush hota hai. yatharth ka sunder spasht chitran.
जवाब देंहटाएं