इन कविताओं का रचनाकाल 2006 के आसपास का है। बंगलौर आने से पहले मैं मप्र की जानी मानी शैक्षणिक संस्था एकलव्य में काम कर रहा था। एकलव्य में हर छह माह में तीन से चार दिन की एक ग्रुप मीटिंग होती है जिसमें संस्था के सभी सदस्य भाग लेते हैं। एकलव्य में मेरी पहचान एक कवि के रूप में स्थापित है। आमतौर पर ऐसी मीटिंग के अवसर पर मैं अपनी कविताएं मीटिंग स्थल के नोटिस बोर्ड पर चस्पा करता रहा हूं। 2006 की मीटिंग में मैंने कोई कविता नहीं लगाई। तो साथियों ने मुझसे यह सवाल पूछ लिया कविता कहां है। जिसके जवाब में मैंने वहीं ये दो कविताएं लिखीं। सामान्यतौर पर मेरी रचना प्रक्रिया यह है कि मैं अपनी कविताएं कम से कम 15 से 20 दिन के बाद ही सामने लाता हूं। पर यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि 'बापू के नाम चार कविताएं' मैंने लिखने के एक घंटे के भीतर ही ब्लाग पर पोस्ट कर दी थीं।
ये कविताएं पिछले दिनों आखरकलश पर पहली बार प्रकाशित हुई हैं। आखरकलश में भेजने से पहले मैंने इन्हें फिर से लिखा है। आपमें से कईयों ने इन्हें वहां पढ़ लिया होगा। अगर आपको अच्छी लगीं थीं तो दुबारा भी पढ़ ही सकते हैं।
कवि भी एक कविता है
पढ़ो
कि कवि भी
एक कविता है
कवि
जो महसूस करता है
अंतस में अपने
वही अपनी उंगलियों की नोक से
उतारता है पेपर पर
या कि कम्प्यूटर पर
कवि
जो महसूस करता है
वह दौड़ता रहता है उसकी रगों में
वही उभरता है उसके चेहरे पर
कविता
जब तक पक नहीं जाती
(बेशक वह कवि का भात है)
या कि
जब तक वह उबल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की दाल है)
या कि
जब तक वह पल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की संतान है)
तब तक
छटपटाती है
कवि के अंतस में
छलकती है चेहरे पर
इसलिए
पढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!
कविता बिना कवि
कविता
के बिना
एक कवि का आना
शायद
उतना ही बड़ा आश्चर्य है
जितना
बिना हथियार के
घूमना ‘डॉन’ का
डॉन
शरीर पर चोट
पहुंचाता है
कवि
आत्मा पर वार करता है
शरीर की चोट
घंटों,दिनों,हफ्तों या कि
महीनों में भर जाती है
आत्मा
पर लगी चोट
सालती है
वर्षों नहीं, सदियों तक
इसलिए
कवि को आश्यर्च
नहीं होना चाहिए
कि उससे पूछा जाए
कहां है उसकी कविता ?
0 राजेश उत्साही
कविताएं आपने पढ़ ही हैं। टिप्पणी करने से पहले यह पढ़ते जाएं कि आखरकलश पर मित्रों ने क्या कहा था।
रश्मि रवेजा के शब्दों में, ‘बहुत ही गूढ़ बात कही है, दोनों कविताओं में ।सचमुच कवि स्वयं भी एक कविता है ...और कवि की बातें ..आत्मा को झिंझोड़ डालती हैं.’।
सुभाष राय ने कहा,. दोनों ही कविताएं बेहतरीन। कवि और कविता की व्याख्या करती हुई। ये जीवन अनुभव राजेश का होकर भी बहुतों का है, जो सही मायने में कविता से जुड़े हुए हैं।’
आशीष बोले, ‘अगर कविताओं का कोई निहितार्थ है तो उसकी गूढता मुझे समझ नहीं आयी! (इसमें कौन सा नयी बात है?!!!!) लेकिन सतही तौर पे अपने लेवल के हिसाब से देखूं तो बेहद सीधे और सरल शब्दों में आपने अपनी बात कही है....सही है कवि भी कविता है....।’
नीरज गोस्वामी ने कहा, ‘राजेश जी आपकी दोनों रचनाएँ अप्रतिम हैं...प्रशंसा के शब्दों से परे हैं...सच्ची और सार्थक हैं...।’
दिव्या ने बात आगे बढ़ाई, ‘सुंदर कविताएं।’ कहकर।
मनोज कुमार ने अपनी बात इस तरह कही, ‘इस कविता के माध्यम से कवि ने बौद्धिक जगत की दशा-दिशा पर पैना कटाक्ष किया है।’
प्रदीप कांत ने कहा, ‘ कवि सरल नहीं जटिल कविता है। कवि पर अपनी तरह से विचार करती कविताएं।’
मोनिका शर्मा ने कहा, ‘दोनों रचनाएं अच्छी लगी.... उत्साहीजी की कविताएं भावप्रधान होती हैं।’
शाहिद मिर्जा ‘शाहिद’ ने फरमाया, ‘कवि और कविता विषय पर बहुत ही शानदार कविताएं पढ़ने को मिलीं।’
सम्वेदना के स्वर आलोक चैतन्य और सलिल ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी, ‘उत्साही जी की कविताएं सारगर्भित होती हैं और हृदय से निकलती है... और विशेष कर तब जब कविता ही कवि और कविता के रिश्तों को रेखांकित करती हो. दूसरी कविता पहले... एक सच्चा बयान..वंदे मातरम एक कविता ही तो है, मगर जब आनंद मठ में यह गीत गूंजता है तब पता चलता है कि यह एक गीत नहीं स्वतंत्रता का हथियार है... किंतु कविता मात्र छंदों और शब्दों में रची कविता नहीं यह एक सम्पूर्ण परिचय है एक कवि का... उत्साही जी, एकदम खरा बयान.
दूसरी कविता में आपने कवि को कविता बताया है और उसके हर रूप को दिखाया है, लेकिन अंतिम पंक्ति की आवश्यकता नहीं थी.. यह कवि को न पढ पाने वाले या पढ़ सकने वाले पाठकों या गुणग्राही जन पर प्रश्न चिह्न लगाती है. कवि का संदेश यहीं समाप्त हो जाता है कि पढो कि कवि भी एक कविता है. इसमें यह भाव स्पष्ट है, उजागर है कि जो कवि को एक कविता की तरह नहीं पढता और सिर्फ कविता को सम्पूर्ण मानता है, वह अनपढ है, उसे कविता का ज्ञान नहीं, एक अर्द्धसत्य है उसका ज्ञान।’
उड़नतश्तरी पर सवार समीर जी ने कहा,’दोनों ही रचनाएँ अद्भुत हैं..आनन्द आ गया बांचकर।‘
राजकुमार सोनी जी का बिगुल बहुत दिनों बाद मेरी रचनाओं पर बजा। उन्होंने कहा, ‘राजेश उत्साही जी हमेशा ही बेहतर लिखते हैं ।यहां प्रस्तुत उनकी दो रचनाएं इस बात का सबूत भी है.मैं उनसे हमेशा कुछ सीखता हूं।’
कोरल की तृप्ति ने कहा, ‘दोनों रचनाएं बहुत सुन्दर है।’
कविता रावत ने कहा, ‘ कहां है उसकी कविता ?...सही सवाल! ...उत्साही जी की काव्यधर्मिता के अनूठी प्रस्तुति के लिए आखर कलश को हार्दिक धन्यवाद और उत्साही जी को सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।’
वंदना बोलीं,’ कवि भी एक कविता है……………क्या भाव उँडेले हैं जो रगों मे लहू बन कर दौडे वो कविता ही तो है कवि और कविता एक दूसरे से जुदा कब हैं। कविता बिना कवि……………फिर तो उसका अस्तित्व ही नहीं है……………।जैसे बिना डोर के पतंग्……………भावों का खूबसूरत समन्वय किया है।’
मुकेश कुमार बोले,’ कवि स्वयं में कविता है। कवि क्यों भैया,हर किसी की जिन्दगी खुद में कविता है।’
प्रतुल जी ने अपनी बात कविता में ही कही, अब तक
कवि को
कविता ने
दिलायी थी प्रतिष्ठा.
आपकी सदाशयता है कि
आप पुरजोर अपील कर
करते हैं पाठको के मन के भीतर
कवियों की सुदर प्राण-प्रतिष्ठा.
आपके
स्वागत के
उठे हाथों को
सम्मान देते हुए
मेरी दृष्टि की
आपके चरणों की ओर
हो रही है निष्ठा
संजीव गौतम ने कहा, ‘राजेश जी की दोनों कविताएं अच्छी हैं। गहरे अर्थ लिए हुए हैं। पहली कविता देखने में साधारण लेकिन अपने में बहुत कुछ समाये हुए है। जो लोग लेखन में कुछ और, निजी जीवन में कुछ और हैं उन पर व्यंग्य भी है। कवि कर्म की स्पष्ट व्याख्या है। कविता का सृजन वास्तव में तुकबन्दी नहीं है। एक-एक शब्द को बरतना है, उसे जीना है।’
बबली बोलीं,’ ‘बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और शानदार रचनाए ! बेहतरीन प्रस्तुति!’
आरती ने कहा, ‘Very nice you have pover to make readers।’
राजीव ने अपनी बात कुछ इस तरह कही, "जब तक वह पल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की संतान है)
तब तक
छटपटाती है
कवि के अंतस में
छलकती है चेहरे पर
झांकती है आंखों से"
इस मर्म को एक कवि से बेहतर बस एक मां ही समझ सकती है .आपने तो सारे कवियों की आन्तरिकता को ही उजागर कर दिया बड़े भैया। संतुलित गतिशीलता और सुंदर शिल्प ने इसे अत्यंत सुग्राह्य बना दिया है.इससे आगे कहने की शायद क्षमता नहीं है अभी मुझमें.इसका सामान्यीकरण इसका मजबूत पक्ष है ,ऐसा मुझे लगाता है।’
निर्मल गुप्त ने अपनी निराशा जाहिर की,‘ उत्साही जी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार से हम कुछ बेहतर कविता की आस लगाये थे -पर यह दोनों कविताएँ तो एकदम साधारण हैं।’
दिगम्बर नासवा बोले, ‘वाह ... बहुत ही लाजवाब ... कवि के अंतर्मन को , उसकी आत्मा को शब्दों में लिखना आसान नही होता पर आपने कर दिखाया ..... कविता सच में छटपटाती है कवि के मन में .... जब तक शब्दों को उचित भाव नही मिलते कवि कविता को अंदर ही रखता है और छटपटाता रहता है .... दोनो बहुत ही सशक्त रचनाएं हैं ....।’
संजय ग्रोवर ने कहा, ‘राजेश उत्साही said... ' "आशीष भाई सही कहा आपने नया कुछ भी नहीं है। बस मुझे लगा कि मैंने जानी पहचानी बात को नए तरह से कहा है। आखिर हम कवि लोग और करते क्या हैं? वैसे कविता आपको जितनी समझ आई, उतनी ही है।’(यह मैंने आशीष की टिप्पणी के जवाब में कहा था।)
इस मायने में अच्छी कविताएं हैं, पढ़ने को मजबूर करती हैं।’
बोले तो बिन्दास के रोहित जी बोले, ‘हमें सरल शब्दों में कविता के अर्थ समझ में आए..हमारे लिए यही कविता है। कविता जो भाव है .भाव का शब्द रूप है।’
देवी नागरानी ने कहा, ‘सच शब्दों में साकार हुआ है और मैं चुप।‘
शेखर सुमन,राकेश कौशिक और हास्य फुहार को भी कविताएं अच्छी लगीं।
अब आप क्या कहते हैं?
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गुलमोहर के छाँव में अईसा ठण्डक मिलता है कि दुबारा ओही कविता को पढने के लिए रुक गए जो आखर कलश पर पढ लिए थे… लेकिन का फरक पड़ता है... टिप्पणी ओहाँ भी दिए थे इसलिए ओही बात दोहराना नहीं चाहते हैं. काहे कि हम अपना बात पर अभी भी कायम हैं अऊर बड़े भाई अपने तरफ से स्पस्ट कर चुके हैं. इसलिए अपना हाज़िरी रात भर जाग कर लगा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंये रचनाएं बार-बार पढने योग्य हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी
कविता कि नयी परिभाषा , बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर परिभाषा ! नए बिम्ब अच्छे लगे !
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश भाई.. यह कविता कविता से कहीं अधिक है.. यह कविता कवि को ईमानदार रहने और पाठक को कवि के भीतर झाँकने के लिए प्रेरित कर रही है.. आखर कलश पर भी पढ़ी थी यह कविता और अब फिर पढी.. मुझे लगता है कविता मेरे लिए लिखी गई है... जो कविता को बिना पकाए/सिझाये प्रस्तुत कर देते हैं.. कविता भी सृजन में समय लेती है जैसे भोजन.. बहुत अच्छी कविता.. यदि मैं अपनी एक भी कविता पका कर प्रस्तुत कर सकू तो यह कविता मेरे कवि कैरियर में मील का पत्थर होगी.. सादर
जवाब देंहटाएंकवि और कविता के कर्म और लक्ष्य को क्या बखूबी और मुकम्मल व्यक्त किया है..! बधाई ! आभार !!
जवाब देंहटाएंकविता
जवाब देंहटाएंके बिना
एक कवि का आना
शायद
उतना ही बड़ा आश्चर्य है
जितना
बिना हथियार के
घूमना एक डान का
वाह , क्या अनुपम प्रतीक है
बहुत सुंदर कविता...बधाई।
राजेश जी ... जो पहले कहा वही दोहरा रहा हूँ ...... कवि मन को बाखूबी समझते हैं आप ...
जवाब देंहटाएंLaga jaise apni hi kavita ko naye kalevar me dekh rahi hu..
जवाब देंहटाएंdono hi rachnayen man ko chooti hain...amazing!
जवाब देंहटाएंकविता क्या होती है, आप्की रचनाए पढने के बाद यह रह्स्य कुछ अच्छे तरीके से खुला. अब आना-जान लगा रहेगा.
जवाब देंहटाएंsundar prastuti !...aabhar !
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश जी,
जवाब देंहटाएंजो आखर कलश पर कहा, वही दिल की आवाज़ है.
बार बार पढ़ने लायक़ रचनाएं हैं.
विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
दोनों ही कविताएँ कवि की अकुलाहट को ब्यां कर रही हैं । कवि की अंतर्दृष्टि ...कुछ ऐसी ही होती है ।
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