एक गिलहरी
अपने भोजन के बहाने
छुपाकर भूल जाती है तमाम बीज मिट्टी में
ताकि कड़े दिनों में आएं काम
मैं भूल
जाना चाहता हूं बोकर
प्रेम के कुछ क्षण
यहां-वहां
ताकि
उदास होने लगूं
जब इस नश्वर दुनिया से
तब
जी सकूं
उनके लिए।
0 राजेश उत्साही
(जून,2010 बंगलौर)
उत्साही बेकार में मेहनत किए जा रहो हो। कोई आपके गुलमोहर तले तो आ ही नहीं रहा। जो आ रहे हैं वे बस फूल चुनकर ले जा रहे हैं । कोई कुछ बोलता काहे नहीं।
जवाब देंहटाएंwah....achhi rachna...
जवाब देंहटाएंमै भूल जाना चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंबोकर प्रेम के कुछ----- दिल को गहरे से छू गये भाव बधाई इस सुन्दर कविता के लिये। वैसे प्रेम से बडा कुछ नही है अगर ये बो दिया तो जिन्दगी सफल है। शुभकामनायें
छोटी मगर बड़ी कविता.
जवाब देंहटाएंजब फुर्सत मिले, प्रेम के बीज बोते रहने चाहिए ...उदास दिनों में काम आते हैं.!..वाह!
खुशी हुई आपको पढ़कर.
rajesh ji ,kavita to sundar hai lekin mujhe yahaan ek ghatna yad aa rahi hai .ek bar ek aadmi ko kuch dha mila .usne logon ki nazar se bachne aur kuchh bhavishya ka khayaal kar us dhan ko zameen me daba diya aur bhool gayaa .par jaroorat ke vaqt vah dhoondhata hi raha use vah dhan fir kabhi nahi mila .isliye beejon ko kured kr dekhtebhi rahiye...shesh shubh
जवाब देंहटाएं@ उर्मि जी,कुछ लोग यही गलती करते हैं। बीजों को बारबार कुरेद कर देखते हैं। बीज जो अपने भ्रूण को विकसित कर रहा होता है, कुरेदने से नष्ट हो जाता है। किसान का काम है बीज बोना। बीज वह उस जमीन में बोता है जिस जमीन की उर्वरता पर उसे विश्वास होता है। अगर किसान हर बीज को बारबार कुरेद कर देखेगा तो बीज तो उगने से रहा और साथ ही जमीन का अपमान भी होगा।
जवाब देंहटाएंलगाकर प्यार के बीज...इसकी छाँव में ज़िन्दगी सुकून से गुजरेगी
जवाब देंहटाएंताकि उदास होने लगूं
जवाब देंहटाएंजब इस नश्वर दुनिया से
तब.....
जी सकूँ
उनके लिए ....
सच्च कहा आपने .....शायद वे बोये बीज ही जीने का सबब बन जायें .......!!
भगत सिंह ने बोई बंदूक की फसले.
जवाब देंहटाएंकिसी कवि ने रोटियों के पेड़ की कल्पना की और शायद किसी ने रुपैये बोये.
अपनी अपनी जगह सबका क बीज रोपित करना समय के अनुसार सार्थक था.पर प्रेम के बीज बोना तो सर्वकालीन सार्थक कर्म है. वो हृदय से, हृदय में बोया जाता है. फसल भी प्यार की ही लहलहाती है, जो बेशकीमती होने के कारण हमेशा मांग में रहती है.इसे तो प्रकृति,पशु,पक्षी,मानव सबको जरूरत होती है.तो डिमांड तो कम होने से रही.
ना ये कर्म बुरा,ना व्यवसाय.
जिसने किया नफे में रहा.
कहीं कोई नुकसान नही.
सर!! सबसे पहले बहुत बहुत धन्यवाद्!! मेरे ब्लॉग पे आने के लिए!!
जवाब देंहटाएंदूसरी बात ये की ये बहुत कम देखा मैंने की किसी ने कविताओं की गलती की और इंगित किया हो!! अधिकतर "वाह" जैसे शब्दलो का ही प्रयोग करते हैं.......और मैं भी :डी!! और सच कहूँ तो मुझे इसकी जरुरत है........मैं तो बस आप जैसो के ब्लोग्स के चक्कर लगाते लगाते अपने कुछ शब्दों को जड़ने की कोशिश करने लगा...........
तीसरी बात........जो आपके कविता के सन्दर्भ में है, और एक दम सटीक बैठती है........आपने अपना प्यार ही बोया है..........मेरे गलतियों को बता कर......साथ ही उम्मीद करूँगा, ऐसे ही आपका आशीर्वाद बराबर मिले........
वैसे मैं आपको बराबर बताता रहूँगा ताकि मेरी गलतियाँ सुधरे........:)
जी बिलकुल! प्रेम कड़े दिनों में बहुत काम आता है ! यह संजीवनी है !सुंदर स्वीकारोक्ति !
जवाब देंहटाएंराजेश जी ,
जवाब देंहटाएंआज आपकी बहुत सी कविताएँ पढ़ीं....कविता की परिभाषा बहुत सुन्दर है और ये प्रेम के बीज भी...आभार
bahut hi sundar kavita ! kitna acchha hota gar hum aisa kar pate ... kash ...
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंsach prem kabhi nishfal nahi jaata...
जवाब देंहटाएंkoi insaan jitna kisi se bewajah nafrat karta hai kash wah bewajah kisi se prem karta to kitna achha hota!!
PREM KE BIJ PAR NAPHART KA KICHAD PADE TO BHI PREM KE HI PHUL LAGENGE! @ UDAY TAMHANEY.BHOPAL.
जवाब देंहटाएं