धोबी : एक
धोबी
और उसके बीवी बच्चे
पछीटते रहते हैं नदी किनारे
कमर-कमर
पानी में
डूबे रहते हैं
चाहे गर्मी हो या ठंड
ह ह ह की आवाज के साथ
पछीटते रहते हैं कपड़ों को
नदी नहीं है न
आपके शहर में
धोबी फिर भी धोता है कपड़े
अपनी झोपड़ी के आगे
छोटे से पत्थर पर
सलीके से लगाता है
कपड़ों में साबुन
कुछ खास
लोगों के कपड़े
ज्यादा मैले होते हैं
इसलिए काले से भगौने में
चढ़ा देता है
धधकती भट्टी पर
और फिर
छोटे से एल्युमिनियम के गंजे में
डुबो डुबोकर निचोड़ता है
जैसे कपड़े नहीं
उसकी इच्छाएं हों।
धोबी : दो
धोबी
धोता है लोगों के कपड़े
कुछ खास लोगों के कपड़े
कुछ रोज के अंतर से
बटोरकर लाता है घर-घर से
खासघर से
मैले-कुचले कपड़े
मैले होते हैं
अफसरों के कपड़े
हराम का पान चबाते हुए
क्लर्कों और चपरासियों को
डांटते हुए
अपने आकाओं से खाते हुए डांट
मैले होते हैं
सेठों के कपड़े
ऊंची मनसद पर बैठकर
आधी नाक पर चढ़ाकर चश्मा
दो के चार
चार के आठ करते हुए
मैले होते हैं
वायदे करने वालों के कपड़े
उद्घाटन के फीते काटते हुए
भवनों के शिलान्यास
के पत्थर रखते हुए
धोबी
धोता है
ऐसे ही कुछ खास लोगों के कपड़े
जिन्हें अपने आपको पाक साफ
रखने में
महसूस होता है
अपमान
वरना
ठेले,तांगे,रिक्शेवाला
मजदूर
आप और मैं
तुम और हम
सभी धो लेते हैं अपने कपड़े
धोबी धोता
कुछ खास लोगों के कपड़े ।
(1982 में किसी दिन होशंगाबाद में संतोष रावत की आटा चक्की पर बैठकर)
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