पीठ पर
बस्ता लादे
सड़क किनारे
लिफ्ट मांगते बच्चे
स्कूल आने से पहले
सीखते हैं अस्वीकृत होना
सीखते हैं अस्वीकृति को स्वीकारना
सीखते हैं असंकोचीपना
सीखते हैं बेशर्म होना
सीखते हैं असंवेदनशीलता
सीखते हैं हिकारत की भाषा
सीखते हैं वे दुनिया को गरियाना।
पीठ पर
बस्ता लादे
सड़क किनारे
लिफ्ट मांगते बच्चे
स्कूल पहुंचने से पहले
सीखते हैं अच्छे और बुरे का फर्क
सीखते हैं सूरत और सीरत का फर्क
सीखते हैं दुनिया को संबोधित करना
सीखते हैं अपने लिए जगह खोजना
सीखते हैं वे शुक्रिया अदा करना।
पीठ पर
बस्ता लादे
सड़क किनारे
लिफ्ट मांगते बच्चे
कितना कुछ सीखते हैं
बिना कुछ सिखाए ही
बिना स्कूल जाए।
0 राजेश उत्साही
जिंदगी बहुत कुछ सिखा देती है..हर घड़ी हर जगह हर किसी को..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
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