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फोटो: राजेश उत्साही |
मैं
याद रहूंगा
एक अक्खड़,बदमिजाज
और एक हद तक बदतमीज
आदमी की मिसाल के तौर पर
याद रहूंगा
मैं
ऊंची और ककर्श आवाज में
बोलने वाला उजड्ड आदमी
कुछ बनावट ही है
और
कुछ बन जाता है फूलकर
या कि सूजा हुआ बैंगन चेहरा
ऐसे आदमी का
जब भी होगा जिक्र
नाम लिया जाएगा मेरा
धीरे-धीरे
कम होते काले-सफेद
खिचड़ी बाल और बेतरतीब मूंछों के लिए
याद किया जाऊंगा मैं
इन
तथाकथित खासियतों के बाद भी
जिस किसी को
याद नहीं आऊंगा मैं
उसे ध्यान दिलाया जाएगा
मेरे बाएं गाल का सफेद निशान
और दाईं कलाई पर उठा गूमड़
याद करेंगे लोग
कि हमने नहीं सुना उससे
कभी अभिवादन का जवाब
जिन्होंने सुना होगा
वे भी नहीं डालना चाहेंगे
अपनी याददाशत पर जोर
कहेंगे
लोग कि
हमने नहीं देखा कभी
उसे मद्धम आवाज में बोलते
जो होंगे गवाह इस बात के
वे भी शायद नहीं करेंगे खंडन
याद दिलाएंगे
शायद मकड़ी के जाले
फर्श पर पड़े चाय के निशान
या फिर पेशाबघर से आती गंध
जो खटकते थे मुझ आदमी की आंख में
या कि नाक में
जब भी
टेबिल पर लिख पाएगा
कोई अपना
या अपने प्रिय का नाम
बिना कलम के
तब भी स्मृतियों में कौंध जाऊंगा मैं
संभव है कोने में चुपचाप
खड़ी झाड़ू भी पुकार उठे मेरा नाम
निर्देशों और सूचनाओं से विहीन
दीवार बरबस
याद दिलाएगी मेरी
और कुछ लोग
कुछ न लिखा होने के बावजूद भी
पढ़ लेंगे वहां
बहुत संभव है
ऐसी और तमाम बातें
होंगी ही याद दिलाने के लिए
शुक्र है
कि किसी न किसी
बहाने याद आऊंगा ही मैं
अक्खड़,बदमिजाज और
एक हद तक बदतमीज आदमी।
0 राजेश उत्साही
(सन् 2000 के आसपास भोपाल में लिखी गई यह कविता पिछले हफ्ते ऐसा कुछ घटा कि अचानक फिर याद आ गई।)