tag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post1232033883856218643..comments2023-10-17T05:08:53.391-07:00Comments on गुलमोहर: बापू के नाम चार कविताएंराजेश उत्साहीhttp://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comBlogger53125tag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-69840197483822685682010-10-10T21:14:47.510-07:002010-10-10T21:14:47.510-07:00जहाँ तक मुझे लगा हरकीरत जी ने आपको भाषा समझाने की ...जहाँ तक मुझे लगा हरकीरत जी ने आपको भाषा समझाने की वजह से चर्चा पर चर्चा नहीं की.......उन्हें जैसा लगा उन्होंने वैसा बोल दिया वो भी इसलिए की उन्हें ऐसा लगा होगा की शायद आपसे कोई भूल हो गयी हो .....क्यूंकि हर किसी का अलग द्रष्टिकोण होता है......इसमें कुछ बुरा नहीं है.....पर मेरी नज़र में आपकी रचना पर किसी की टिप्पणी पर आपको और सिर्फ आपको जवाब देना चाहिए..........जिसका जवाब सिर्फ इतना है.............की 'साला' शब्द समाज में एक रिश्ता भी है और इसी समाज में उसे एक गली के रूप में भी लिया जाता है .........शब्द मायने नहीं रखते, भाव मायने रखते है .........कोई प्रेम से कहता है 'खाना खा लो' और कोई क्रोध से ...........शब्द तो वही हैं, पर भाव बदल जाते है ........ये सिर्फ और सिर्फ समय की बर्बादी है ........<br /><br />और क्योंकि मैं यहाँ पर आपकी मेल मिलने के कारण आया हूँ, इसलिए मैंने सिर्फ हरकीरत जी की टिप्पणियां पड़ी...........आपकी कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं.......आप उम्र और तजुर्बे में मुझसे पड़े है, कोई गुस्ताखी हुई हो तो छोटा समझ के माफ़ करें |<br /><br />महात्मा बुद्ध ने कहा था संसार में सबसे आसन काम होता है दूसरों में गलती निकालना और सबसे मुश्किल है अपनी गलती को मानना |<br /><br />काश हम सब इन चीजों से ऊपर उठ पाते तो हम कम से कम इंसान हो जाते |<br /><br />सच के ऊपर जिसे हमेशा गाँधी जी के साथ जोड़ा गया है | इस देश में अगर किसी ने नंगा और कड़वा सच बोला है तो वो हैं ओशो |<br /><br />सच तो तुम्हे भरे बाज़ार में नंगा खड़ा कर देता है ...........Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-37369719186231958562010-10-10T20:22:56.846-07:002010-10-10T20:22:56.846-07:00चर्चा अभी जारी है। दो और उदाहरण दे रहा हूं जिनमें ...चर्चा अभी जारी है। दो और उदाहरण दे रहा हूं जिनमें चर्चा को पुल्लिंग के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। दोनों उदाहरण फिल्मों से हैं। पहला है 1969 की फिल्म 'आदमी और इन्सान' से। इसमें साहिर लुधियानवी का एक गीत है,जिसमें बीच में पंक्तियां हैं-<br /><br />ओ यारा दिलदारा<br />मेरा दिल करता<br />हो सदियों जहान में<br />हो चर्चा हमारा<br /><br />दूसरा उदाहरण आज की चर्चित फिल्म दबंग से है। उसके मशहूर गीत मुन्नी बदनाम में पंक्तियां हैं-<br /><br />ओ मुन्नी रे गली गली में तेरा चर्चा रे<br />जमा इश्क पर्चा रेराजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-53433998431186663072010-10-10T10:29:11.747-07:002010-10-10T10:29:11.747-07:00चर्चा...
हिंदी शब्द...स्त्रीलिंग.....
मगर शायरी क...चर्चा...<br />हिंदी शब्द...स्त्रीलिंग.....<br /><br />मगर शायरी की जबान में हमने हमेशा पुल्लिंग रूप में ही देखा है .... और उस में शायद ये स्त्रीलिंग में जमता भी नहीं...<br />अगर आम बोलचाल के शब्द हों तो दोनों ही प्ररोग किये जा सकते हैं..... मगर ज़रा मिज़ाज देखकर...<br /><br />:)manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-12475395902509176352010-10-10T09:41:57.526-07:002010-10-10T09:41:57.526-07:00पहली बात : चारों रचनाएँ सच को दर्शाती बेहतरीन प्रस...पहली बात : चारों रचनाएँ सच को दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुति हैं ।<br /><br />दूसरी बात : चर्चा की चर्चा में पड़कर सारा ध्यान बहस पर आ गया है । ये बात तो सभी जानते हैं कि बहस का न कोई अंत होता है और न कोई जीतता हारता है । यहाँ आप यह भी समझ गए होंगे कि चर्चा के बारे में मैं हरकीरत जी से सहमत हूँ ।<br /><br />तीसरी बात : इतनी बहस के बाद कोई भी क्षुब्ध हो सकता है । हरकीरत जी कोई अपवाद नहीं ।<br /><br />चौथी बात : राजेश भाई , सच को सुनना हमेशा कड़वा होता है । आपकी रचनाओं में भी कड़वी सच्चाई है । कवियों को तो सच्चाई बोलने की आदत होती है । इसलिए जहाँ भी अवसर मिलता है , बोल दी जाती है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-12225701007520681612010-10-10T09:34:01.356-07:002010-10-10T09:34:01.356-07:00हाँ मै यहाँ टिप्पणी करने इस लिये आयी कि मुझे आपकी ...हाँ मै यहाँ टिप्पणी करने इस लिये आयी कि मुझे आपकी मेल मिली है। अब कुछ दिन छुट्टी पर जा रही हूँ बाकी चर्चा आ कर देखूँगी।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-89215615760424095152010-10-10T09:31:43.972-07:002010-10-10T09:31:43.972-07:00अहिंसा के पुजारी गाँधी जी प्के नाम पर इतना बवाल? क...अहिंसा के पुजारी गाँधी जी प्के नाम पर इतना बवाल? कम से कम जो सब की आलोचना करते हैं उन्हें तो चुप रह कर सब की प्रतिक्रिया कबूल करनी चाहिये। दूसरों की रचनायें रचनायें न हुयी ? मगर ब्लाग जगत मे ऐसा ही होता है कोई आलोचना का जवाब दे तो कमेन्ट करने वाले गुस्से मे लाल पीले हो जाते हैं। अगर आलोचना हुयी है तो लेखक का दायित्व बनता है कि उस आलोचना को स्पष्ट करे और अगर वो अपना दायित्व निभाता है तो कमेन्ट करने वाला ब्लागर ये कह कर चल देता है कि आगे से आपके ब्लाग पर नहीआऊँगा। जब कि खुद वो कहाँ गलत है ये समझने का प्रयास नही करता।। अरुन जी की बात से सहम्त हूँ। दूसरो की रचनाओं को बिना उसकी "विषय वस्तु" समझे आलोचना करना बहुत आसान होता है मगर जब वही बात खुद कही जाती है तो वो सही होती है। लेकिन इतिहास खुद को दोहराता है। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-79185776482511355872010-10-10T08:23:35.282-07:002010-10-10T08:23:35.282-07:00पिछली टिप्पणी में टंकण में कुछ त्रुटियाँ हो गई थीं...पिछली टिप्पणी में टंकण में कुछ त्रुटियाँ हो गई थीं!<br />कृपया क्षमा करेंगे!<br />--<br />मुझे तो आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि महात्मा गांधी जी के ऊपर चार उत्कृष्ट कविताओं के बारे में अधिकांश लोग कुछ भी नही कह रहे हैं और वे केवल चर्चा पर अटक कर रह गये हैं!<br />--<br />मेरी समझ के अनुसार -<br />यदि चर्चा शब्द का प्रयोग उर्दू में किया जाता है तो उसे पुर्लिंग में प्रयोग करते हैं और यदि हिन्दी में चर्चा शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे स्त्रीलिंग में प्रयोग करते हैं!<br />--<br />अगर यह मान लें कि "चर्चा" न स्त्रीलिंग है और न ही पुर्लिंग है तो सारा विवाद ही समाप्त हो जायेगा! अर्थात चर्चा नपुंसकलिंग है! चाहे इसे स्त्रीलिंग में प्रयोग करो या पुर्लिंग में!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-18857485154229208342010-10-10T08:03:46.419-07:002010-10-10T08:03:46.419-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-15804218915495179882010-10-08T04:05:28.925-07:002010-10-08T04:05:28.925-07:00कितना दुःख होता है जब देखते हैं के हमारे देश के मह...कितना दुःख होता है जब देखते हैं के हमारे देश के महात्माओं की नाक सिर्फ कव्वे की चौंच साफ़ करने का उपकरण मात्र है...सिर्फ एक निश्चित तारीख़ को हम उस पुतले को जिसे महात्मा नाम दिया है साफ़ सफाई करने की ज़हमत उठाते हैं और फिर भूल जाते हैं...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-31574355337692790972010-10-06T09:51:52.241-07:002010-10-06T09:51:52.241-07:00चौथी कविता बहुत अच्छी लगी।
चर्चा पर इतनी बहस देखकर...चौथी कविता बहुत अच्छी लगी।<br />चर्चा पर इतनी बहस देखकर ढेर सारा दिमाग खर्च हो गया।<br />..एक बार पहले भी पढ़कर भागा था।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-91030485314253695032010-10-05T12:28:46.428-07:002010-10-05T12:28:46.428-07:00@ अरुण जी ,
वैसे मैं इल्मी कवि ही कहां हूं।
तीस...@ अरुण जी ,<br /> वैसे मैं इल्मी कवि ही कहां हूं। <br />तीसरी कविता के बारे में आपने लिखा कि पाठ्यपुस्तकों में हजार चीजें होती हैं,उनकी तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता, और हम देना भी नहीं चाहते। ऐसे में गांधीजी वहां संदेश के साथ हैं तो क्या् बुरा है। यह कहकर तो आप मेरी ही बात की पुष्टि कर रहे हैं। यानी जिस बात या जानकारी से आपको बच्चों को दूर रखना हो वह उनकी पाठ्यपुस्तक में डाल दो। क्यों कि हमारी पाठ्यपुस्तक की बातें केवल परीक्षा पास करने के लिए होती हैं, जीवन में उतारने के लिए नहीं। <br /><br />सही कहा आपने कि कवि अंत में अपना धैर्य खो देता है। मुझे इसी में कवि की सफलता नजर आती है कि वह पाठक के रुबरु खड़ा होकर सवाल पूछता है। अरुण जी सवाल केवल शिक्षक नहीं पूछते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था की यही सबसे बड़ी विडम्बना है कि सवाल पूछने को केवल शिक्षक की बपौती मान लिया गया है। दूसरी बात यहां आपने ‘समझ’ शब्द को भी नहीं समझा। <br /><br />और यह बात तो आपने बिलकुल ठीक कही कि मेरी कविता महात्माहविहीन है। सच है मैं तो महात्मा को खोजने निकला था,वह तो मुझे नहीं मिले न। मिलते तो मेरी कविता में नजर आते। मेरी कविताओं के शीर्षक पर विचार कीजिए। <br /><br />और अरुण जी आपने अनजाने ही वह बात कह दी जो मैं आपमें और आपकी कविताओं में खोजता रहता हूं। कवि अपनी कविता के बहाने अपने आसपास की समीक्षा ही तो कर रहा होता है। <br /><br />उम्मीद है अब तो आपका डर जाता रहा होगा।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-57902044978476471632010-10-05T12:17:35.225-07:002010-10-05T12:17:35.225-07:00@अरुण जी,
अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए दूसरे की ...@अरुण जी,<br /> अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए दूसरे की लकीर को छोटा करना अच्छी बात नहीं मानी जाती। यह आप बेहतर जानते हैं। मुझे अच्छा अब भी लग रहा है कि आपने मेरी कविता पर कुछ कहने की हिम्मत की। (क्योंकि आपके ही शब्दों में आपको डर लगता है।) मुझे और अच्छा लगता अगर आप अपनी कविता और उस पर हुए हमारे संवाद को साथ रखे बगैर बात करते। वह वास्तव में एक ईमानदार कोशिश होती । बहरहाल...आपने टिप्पणी की तो। <br /><br />आपने सही कहा पहली कविता भटकाव की कविता है। कवि खो गए महात्मा को ढूंढ रहा है। लेकिन अगली पंक्ति में आप गच्चा खा गए। असल में दोष आपका नहीं बल्कि आपके उस उतावलेपन का जिसका जिक्र में आपसे कई बार कर चुका हूं। तुष्टिकरण का चश्मा आपने भी पहन रखा है इसलिए आपके पास उसे उतारने का समय ही नहीं है। अरुण जी कवि संतुष्ट इसलिए नहीं है, कि ज़मीन के बंटवारे में किसी वर्गविशेष को ज़मीन दे दी गई है। और न कवि इस बात की बधाई देने के लिए महात्मा को खोज रहा था, कवि बधाई देना चाहता था कि इस फैसले के बाद जो अमन और चैन कायम था, वह एक दिन पहले तक दुर्लभ नजर आ रहा था। खून खराबा होता दिखाई दे रहा था। <br /><br />और अरुण जी गांधी जी के साथ आप मेरी तुलना क्यों करने लगे। कहां बापू और कहां हम।<br /><br />कौवे का बिम्बं आप कहां खोजेंगे,छोडि़ए भी। कौवे अपनी चोंच रोज ही साफ करते दिख जाते हैं। <br /><br />दूसरी कविता आपको फिल्मी लगी। अब भैया उसमें फिल्म की बातें हैं तो फिल्मी लगेगी ही। वैसे मैं इल्मी कवि ही कहा हूं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-90883401902331052322010-10-05T12:12:44.286-07:002010-10-05T12:12:44.286-07:00@अरुण जी माफ करें,आपकी टिप्पणी का जवाब जरा देर से ...@अरुण जी माफ करें,आपकी टिप्पणी का जवाब जरा देर से दे पा रहा हूं। <br /><br />सही बात है कि आपने अपनी कविता मुझे भेजी थी। माफ करें केवल पढ़ने के लिए नहीं बल्कि यह कहते हुए कि मैं इसे जल्दी ही पोस्ट करना चाहता हूं, मेरे पास समय नहीं है,अत: आप बताएं कि कैसी है। जाहिर है जब आप पूछेगें तो मैं प्रतिक्रिया तो दूंगा ही। जो मुझे उचित लगा वह मैंने कहा। अरुण जी मैं अभी भी अपनी बात पर कायम हूं। अभी भी पूछ रहा हूं कि आपकी कविता में नया क्या है। महात्मा कहां हैं। और जो मैंने कहा था कि आपकी कविता पर टिप्पणियां आएंगी,अच्छी है,सशक्त है,सटीक है आदि। वे टिप्पणियां आईं भीं और आपने ही चैट बाक्स में मुझसे यह बात बांटी।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-74884597870337123432010-10-05T11:29:54.938-07:002010-10-05T11:29:54.938-07:00@ हरकीरत जी आप पुराने शब्द वापस ले रहीं,जिसकी कोई...@ हरकीरत जी आप पुराने शब्द वापस ले रहीं,जिसकी कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि हम सब यहां विमर्श ही तो कर रहे हैं। कभी कोई जल्दी में कुछ कह जाता है तो कोई आराम से सोच सोचकर लिखता है। <br /> कोई भी अहंकृति के लिए नहीं लिख रहा है। मैंने दो और उदाहरण दिए सिर्फ यह बताने के लिए इस तरह भी उपयोग होता है। <br /><br />आपने फिर एक बात कह दी कि उर्दू में चर्चा है भी कि नहीं। आपके शब्दकोष में नहीं है। आपके किस शब्दकोष में नहीं है,हिन्दी शब्दकोष में या उर्दू शब्दकोष में। <br /><br />मेरी कविता शुद्ध हिन्दी की कविता है यह आपने तय कर लिया। लेकिन उसमें और भी ऐसे शब्दों का उपयोग हुआ है जो मूलत: उर्दू या फारसी के हैं।<br /><br />मुझे लगता है हम सबको हिन्दी,खड़ीबोली और उर्दू का इतिहास पढ़ना चाहिए। जानना चाहिए कि हम सब जो यहां लिख और पढ़ रहे हैं,वह वास्तव में है क्या।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-11510674599035865922010-10-05T10:58:26.415-07:002010-10-05T10:58:26.415-07:00Are baba re.. ye to Ghamaasaan ho raha h.. mind u ...Are baba re.. ye to Ghamaasaan ho raha h.. mind u ladies n gentlemen, u r commenting over a post which has Gandhi ji in its centre.. neways i hardly mind it.. nice blog Mr. Utsaahi.. :)Vidushihttps://www.blogger.com/profile/09804248862386575133noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-85848584286544396292010-10-05T09:43:13.439-07:002010-10-05T09:43:13.439-07:00सलिल जी ,
जरा अपनी पहली टिपण्णी पर गौर कीजियेगा ...सलिल जी ,<br />जरा अपनी पहली टिपण्णी पर गौर कीजियेगा ..<br />जिसमें आपने साफ कहा है कि चर्चा शब्द स्त्रीलिंग नहीं पुलिंग है .....<br />आपने ये नहीं कहा कि हरकीरत जी चर्चा हिंदी में स्त्रीलिंग और उर्दू में पुलिंग होता है .....<br />और उत्साही जी ने शुद्ध हिंदी कि कविता में उर्दू के चर्चा शब्द का इस्तेमाल किया है ....<br /><br />मुझे नहीं पता उर्दू में चर्चा शब्द है भी या नहीं ....मेरे शब्दकोष में तो नहीं है ....<br /><br />खैर अब यहाँ चर्चा 'चर्चा' शब्द के लिए नहीं आत्मसात या अहंकृति के लिए हो रही है ....<br />इसलिए मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ ....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-91744332277519564582010-10-05T05:11:37.818-07:002010-10-05T05:11:37.818-07:00ग़ुम सवालों में सभी हैं और उत्तर है नहीं
तेरा चर्...ग़ुम सवालों में सभी हैं और उत्तर है नहीं<br />तेरा चर्चा हो गया तो मेरी चर्चा हो चुकी।<br />गॉंधीजी पर लौटें तो बात आती है दर्शन की और जरूरी नहीं कि दर्शन एक सा हो। जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यही स्थिति स्वर्गीय मोहन दास करमचंद गॉंधी की है। ये अच्छा है कि उनकी स्पष्ट पहचान के लिये महात्मा संबोधनॉंश के रूप में प्रचलित है। हाल फिलहाल नाम देने की स्थिति में नहीं हूँ लेकिन लगभग 100 जिल्दों में एक संग्रह है जो ऑनलाईन भी उपलब्ध है, उसमें एक-एक पत्र संग्रहित है जो महात्मा गॉंधी ने अपने सार्वजनिक जीवनकाल में लिखा। उन पत्रों के पढ़ने के बाद आज की राजनीति ही नहीं आज के मनुष्य का खोखलापन भी स्पष्ट होता है। <br />मैं कविताओं पर बात नहीं कर रहा हूँ, कविता तो राजेश भाई कह चुके, मैं इन कविताओं को पढ़ने के बाद के भाव की बात कर रहा हूँ। <br />ऐसा लगता है जैसे महात्मा गॉंधी मार्ग, चौराहा, उनकी मूर्ति आदि एक समग्र व्यवस्था है गॉंधी को एक दायरे में बॉंधने की; जिसमें सभी खोकर रह जायें और कहीं उनके दर्शन तक न पहुँच जायें। <br />हमारा पड़ोसी देश चीन, जिसे कट्टर कम्युनिस्ट देश माना जाता रहा है; उसने गॉंधी जी काएक सूत्र प्रकड़ लिया 'हर हाथ को काम' और निकल लिया विश्व में अपनी मज़बूत पहचान बनाने- और हम?<br />मुझे लगता है इसके बाद कहने को नहीं सोचने को रह जाता है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-56607190232163661352010-10-04T20:36:05.118-07:002010-10-04T20:36:05.118-07:00ufff!! yahan to bade aur vidwan logo ne akhara ban...ufff!! yahan to bade aur vidwan logo ne akhara bana diya............:)<br />par ham jaison ko yahin padh kar kuchh seekhne ko milta hai!!<br />hamare iss vishay pe kahna to chhoti muh badi baat hogi..........:)<br /><br />jahan tak kavita ke sandarbh ki baat hai, ek sarthak kavita likhi rajesh bhaiya ne.........Mahatma gandhi sach me iss yug ke liye sirf murtiyan hi rah gayee hai...........kash ham unhe apna pate..!मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-63513195523567581262010-10-04T17:07:12.655-07:002010-10-04T17:07:12.655-07:00अद्भुत प्रस्तुति!!अद्भुत प्रस्तुति!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-6301512840346601572010-10-04T14:57:10.024-07:002010-10-04T14:57:10.024-07:00टिप्पणी पढ़ने के बाद लगा कि गांधी कहां गुम हो गए। ...टिप्पणी पढ़ने के बाद लगा कि गांधी कहां गुम हो गए। खैर वैसे भी कवि, शायर दोनो ही शब्दों के इस्तेमाल में अपनी ही चलाते हैं। ऐसे ही हारकर लोगो ने कबीर के दोहो को भी आत्मसात कर लिया है औऱ उसे बाणी का दर्जा दिया है न कि कबीर वाणी का। मगर यही वाणी पंजाबी में जाकर बाणी के तौर पर स्थापित है। तो जाहिर है इस तरह की चर्चा या कहें विमर्श करना गलत नहीं है। मुझे लगता है कि विमर्श को विराम मिल गया होगा। <br /><br />वैसे आप लोग इस बात से सहमत होंगे कि ब्लॉग में भले ही इन बातों पर बहस नहीं हुई हो, मगर साहित्य जगत में ऐसे अनेक विर्मश हो चुके हैं और उसके बाद वर्तमान शब्द प्रयोग के नियम अस्तित्व में आए हैं, निर्धारित किए गए हैं। <br /><br />खैर उत्साही जी। आपकी कविता अच्छी लगी, इससे ही जुड़ी हुई मेरी पोस्ट भी है।<br /><br />www.boletobindas.blogspot.comRohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-91638379208231939462010-10-04T12:23:59.100-07:002010-10-04T12:23:59.100-07:00और दूसरा उदाहरण परवीन शाकिर की एक ग़ज़ल के शेर से ...और दूसरा उदाहरण परवीन शाकिर की एक ग़ज़ल के शेर से है-<br /><br />अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ <br />एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या-क्या देखूँराजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-72508898111005086042010-10-04T12:19:42.779-07:002010-10-04T12:19:42.779-07:00@ हरकीरत जी,वैसे तो अब यह बहस खत्म हो गई है। मैंन...@ हरकीरत जी,वैसे तो अब यह बहस खत्म हो गई है। मैंने भी कहा था कि चर्चा स्त्रीलिंग है और शब्दकोश में यही लिखा है। सलिल भाई ने एक कदम और आगे बढ़कर स्थिति साफ कर दी है। <br />पर इस बहाने मैंने भी कुछ शोध किया और दो और मशहूर शायरी मुझे मिलीं जिसमें चर्चा को इस तरह इस्तेमाल किया गया है। आप भी देखें-<br /><br />सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है<br />देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।<br /><br />करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत<br />देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।<br /><br />ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार<br />अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।<br /><br />वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ<br />हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।<br /><br />खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद<br />आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।<br /><br />यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार<br />क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।<br /><br />(अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर रखा गया है। -- कविता कोश टीम)राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-24614923323418559412010-10-04T11:37:39.603-07:002010-10-04T11:37:39.603-07:00@ हरकीरत हीर और राजेश उत्साही जीः
आधे सच की बिना प...@ हरकीरत हीर और राजेश उत्साही जीः<br />आधे सच की बिना पर किसी को अहमक़ का दर्ज़ा देना बेशऊरी मानी जाती है. अगर उन्होंने यह कह दिया होता कि यह हिंदी की कविता है और हिंदी में चर्चा को स्त्रीलिंग में प्रयुक्त करते हैं तो बात ख़तम थी. मैं भी सही, हरकीरत भी. लेकिन जवाब मिला <br />आदरणीय सलिल जी ,<br />शब्दकोश तो देख लेते या किसी और बुद्धिजीवी से मशवरा कर लेते ....<br />चर्चा की जाती है ...., चर्चा हुई .....<br />न की .....<br />चर्चा किया जाता है ...चर्चा हुआ...<br />ये क्या बात हुई भला. मैं क्यूँ किसी बुद्धिजीवि से मशविरा करूँ, जबकि मैंने इत्मिनान कर रखा है. इब्ने इंशाँ के क़द के बराबर उनमें से कोई नहीं जिनका चर्चा या जिनकी चर्चा उन्होंने की है. यकीन न हो तो किसी विद्वान बुद्धिजीवि से मशविरा कर लें. पहला शेर मेराज फ़ैज़ाबादी का था और दूसरा इब्ने इंशाँ का..मुझसे भूल हुई कि मैं ने इन मामूली शायरों पर वक़्त ज़ाया किया, दरसल उनको पढना चाहिए था जिनका ज़िक्र उनके बयान में है.<br />कलम स्त्रीलिंग है हिंदी में पुल्लिंग है उर्दू में.<br />चर्चा हिंदी में स्त्रीलिंग में प्रयोग होती है, उर्दू में पुल्लिंग ही है.<br />पायदान शब्द पुल्लिंग है उर्दू में मगर हिंदी में स्त्रीलिंग प्रयोग होता है. <br />शब्द्कोश ही देखने हों तो दोनों देखने चाहिए. संगीता दी ने लम्बे विमर्श के बाद अपनी एक कविता के एक शब्द को लेकर मुझसे कहा था कि सलिल अब तुम बताओ. इसलिए नहीं कि उनको मेरी क़ाबिलियत पर यकीन था, इसलिए कि वे मेरे तर्क से सहमत थीं. किया उन्होंने वही जो उत्साही जी ने कहा.लेकिन यह भी नहीं कहा कि मेरी बात ग़लत है. यह है बड़प्पन. <br />हरकीरत जी, कलाकर बन जाना बहुत मुश्किल होता है, मगर दूसरे कलाकार का सम्मान करना विरले को ही आता है.<br />बड़े भाई उत्साही जी और हरकीरत जी, आधा सच जानकर दूसरे को चुनौती नहीं देना गलत है. और भाषा का सन्यम बहुत ज़रुरी है.चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-47459605235468092122010-10-04T11:05:33.124-07:002010-10-04T11:05:33.124-07:00उत्साही जी ये चर्चा मंच की कुछ टिप्पणियाँ हैं देख ...उत्साही जी ये चर्चा मंच की कुछ टिप्पणियाँ हैं देख लें .....जहां चर्चा को स्त्रीलिंग में लिखा गया है ....<br />Blogger१) Archana said...<br /><br /> रंग-बिरंगी चर्चा -बढिया ......मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.....<br />२) 'अदा' said...<br /><br />bahut hi acchi lagi aapki charcha...<br />aabhaar...!<br /><br /><br />३)Blogger मनोज कुमार said...<br /><br /> आपकी चर्चा की शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।<br />४) डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...आज की चर्चा बहुत सुन्दर रही! <br /><br />५) संजय भास्कर said...आज की चर्चा बहुत सुन्दर रही!<br /> <br />६ Rajeev Bharol said...<br /><br />बहुत ही अच्छी शैली में की गई चर्चा.<br /><br />७) वाणी गीत said...<br /><br /> नए रंग की चर्चा रंगीन लगी ...<br /> ८) क्षितिजा .... said...<br /><br /> आपकी चर्चा बहुत पसंद आई ...<br />९) आशीष मिश्रा said...बहोत ही अच्छी चर्चा,<br /> १०) अनामिका की सदायें ...... said...<br /><br /> बहुत अच्छी सफल चर्चा रही.हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-814637680256420087.post-74019799936593119392010-10-04T11:05:26.594-07:002010-10-04T11:05:26.594-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.com